"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा।

मित्रों!

आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है।

कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...!

और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।

फ़ॉलोअर

शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

गली-गाँव में धूम मची है,फागों और फुहारों की।।(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


गली-गाँव में धूम मची है,
फागों और फुहारों की।।
मन में रंग-तरंग सजी है,
होली के हुलियारों की।।


गेहूँ पर छा गयीं बालियाँ,
नूतन रंग में रंगीं डालियाँ,
गूँज सुनाई देती अब भी,
बम-भोले के नारों की।।

पवन बसन्ती मन-भावन है,
मुदित हो रहा सबका मन है,
चहल-पहल फिर से लौटी है,
घर - आँगन, बाजारों की।।



जंगल की चूनर धानी है,
कोयल की मीठी बानी है,
परिवेशों में सुन्दरता है,
दुल्हिन के श्रंगारों की।।


होली लेकर, फागुन आया,
मीठी-हँसी, ठिठोली लाया,
सावन जैसी झड़ी लगी है,
प्रेम-प्रीत, मनुहारों की।।

गली-गाँव में, धूम मची है,
फागों और फुहारों की।।
मन में रंग-तरंग सजी है,
होली के हुलियारों की।।

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

खुशियों की सौगात लिए होली आई है (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

खुशियों की सौगात लिए होली आई है।

रंगों की बरसात लिए, होली आई है।।


रंग-बिरंगी पिचकारी ले,

बच्चे होली खेल रहे हैं।

मम्मी-पापा दोनों मिल कर,

मठरी-गुझिया बेल रहे हैं।

पकवानों को साथ लिए, होली आई है।

रंगों की बरसात लिए, होली आई है।।


जाड़ा भागा, गरमी आई,

होली यह सन्देशा लाई।

कोयल बोल रही बागों में,

कौए ने पाँखे खुजलाई।

ठण्डी कुल्फी हाथ लिए, होली आई है।

रंगों की बरसात लिए, होली आई है।।


सरसों फूली, टेसू फूले,

आम-नीम बौराये हैं।

मक्खी, मच्छर भी होली का,

गीत सुनाने आये हैं।

साथ चाँदनी रात लिए, होली आई है।

रंगों की बरसात लिए, होली आई है।।

रंग-बिरंगी आई होली। (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

आयी होली, आई होली।

रंग-बिरंगी आई होली।

मुन्नी आओ, चुन्नी आओ,

रंग भरी पिचकारी लाओ,

मिल-जुल कर खेलेंगे होली।

रंग-बिरंगी आई होली।।

मठरी खाओ, गुँजिया खाओ,

पीला-लाल गुलाल उड़ाओ,

मस्ती लेकर आई होली।

रंग-बिरंगी आई होली।।


रंगों की बौछार कहीं है,

ठण्डे जल की धार कहीं है,
भीग रही टोली की टोली।

रंग-बिरंगी आई होली।।


परसों विद्यालय जाना है,

होम-वर्क भी जँचवाना है,
मेहनत से पढ़ना हमजोली।

रंग-बिरंगी आई होली।।

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

क्या सच्चा वैदिक धर्म यही है ? (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)


अपनी अल्प-बुद्धि से यह लेख लिखने से पहले यह स्पष्ट करना आवश्यक समझता हूँ कि मेरी विचारधारा किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने की नही है। यह केवल मेरी अपनी व्यक्तिगत मान्यता है। मैं हिन्दु धर्म का विरोधी नही हूँ, बल्कि कृतज्ञ हूँ कि यदि हिन्दू नही होते तो वेदों का प्रचार-प्रसार करने वाले स्वामी देव दयानन्द कहाँ से आते?

वैदिक विचारधारा क्या है? इस पर हमें गहराई से सोचना होगा। उत्तर एक ही है कि ‘वेदो अखिलो धर्म मूलम्’ अर्थात वेद ही सब धर्मो का मूल है। जब वेद ही सब धर्मों का मूल है तो फिर विभिन्न धर्मों में एक रूपता क्यों नही है। वेद में तो केवल ईश्वर के निराकार रूप का की वर्णन है। फिर मूर्तिपूजा का औचित्य है? महर्षि स्वामी देव दयानन्द घोर मूर्तिपूजक परिवार से थे, लेकिन उन्होंने मूर्तिपूजा का घोर विरोध किया और वेदों में वर्णित धर्म के सच्चे रूप को लोगों के सामने प्रस्तुत किया।

हमारे इतिहास-पुरूष भी निर्विकार पूजा को श्रेष्ठ मानते हैं परन्तु साथ ही साथ साकार पूजा के भी प्रबल पक्षधर हैं। कारण स्पष्ट है आज धर्म को लोगों ने आजीविका से से जोड़ लिया है।

पहला उदाहरण-परम श्रद्धेय आचार्य श्रीराम लगातार 25 वर्षों तक स्वामी दयानन्द के मिशन आर्य समाज से मथुरा में जुड़े रहे। परन्तु वहाँ मूर्ति पूजा थी ही नही । अतः उन्होंने अपने मन से एक कल्पित गायत्री माता की मूर्ति बना ली और शान्ति कुंज का अपना मिशन हरद्वार में बना लिया। जबकि वेदों में एक छन्द का नाम ‘गायत्री’ है।

दूसरा उदाहरण- स्वामी दिव्यानन्द ने आर्य समाज को छोड़कर श्री राम शरणम् मिशन बनाया।

तीसरा उदाहरण आचार्य सुधांशु जी महाराज ने आर्य समाज का उपदेशक पद छोड़ कर ओम् नमः शिवाय का सहारा ले लिया। ऐसे न जाने कितने उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं। लेकिन आजीविका का रास्ता ढूँढने की होड़ में इन्होंने वैदिक धर्म का स्वरूप ही बदल कर रख दिया। हाँ एक बात इनके प्रवचनों में आज भी दिखाई देती है । वह यह है कि ये लोग आज भी बात तर्क संगत कहते हैं। अनकी विचारधारा में अधिकतम छाप आर्य समाज की ही है। लेकिन चढ़ावा बिना गुजर नही होने के कारण इन्होंने उसमें मूर्तिपूजा का पुट डाल दिया है।

आज सभी ‘ओम जय जगदीश हरे की आरती बड़े प्रेम से मग्न हो कर गाते हैं परन्तु यह आरती केवल गाने भर तक ही सीमित हो गयी है। यदि उसके अर्थ पर गौर करें तो- इसमे एक पंक्ति है ‘ तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति’ कभी सोचा है कि इसका अर्थ क्या है? सीधा सा अर्थ है-हे प्रभू तुम दिखाई नही देते हो, तुम हो एक लेकिन पूजा में रखे हुए हैं ‘अनेक’। आगे की एक पंक्ति में है- ‘.......तुम पालनकर्ता’ लेकिन इस पालन कर्ता की मूर्ति बनाकर स्वयं उसको भोग लगा रहे हैं अर्थात् खिला रहे हैं। क्या यही वास्तविक पूजा है? क्या यही सच्चा वैदिक धर्म का स्वरूप है। सच तो यह है कि हम पूजा पाठ की आड़ में अकर्मण्य बनते जा रहे हैं।

दुकान पर लाला जी सबसे पहले पूजा करते हैं और पहला ग्राहक आते ही उसे ठग लेते हैं। शाम को फिर पूजा करते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभो हमने आज जो झूठ बोलने के पाप कर्म किये हैं उनको क्षमा कर देना। क्योंकि हमारे धर्माचार्यों ने उनके मन में यह कूट-कूट कर भर दिया है कि ईश्वर पापों को क्षमा कर देते हैं। काश् यह भी समझा दिया होता कि ईश्वर का नाम रुद्र भी है। जो दुष्टों को रुलाता भी है।

खैर अब आवश्यकता इस बात की है कि फिर कोई महापुरुष भारत में जन्म ले और वैदिक धर्म की सच्ची राह दिखाये। जहाँ चाह है वहाँ राह है। एक आशा है कि युग अवश्य बदलेगा।

मंजिलें पास खुद, चलके आती नही। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)


अब जला लो मशालें, गली-गाँव में,

रोशनी पास खुद, चलके आती नही।

राह कितनी भले ही सरल हो मगर,

मंजिलें पास खुद, चलके आती नही।।


लक्ष्य छोटा हो, या हो बड़ा ही जटिल,

चाहे राही हो सीधा, या हो कुछ कुटिल,

चलना होगा स्वयं ही बढ़ा कर कदम-

साधना पास खुद, चलके आती नही।।


दो कदम तुम चलो, दो कदम वो चले,

दूर हो जायेंगे, एक दिन फासले,

स्वप्न बुनने से चलता नही काम है-

जिन्दगी पास खुद, चलके आती नही।।


ख्वाब जन्नत के, नाहक सजाता है क्यों,

ढोल मनमाने , नाहक बजाता है क्यों ,

चाह मिलती हैं, मर जाने के बाद ही-

बन्दगी पास खुद, चलके आती नही।।

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

सब तुम्हें भी पता, सब हमें भी पता। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)


सब तुम्हें भी पता, सब हमें भी पता।

क्या पता किससे, कितनी हुई थी खता।

प्यार दिल में बसाकर भी गम्भीर था,

अपनी आँखों में लाया नही नीर था,

छोड़ क्यों चल दिये, दो हमें भी बता।।

क्या पता किससे, कितनी हुई थी खता।

कल तलक तो हमारी, डगर एक थी।

लक्ष नजदीक था जब, नजर नेक थी।

तुम मुकर जाओगे, यह नही था पता।।

क्या पता किससे, कितनी हुई थी खता।

याद करती तुम्हें, गाँव की सब गली।

राह पहचानती हैं, जहाँ तुम चली।

भूल जाओगे उनको, नही था पता।।

क्या पता किससे, कितनी हुई थी खता।


देखने को तुम्हें नैन, बेताब हैं,

बिन तुम्हारे अधूरे हैं, पड़े ख्वाब हैं,

चैन सुख छिन गया, नींद है लापता।।
क्या पता किससे, कितनी हुई थी खता।

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों? (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)


मेरे वैरागी उपवन में,

सुन्दर सा सुमन सजाया क्यों?


सूने-सूने से मधुबन में,

गुल को इतना महकाया क्यो?



मधुमास बन गया था पतझड़,

संसार बन गया था बीहड़,


दण्डक-वन से, इस जीवन में,

शीतल सा पवन बहाया क्यों?



दिन-रैन चैन नही आता था,

मुझको एकान्त सुहाता था,


चुपके से आकर नयनों में,

सपनों का भवन बनाया क्यों?



नही हँसता था, नही रोता था,

नही अन्तर्मन को धोता था,


चुपके से आकर आँगन में,

मुझको दर्पण दिखलाया क्यों?



स्वर नही सजाना आता था,

नही साज बजाना आता था,


चुपके से कानों में आकर,

सुन्दर संगीत सुनाया क्यों?

काँटो की पहरेदारी में,ही गुलाब खिलते हैं।(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)


आशा और निराशा के क्षण,

पग-पग पर मिलते हैं।


काटों की पहरेदारी में,

ही गुलाब खिलते हैं।



पतझड़ और बसन्त कभी,

हरियाली आती है।


सर्दी-गर्मी सहने का,

सन्देश सिखाती है।


यश और अपयश साथ-साथ,

दायें-बाये चलते हैं।


काँटो की पहरेदारी में,

ही गुलाब खिलते हैं।




जीवन कभी कठोर कठिन,

और कभी सरल सा है।


भोजन अमृततुल्य कभी,

तो कभी गरल सा है।


सागर के खारे जल में,

ही मोती पलते हैं।


काँटो की पहरेदारी में,

ही गुलाब खिलते हैं।

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

।।बाल-गीत।। मेरा झूला बडा़ निराला।। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)



मम्मी जी ने इसको डाला।


मेरा झूला बडा़ निराला।।




खुश हो जाती हूँ मैं कितनी,


जब झूला पा जाती हूँ।


होम-वर्क पूरा करते ही,


मैं इस पर आ जाती हूँ।


करता है मन को मतवाला।


मेरा झूला बडा़ निराला।।




मुझको हँसता देख,


सभी खुश हो जाते हैं।


बाबा-दादी, प्यारे-प्यारे,


नये खिलौने लाते हैं।


आओ झूलो, मुन्नी-माला।


मेरा झूला बडा़ निराला।।

।।बाल-गीत।। भैया! मुझको भी, लिखना-पढ़ना, सिखला दो।(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)


भैया! मुझको भी,

लिखना-पढ़ना, सिखला दो।

क.ख.ग.घ, ए.बी.सी.डी,

गिनती भी बतला दो।।


पढ़ लिख कर मैं,

मम्मी-पापा जैसे काम करूँगी।

दुनिया भर में,

बापू जैसा अपना नाम करूँगी।।


रोज-सवेरे, साथ-तुम्हारे,

मैं भी उठा करूँगी।

पुस्तक लेकर पढ़ने में,

मैं संग में जुटा करूँगी।।


बस्ता लेकर विद्यालय में,

मुझको भी जाना है।

इण्टरवल में टिफन खोल कर,

खाना भी खाना है।।


छुट्टी में गुड़िया को,

ए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी।

उसके लिए पेंसिल और,

इक कापी भी लाऊँगी।।

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

इत्तफाक या हादसा (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

घोड़ी ने पटक दिया!
मुहूरत खराब चल रहा है।

कई साल पुरानी बात है। मुझे एक बारात में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। गाँव की बारात थी और उसे किसी दूसरे गाँव में ही जाना था।
नया-नया दूल्हा था, नई-नई घोड़ी थी। कहने का मतलब यह है कि घोड़ी की भी पहली ही बारात थी और दूल्हे की भी पहली ही बारात थी। घोड़ी को आतिशबाजी देखने और बैण्ड-बाजा सुनने का इससे पूर्व का कोई अनुभव नही था।
इधर दूल्हा भी बड़ी ऐंठ में था। अपनी बारात चढ़वाने के लिए वह तपाक से घोड़ी पर सवार हो गया। कुछ देर तक तो बेचारी घोड़ी ने सहन कर लिया। परन्तु जैसे ही बैण्ड बजना शुरू हुआ। घोड़ी बिफर गयी उसने धड़ाम से दूल्हे को जमीन पर पटक दिया और भाग खड़ी हुई। बारातियों ने उसे पकड़ने की बड़ी कोशिश की लेकिन उसने तो चार किलोमीटर दूर अपने घर आकर ही दम लिया।
उघर जमीन पर पड़ा दूल्हा दर्द से कराह रहा था। गाँव से डॉक्टर बुलाया गया और दूल्हे की मिजाज-पुरसी की गयी। कुछ देर बाद दूल्हे के कूल्हे का दर्द कुछ कम हुआ तो उसे दूसरी घोड़ी पर बिठाने की कोशिशे हुईं। परन्तु वह दूसरी पर बैठने को तैयार ही नही हुआ।
जैसे-तैसे रिक्शा मे ही दूल्हे को बैठा कर बारात चढायी गयी। अगले दिन बारात लौटी तो दुल्हन भी साथ थी।
अब दूल्हे के जीवन में घोड़ी तो नही, पत्नी-रूपी नारी थी। जो हर मायने में बेचारे.............पर भारी थी । शादी में घोड़ी ने पटका था, अब पत्नी बेचारे........ को रोज ही झिड़कती है।
जब उस बेचारे..............से पूछते हैं तो वह मायूसीभरा जवाब देता है- साहब जी मेरा तो शादी से ही मुहूरत खराब चल रहा है।

एक दिन प्रीत उपहार हो जायेगा।। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)

गीत गाते रहो, गुनगुनाते रहो,
एक दिन मीत संसार हो जायेगा।

चमचमाते रहो, जगमगाते रहो,
एक दिन प्रीत उपहार हो जायेगा।।

जीतनी जंग है जिन्दगी की अगर,
पार करनी पड़ेगी, कठिन सी डगर,
पथ सजाते रहो, आते-जाते रहो,
एक दिन राह को प्यार हो जायेगा।।

स्वप्न सुख के बुनों, खार को मत चुनो,
कुछ स्वयं भी कहो, कुछ उन्हें भी सुनो,
मुस्कुराते रहो, सबको भाते रहो,
एक दिन सुख का अम्बार हो जायेगा।।

भूल करना नही, दिल दुखाना नही,
साथ देना, कभी दूर जाना नही,
सुर मिलाते रहो, सिर हिलाते रहो,
एक दिन उनको एतबार हो जायेगा।

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

दामाद बहुत ही भाता है। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)

पाहुन का है अर्थ घुमक्कड़,
यम का दूत कहाता है।
सास-ससुर की छाती पर,
बैठा रहता जामाता है।।

खाता भी, गुर्राता भी है,
सुनता नही सुनाता है।
बेटी को दुख देता है तो,
सीना फटता जाता है।।

चंचल अविरल घूम रहा है ,
ठहर नही ये पाता है।
धूर्त भले हो किन्तु मुझे,
दामाद बहुत ही भाता है।।

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

गुरू सहाय भटनागर ‘बदनाम की एक खूब सूरत गजल-प्रस्तुतिः डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

वो शम्मा मोहब्बत की,
चला कर चले गये।
एक याद मेरे दिल में,
बसा कर चले गये।।

बुझती नहीं है आग,
लगायी जो सनम ने,
यादों की पालकी में,
बैठा कर चले गये।।

वो इश्क के वादों में,
कसम प्यार की खाकर,
दामन को अपने हमसे,
छुड़ा कर चले गये।।

खुशियां थी बेसुमार,
जब वो पास मेरे थे
वो शम्मा आरजू की,
बुझा कर चले गये।।

अपनी तो जफा याद है,
उनकी न वफा न याद,
घर को मेरे ‘बदनाम’,
बनाकर चले गये।

भक्ति-भाव से मिलकर बोलो, रघुपति राघव राजा राम।(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)



दीन दुखी के रक्षक गा्ंधी,
तुमको शत्-शत् मेरा प्रणाम।
श्रद्धा-सुमन समर्पित तुमको,
जग में अमर तुम्हारा नाम।।




आत्म-संयमी, व्रतधारी की,
महिमा को हम गाते हैं।
राजनीति-पटु,महा-आत्मा को,
हम शीश नवाते हैं।।


तन-मन में रमे हुए गांधी,
जैसे काशी और काबा हैं।
भारत के जन,गण,मन में,
रचते-बसते गांधी बाबा हैं।।


शस्त्र अहिंसा का लेकर,
तुमने अंग्रेज भगाया था।
शान्ति प्रेम की लाठी से,
भारत आजाद कराया था।।


छुआ-छूत का भूत भगा,
चरखे का चक्र चलाया था।
सत्यमेव जयते का सबको,
पावन पाठ पढ़ाया था।।


आदर और श्रद्धा से लेते,
हम बापू-गांधी का नाम।
भक्ति-भाव से मिलकर बोलो,
रघुपति राघव राजा राम।।

आशा की एक किरण अब भी बाकी है........ (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)

पिछले कई वर्षों से मैं दो-मंजिले पर रहता हूँ। मेरे कमरे में तीन रोशनदान हैं। उनमें जंगली कबूतर रहने लगे थे। वहीं पर वो अण्डे भी देते थे, परन्तु कानिश पर जगह कम होने के कारण अण्डे नीचे गिर कर फूट जाते थे। मुझे यह अच्छा नही लगता था।
एक दिन कुछ फर्नीचर बनवाने के लिए बढ़ई लगाया तो मुझे कबूतरों की याद आ गयी। मैंने बढ़ई से उनके लिए दो पेटी बनवा ली और किसी तरह से उनको रोशनदान में रखवा दिया।
अब कबूतर उसमें बैठने लगे। नया घर पाकर वो बहुत खुश लगते थे। धीरे-धीरे कबूतर-कबूतरी ने पेटी में तिनके जमा करने शुरू कर दिये। थोड़े दिन बाद कबूतरी ने इस नये घर में ही अण्डे दिये। कबूतर और कबूतरी बारी-बारी से बड़े मनोयोग से उन्हें सेने लगे।
एक दिन पेटी में से चीं-चीं की आवाज सुनाई देने लगी। अण्डों में से बच्चे निकल आये थे। अब कबूतर और कबूतरी उनको चुग्गा खिलाने लगे। धीरे-धीरे बच्चों के पर भी निकलने शुरू हो गये थे। एक दिन मैंने देखा कि कबूतरों के बच्चे उड़ने लगे थे। जैसे ही उनके पूरे पंख विकसित हो गये वे घोंसला छोड़ कर पेटी से उड़ गये ।
आज भी यह क्रम नियमित रूप से चल रहा है। कबूतर अण्डे देते हैं। अण्डों में से छोटे-छोटे बच्चे निकलते हैं और पंख आने के बाद उड़ जाते हैं। क्या संसार की यही नियति है? बालक जवान होते ही माता-पिता को ऐसे छोड़ कर चले जाते हैं जैसे कि कभी उनसे कोई नाता ही न रहा हो और माता-पिता देखते रह जाते हैं।
वे पुनः घोंसले में अण्डे देते हैं। उन्हें इस उम्मीद से सेते हैं कि इनमें से निकलने वाले बच्चे बड़े होकर हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे।
शायद उनके मन में आशा की एक किरण अब भी बाकी है........

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

मुझे लेना नही आया। उन्हे देना नही भाया।। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)

मिलन के गीत मन ही मन,
हमेशा गुन-गुनाता था।
हृदय का शब्द होठों पर,
कभी बिल्कुल न आता था।

मुझे कहना नही आया।
उन्हें सुनना नही भाया।।

कभी जो भूलना चाहा,
जुबां पर उनकी ही रट थी।
अन्धेरी राह में उनकी,
चहल कदमी की आहट थी।

मुझे सपना नही आया।
उन्हें अपना नही भाया।।

बहुत से पत्र लाया था,
मगर मजमून कोरे थे।
शमा के भाग्य में आये,
फकत झोंकें-झकोरे थे।

मुझे लिखना नही आया।
उन्हें पढ़ना नही आया।।

बने हैं प्रीत के क्रेता,
जमाने भर के सौदागर।
मुहब्बत है नही सौदा,
सितम कैसे करूँ उन पर।

मुझे लेना नही आया।
उन्हे देना नही भाया।।

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

अपना चमन बरबाद कर डाला। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)

गुलों की चाह में,
अपना चमन बरबाद कर डाला।
वफा की राह में,
चैन-औ-अमन बरबाद कर डाला।।

चहकती थीं कभी,
गुलशन की छोटी-छोटी कलियाँ जब,
महकती थी कभी,
उपवन की छोटी-छोटी गलियाँ जब,
गगन की छाँह में,
शीतल पवन बरबाद कर डाला।
वफा की राह में,
चैन-औ-अमन बरबाद कर डाला।।

चमकती थी कभी बिजली,
मिरे काँधे पे झुक जाते,
झनकती थी कभी पायल,
तुम्हारे पाँव रुक जाते,
ठिठुर कर डाह में,
अपना सुमन बरबाद कर डाला।
वफा की राह में,
चैन-औ-अमन बरबाद कर डाला।।

सिसकते हैं अकेले अब,
तुम्ही को याद कर-कर के,
बिलखते हैं अकेले अब,
फकत फरयाद कर-कर के,
अलम की बाँह में,
अपना जनम बरबाद कर डाला।
वफा की राह में,
चैन-औ-अमन बरबाद कर डाला।।

गुरू सहाय भटनागर ‘बदनाम’ की एक गजल ।। मधुमास सुहाना आ जाता ।।

हर साल बरसता था सावन,

अब की बरसात नहीं आयी।

तुम आ जाते तो शायद फिर,

मधुमास सुहाना आ जाता।

हम आस के पंछी वर्षा के,

आने की दुआयें करते हैं।

चूड़ी की खनक, पायल की झनक,

मौसम फिर खुश्नुमा आ जाता।

खुश्क हवाओं के झोंके,

आते हैं तो गुल मुस्काते हैं।

यादों के सूने गुलशन में,

सूखी बरसातें होती हैं।

घिर-घिर के घटायें आती हैं,

और बिन बरसे रूक जाती हैं।

तुम आ जाते ऐसे में कहीं,

सावन का महीना आ जाता।

आने की तुम्हारी चाहते में,

हम आस लगाये रहते हैं।

गुलचीं के लिये फिर गुलशन में,

वीरान बहारें होती हैं।

तुम आ जाते ‘बदनाम’ से फिर,

मिलने का जमाना आ जाता।

इश्क की गन्ध छुप न पायी है। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)

दिल किसी काम में नही लगता,

याद जब से तुम्हारी आयी है।


घाव रिसने लगें हैं सीने के,

पीर चेहरे पे उभर आयी है।


साँस आती है, धडकनें गुम है,

क्यों मेरी जान पे बन आयी है।

गीत-संगीत बेसुरा सा है,

मन में बंशी की धुन समायी है।

मेरी सज-धज हैं, बेनतीजा सब,

प्रीत पोशाक नयी लायी है।

होठ हैं बन्द, लब्ज गायब हैं,

राज की बात है, छिपायी है।

चाहे कितनी बचा नजर मुझसे,

इश्क की गन्ध छुप न पायी है।

इन पहाड़ों में बसे कुछ प्राण भी हैं।(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

प्यार का पल चाहते पाषाण भी हैं।
इन पहाड़ों में बसे कुछ प्राण भी हैं।।

प्रस्तरों में भी हृदय है, प्रस्तरों में भी दया है।
चीड़ का परिवार, इनके अंक में ही बस गया है।

गोद में बैठे हुए, किस प्यार से अधिकार से।
साल के छौने किलोलें,कर रहे दे(देव)-दार से।

कंकड़ों और पत्थरों के ढेर पर।
गगनचुम्बी कोण जैसे पेड़ पर।

सेव, काफल, नाशपाती से,रसीले फल उगे हैं।
जो मनुज की भूख,निर्बलता मिटाने में लगे हैं।

मात्र ये प्रहरी नही परित्राण भी हैं।
इन पहाड़ों में बसे कुछ प्राण भी हैं।।

पत्थरों में बिष्ट, ओली और टम्टा रह रहे हैं।
सरलता, ईमानदारी ,मूक चेहरे कह रहे हैं।

पत्थरों के देवता हैं,पत्थरों के घर बने हैं।
पत्थरों में पक्षियों के,घोंसले सुन्दर घने हैं।

पत्थरों में प्राण भी हैं,और हैं, पाषाण भी।
पत्थरों में आदमी हैं,और हैं भगवान भी।

मात्र ये कंकड़ नही,कल्याण भी हैं।
इन पहाड़ों में बसे,कुछ प्राण भी हैं।।

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

जब याद किसी की आती है। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

दिल में कुछ-कुछ होता है,
जब याद किसी की आती है।
मन सब सुध-बुध खोता है,
जब याद किसी की आती है।

गुलशन वीराना लगता है,
पागल परवाना लगता है,
भँवरा दीवाना लगता है,
दिल में कुछ-कुछ होता है,
जब याद किसी की आती है।

मधुबन डरा-डरा लगता है,
जीवन मरा-मरा लगता है,
चन्दा तपन भरा लगता है,
दिल में कुछ-कुछ होता है,
जब याद किसी की आती है।

नदियाँ जमी-जमी लगती हैं,
दुनियाँ थमी-थमी लगती हैं,
अँखियाँ नमी-नमी लगती हैं,
दिल में कुछ-कुछ होता है,
जब याद किसी की आती है।
मन सब सुध-बुध खोता है,
जब याद किसी की आती है।।

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

अमृत भी पा सकता हूँ।(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपना माना है जब तुमको,
चाँद-सितारे ला सकता हूँ ।
तीखी-फीकी, जली-भुनी सी,
सब्जी भी खा सकता हूँ।

दर्शन करके चन्द्र-वदन का,
निकल पड़ा हूँ राहों पर,
बिना इस्तरी के कपड़ों में,
दफ्तर भी जा सकता हूँ।

गीत और संगीत बेसुरा,
साज अनर्गल लगते है,
होली वाली हँसी-ठिठोली,
मैं अब भी गा सकता हूँ।

माता-पिता तुम्हारे मुझको,
अपने जैसे लगते है,
प्रिये तम्हारी खातिर उनको,
घर भी ला सकता हूँ।

जीवन-जन्म दुखी था मेरा,
बिना तुम्हारे सजनी जी,
यदि तुम साथ निभाओ तो,
मैं अमृत भी पा सकता हूँ।

प्रीत का मौसम सुहाना हो गया। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

हाथ लेकर जब चले, तुम साथ में,

प्रीत का मौसम, सुहाना हो गया है।


इक नशा सा, जिन्दगी में छा गया,

दर्द-औ-गम, अपना पुराना हो गया है।


जन्म-भर के, स्वप्न पूरे हो गये,

मीत सब अपना, जमाना हो गया है।


दिल के गुलशन में, बहारें छा गयीं,

अब चमन, मेरा ठिकाना हो गया है।


चश्म में इक नूर जैसा, आ गया,

बन्द अब आँसू , बहाना हो गया है।


तार मन-वीणा के, झंकृत हो गये,

सुर में सम्भव, गीत गाना हो गया है।

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

कामुकता में वह छला गया। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जल में मयंक प्रतिविम्बित था,
अरुणोदय होने वाला था।
कली-कली पर झूम रहा,
एक चंचरीक मतवाला था।।

गुंजन कर रहा, प्रतीक्षा में,
कब पुष्प बने कोई कलिका।
मकरन्द-पान को मचल रहा,
मन मोर नाच करता अलि का।।

लाल-कपोल, लोल-लोचन,
अधरों पर मृदु मुस्कान लिए।
उपवन में एक कली आयी,
सुन्दरता का वरदान लिए।।

देख अधखिली सुन्दर कलिका,
भँवरे के मन में आस पली।
और अधर-कपोल चूमने को,
षट्पद के मन में प्यास पली।।

बस रूप सरोवर में देखा,
और मुँह में पानी भर आया।
प्रतिछाया को समझा असली,
और मन ही मन में ललचाया।।

आशा-विश्वास लिए पँहुचा,
अधरों से अधर मिला बैठा।
पर भीग गया लाचार हुआ,
जल के भीतर वह जा पैंठा।।

सत्यता समझ ली परछाई,
कामुकता में वह छला गया।
नही प्यास बुझी उस भँवरे की,
इस दुनिया से वह चला गया।।

प्रणय-दिवस पर शुभकामनाएँ एवं सन्देश (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

प्रणय-दिवस पर, मर्यादा में,
बँध कर प्यार करेंगे,
शेष तीन सौ चौंसठ दिन भी,
जम कर प्यार करेंगे।

साथ निभाने का जीवन भर,
वचन निभाना होगा,
प्रेम-दिवस को प्रतिदिन,
प्रतिपल हमें मनाना होगा।

सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।

न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,
घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,
दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

प्रेम दिवस के नाम....(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

सात रंग में, रूप तुम्हारा,

छिपा हुआ है नया-नया।

सावन-भादों मे छायेगा,

रूप तुम्हारा नया-नया।।


सीपों के मोती में पाया,

रूप तुम्हारा नया-नया।

सागर तल में गहरायेगा,

रूप तुम्हारा नया-नया।।


रचा - बसा चन्दा-मामा में,

रूप तुम्हारा नया-नया।

रात चाँदनी में आयेगा,

रूप तुम्हारा नया-नया।।


मलयानिल के झोंको में है,

रूप तुम्हारा नया-नया।

प्रेम-दिवस पर छा जायेगा,

रूप तुम्हारा नया-नया।

कर लेंगे उत्तीर्ण परीक्षा.......(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

खेल-कूद में रहे रात-दिन,
अब पढ़ना मजबूरी है।
सुस्ती - मस्ती छोड़,
परीक्षा देना बड़ा जरूरी है।।

मात-पिता,विज्ञान,गणित है,
ध्यान इन्हीं का करना है।
हिन्दी की बिन्दी को,
माता के माथे पर धरना है।।

देव-तुल्य जो अन्य विषय है,
उनके भी सब काम करेगें।
कर लेंगें, उत्तीर्ण परीक्षा,
अपना ऊँचा नाम करेंगे।।

श्रम से साध्य सभी कुछ होता,
दादी हमें सिखाती है।
रवि की पहली किरण,
हमेशा नया सवेरा लाती है।।

हिन्दी-स्वरावलि (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

‘‘अ‘’
‘‘अ‘’ से अल्पज्ञ सब, ओम् सर्वज्ञ है।
ओम् का जाप, सबसे बड़ा यज्ञ है।।

‘‘आ’’
‘‘आ’’ से आदि न जिसका, कोई अन्त है।
सारी दुनिया का आराध्य, वह सन्त है।।

‘‘इ’’
‘‘इ’’ से इमली खटाई भरी, खान है।
खट्टा होना खतरनाक, पहचान है।।

‘‘ई’’
‘‘ई’’ से ईश्वर का जिसको, सदा ध्यान है।
सबसे अच्छा वही, नेक इन्सान है।।

‘‘उ’’
उल्लू बन कर निशाचर, कहाना नही।
अपना उपनाम भी यह धराना नही।।

‘‘ऊ’’
ऊँट का ऊँट बन, पग बढ़ाना नही।
ऊँट को पर्वतों पर, चढ़ाना नही।।

‘‘ऋ’’
‘‘ऋ’’ से हैं वह ऋषि, जो सुधारे जगत।
अन्यथा जान लो, उसको ढोंगी भगत।।

‘‘ए’’
‘‘ए’’ से है एकता में, भला देश का।
एकता मन्त्र है, शान्त परिवेश का।।

‘‘ऐ’’
‘‘ऐ’’ से तुम ऐठना मत, किसी से कभी।
हिन्द के वासियों, मिल के रहना सभी।।

‘‘ओ’’
‘‘ओ’’ से बुझती नही, प्यास है ओस से।
सारे धन शून्य है, एक सन्तोष से।।

‘‘औ’’
‘‘औ’’ से औरों को पथ, उन्नति का दिखा।
हो सके तो मनुजता, जगत को सिखा।।

‘‘अं’’
‘‘अं’’ से अन्याय सहना, महा पाप है।
राम का नाम जपना, बड़ा जाप है।।

‘‘अः’’
‘‘अः’’ के आगे का स्वर,अब बचा ही नही।
इसलिए, आगे कुछ भी रचा ही नही।।

इन्सानियत की राह में, मजहब का क्या है काम? (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अल्लाह निगह-ए-बान है, वो है बड़ा करीम।
जाति, धरम से बाँध मत, मौला को ऐ शमीम।।

बख्शी है हर बशर को, उसने इल्म की दौलत,
इन्सां को सँवारा है, दे शऊर की नेमत,
क्यों भाई , को भाई से जुदा कर रहा फईम।
जाति, धरम से बाँध मत, मौला को ऐ करीम।।

कर नेक दिल से, रब की इबादत अरे बन्दे,
सच्चाई पे चल, दफ्न कर, काले सभी धन्धे,
बन जा जमीं का आदमी और छोड़ दे नईम।
जाति, धरम से बाँध मत,मौला को ऐ करीम।।

शैतानियत की राह से, नाता तू तोड़ ले,
हुब्बे वतन की राह से, नाता तू जोड़ ले,
मिल सबसे तू खुलूस से, कह राम और रहीम।
जाति, धरम से बाँध मत, मौला को ऐ करीम।।

आबाद मत फरेब कर, नाहक न हो बदनाम,
इन्सानियत की राह में, मजहब का नही काम,
सबके दिलों बैठ जा, बन करके तू नदीम।
जाति, धरम से बाँध मत,मौला को ऐ करीम।।

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

आदमी को, आदमी की हबस ही खाने लगी। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जिन्दगी और मौत पर भी, हबस है छाने लगी।
आदमी को, आदमी की हबस ही खाने लगी।।

हबस के कारण, यहाँ गणतन्त्रता भी सो रही।
दासता सी आज, आजादी निबल को हो रही।।

पालिकाओं और सदन में, हबस का ही शोर है।
हबस के कारण, बशर लगने लगा अब चोर है।।

उच्च-शिक्षा में अशिक्षा, हबस बन कर पल रही।
न्याय में अन्याय की ही, होड़ जैसी चल रही।।

हबस के साये में ही, शासन-प्रशासन चल रहा।
हबस के साये में ही नर, नारियों को छल रहा।।

डॉक्टरों, कारीगरों को, हबस ने छोड़ा नही।
मास्टरों ने भी हबस से, अपना मुँह मोड़ा नही।।

बस हबस के जोर पर ही, चल रही है नौकरी।
कामचोरों की धरोहर, बन गयी अब चाकरी।।

हबस के बल पर हलाहल, राजनीतिक घोलते।
हबस की धुन में सुखनवर, पोल इनकी खोलते।।

चल पड़े उद्योग -धन्धे, अब हबस की दौड़़ में।
पा गये अल्लाह के बन्दे, कद हबस की होड़ में।।

राजनीति अब, कलह और घात जैसी हो गयी।
अब हबस शैतानियत की, आँत जैसी हो गयी।।

शूद्र वन्दना (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

हैं पूजनीय कोटि पद, धरा उन्हें निहारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।

चरण-कमल वो धन्य हैं,
समाज को जो दें दिशा,
वे चाँद-तारे धन्य हैं,
हरें जो कालिमा निशा,
प्रसून ये महान हैं, प्रकृति है सँवारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।

जो चल रहें हैं, रात-दिन,
वो चेतना के दूत है,
समाज जिनसे है टिका,
वे राष्ट्र के सपूत है,
विकास के ये दीप हैं, मही इन्हें दुलारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।

जो राम का चरित लिखें,
वो राम के अनन्य हैं,
जो जानकी को शरण दें,
वो वाल्मीकि धन्य हैं,
ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।

सीमाएँ मत पार कीजिए। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

प्रेम-प्रीत के चक्कर में पड़,
सीमाएँ मत पार कीजिए।
वैलेन्टाइन के अवसर पर,
सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए।।

भोले-भाले प्रेमी को भरमाना, अच्छी बात नही,
चिकनी-चुपड़ी बातों से बहलाना, अच्छी बात नही,
ख्वाब दिखा कर आसमान के,
धरती से, मत वार कीजिए।
वैलेन्टाइन के अवसर पर,
सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए।।

जन्म-जिन्दगी के साथी से, झूठे वादे मत करना,
दिल के कोने में घुस कर, नापाक इरादे मत करना,
हाथ थाम कर साथ निभाना,
गंदा मत, व्यवहार कीजिए।
वैलेन्टाइन के अवसर पर,
सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए।।

धड़कन जैसे बँधी साँस से, ऐसा गठबन्धन कर लो,
पानी जैसे बँधा प्यास से, ऐसा परिबन्धन कर लो,
सच्चे प्रेमी बन साथी से,
अपनी आँखे चार कीजिए।।
वैलेन्टाइन के अवसर पर,
सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए।।

प्रेम-दिवस की भाँति, बसन्ती सुमनों को खिलना होगा,
रैन-दिवस की भाँति, हमें हर-रोज गले मिलना होगा,
हरी-भरी जीवन बगिया में,
नित ऐसा व्यापार कीजिए।
वैलेन्टाइन के अवसर पर,
सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए।।

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

बरसो बादल! (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

नभ में कितने घन-श्याम घिरे,
बरसी न अभी जी भर बदली।
मुस्कान सघन-घन दे न सके,
मुरझाई आशाओं की कली।

प्यासा चातक, प्यासी धरती,
प्यास लिए, अब फसल चली।
प्यासी निशा - दिवस प्यासे,
प्यासी हर सुबह-औ-शाम ढली।

वन, बाग, तड़ाग, सुमन प्यासे,
प्यासी ऋषियों की वनस्थली।
खग, मृग, वानर, जलचर प्यासे,
प्यासी पर्वत की तपस्थली।

सूखा क्यों जलद तुम्हारा उर,
मानव मन की मनुहार सुनो।
इतने न बनो घनश्याम निठुर,
चातक की करुण पुकार सुनो।

फिर आओ गगन तले बादल,
अब तो मन-तन जी-भर बरसो।
विरहिन की ज्वाल, करो शीतल,
जाना अपने घर, कल - परसो।

तकदीर बदल जाती है (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

आमन्त्रण में बल हो तो ,
तस्वीर बदल जाती है।
पत्थर भी भगवान बनें,
तकदीर बदल जाती है।।

अपने अधरों को सीं कर,
इक मौन निमन्त्रण दे दो,
नयनों की भाषा से ही-
मुझको आमन्त्रण दे दो,
भँवरे की बिन गुंजन ही-
तदवीर बदल जाती है।
आमन्त्रण में बल हो तो ,
तस्वीर बदल जाती है।।

सरसों फूली, टेसू फूले,
फूल रहा है, सरस सुमन,
होली के रंग में भीगेंगे,
आशाओं के तन और मन,
आलिंगन के सागर में-
ताबीर बदल जाती है।
आमन्त्रण में बल हो तो,
तस्वीर बदल जाती है।।

पगचिन्हों का ले अवलम्बन,
आगे बढ़ता जाता हूँ ,
मन के दर्पण में राही की,
धड़कन पढता जाता हूँ,
पल-पल में परछांई की,
तासीर बदल जाती है।
आमन्त्रण में बल हो तो,
तस्वीर बदल जाती है।।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

अब तक (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) (टिप्पणी करते- करते बन गई कविता.)

पहले भी मैं भटक चुकी हूँ,

अब तक भटक रही हूँ मैं।


कब तलाश ये पूरी होगी,

अब तक अटक रही हूँ मैं।


ना जाने कितनों के मन में,

अब तक खटक रही हूँ मैं।


गुलशन के भँवरों में फँस कर,

अब तक लटक रही हूँ मैं।


यादें पीछा नही छोड़तीं,

अब तक चटक रही हूँ मैं।


जुल्फों में जो महक बसी थी,

अब तक झटक रही हूँ मैं।

समाजवाद (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

समाजवाद से-
कौन है अंजाना?
लोगों ने भी यह जाना।
समाजवाद आ गया है,
क्या यह प्रयोग नया है?
डाका, राहजनी, और चोरी,
सुरसा के मुँह के समान-
बढ़ रही है,रिश्वतखोरी।
देख रहे हैं-
गरीब और मजदूर,
होता जा रहा है,
चिकित्सा और न्याय-
उनसे दूर।
बढ़ता जा रहा है-
भ्रष्टाचार, व्यभिचार और शोषण,
नेतागण कर रहे हैं-
अपना और अपने परिवार का पोषण।
क्या समाजवाद-
सबके हित की-आवाज है?
क्या देश में दीन-दुखी,
आम आदमी का राज है?
पछता रहे हैं,
गरीब और कमजोर,
क्यों भेजा था उन्होंने संसद में-
एक निकम्मा और चोर?
आज केवल-
नेता ही आबाद है,
जनता आज भी बरबाद है।
क्या यही समाजवाद है?
यही लोकतंत्र है,
हाँ यही समाजवाद है।

काश ये ज़ज्बा हमारे भीतर भी होता?(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

सन् 1979, बनबसा जिला-नैनीताल का वाकया है। उन दिनों मेरा निवास वहीं पर था । मेरे घर के सामने रिजर्व कैनाल फौरेस्ट का साल का जंगल था। उन पर काले मुँह के लंगूर बहुत रहते थे।
मैंने काले रंग का भोटिया नस्ल का कुत्ता पाला हुआ था। उसका नाम टॉमी था। जो मेरे परिवार का एक वफादार सदस्य था। मेरे घर के आस-पास सूअर अक्सर आ जाते थे। जिन्हें टॉमी खदेड़ दिया करता था । एक दिन दोपहर में 2-3 सूअर उसे सामने के कैनाल के जंगल में दिखाई दिये। वह उन पर झपट पड़ा और उसने लपक कर एक सूअर का कान पकड़ लिया। सूअर काफी बड़ा था । वह भागने लगा तो टॉमी उसके साथ घिसटने लगा। अब टॉमी ने सूअर का कान पकड़े-पकड़े अपने अगले पाँव साल के पेड़ में टिका लिए।
ऊपर साल के पेड़ पर बैठा लंगूर यह देख रहा था। उससे सूअर की यह दुर्दशा देखी नही जा रही थी । वह जल्दी से पेड़ से नीचे उतरा और उसने टॉमी को एक जोरदार चाँटा रसीद कर दिया और सूअर को कुत्ते से मुक्त करा दिया।
हमारे भी आस-पास बहुत सी ऐसी घटनाएँ आये दिन घटती रहती हैं परन्तु हम उनसे आँखे चुरा लेते हैं और हमारी मानवता मर जाती है।
काश! जानवरों सा जज्बा हमारे भीतर भी होता।

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

रूमानी शायर गुरूसहाय भटनागर ‘‘बदनाम’’ की की पुस्तक शाम-ए तन्हाई की एक गजल -प्रस्तुति-(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


लिखने को लिख दिया खत मैंने, अब उनका जवाब आता होगा।
घबरा-न-ए दिल, कुछ सब्र तो कर, उनको भी ख्याल आता होगा।
आते ही ख्याल, बहारों का, दिल चैन कहाँ पाता होगा।
लबरेज है जो पैमाना-ए-दिल, भरते ही छलक जाता होगा।

गुलशन में निकल जाते होंगे, दिल सोच के, बहलाते होंगे,
लहराता हवाओं में आँचल, खारों में उलझ जाता होगा।
दुनिया ने मेरा उलझा दामन, वीराने मे लाकर छोड़ दिया,
‘बदनाम’ का दिल शायद यूँ ही, खत लिख के बहल जाता होगा।

सीधी-सच्ची बात (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)




वतन में अमन की, जागर जगाने की जरूरत है,


जहाँ में प्यार का सागर, बहाने की जरूरत है।


मिलन मोहताज कब है,ईद,होली और क्रिसमस का-


दिलों में प्रीत की गागर, सजाने की जरूरत है।।

क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में, मैं गजल? (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अब हवाओं में फैला गरल ही गरल।
क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में गजल।।

गन्ध से अब, सुमन की-सुमन है डरा,
भाई-चारे में, कितना जहर है भरा,
वैद्य ऐसे कहाँ, जो पिलायें सुधा-
अब तो हर मर्ज की है, दवा ही अजल।
क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में गजल।।

धर्म की कैद में, कर्म है अध-मरा,
हो गयी है प्रदूषित, हमारी धरा,
पंक में गन्दगी तो हमेशा रही-
अब तो दूषित हुआ जा रहा, गंग-जल।
क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में गजल।।

आम, जामुन जले जा रहे, आग में,
विष के पादप पनपने, लगे बाग मे,
आज बारूद के, ढेर पर बैठ कर-
ढूँढते हैं सभी, प्यार के चार पल।
क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में गजल।।

आओ! शंकर, दयानन्द विष-पान को,
शिव अभयदान दो, आज इन्सान को,
जग की यह दुर्गति देखकर, हे प्रभो!
नेत्र मेरे हुए जार हे हैं, सजल ।
क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में गजल।।

रूमानी शायर गुरूसहाय भटनागर ‘‘बदनाम’’ की दो गजलें-


(1)
मोहब्बत करके खुद ही दर्द पैदा कर लिया मैंने।
तेरी मासूमियत पर क्यों भरोसा कर लिया मैंने??
पियूँ जितनी शराब-ए-हुस्न, दिल को चैन न आये,

कहो अन्दाज पीने का, ये कैसा कर लिया मैंने??
हमारे दम से है रोशन, तेरी यह अंजुमन साकी,

खुशी में गम भी शामिल,आज अपना कर लिया मैंने।।
जला कर आशियाँ अपना, किया है तेरा घर रोशन,

खता तेरी थी, घर अपना, अन्धेरा कर लिया मैंने।।
परेशां हूँ बहुत ‘बदनाम’ तेरी बज्म में आकर,

कि तोड़ा दिल का आईना, तेरा क्या कर लिया मैंने।।
मोहब्बत करके खुद ही दर्द पैदा कर लिया मैंने।
तेरी मासूमियत पर क्यों भरोसा कर लिया मैंने??

(2)
कैसे? कहाँ? हुई थी मुलाकात याद है।
घिर-घिर के छा गयी थी घटा, रात याद है।।
सुनसान जगह पर तेरा,रूकना वो ठिठकना,
बिजली की चमक से तेरा, घबराना याद है।
डर कर मेरे आगोश में आये, निकल गये,
फिर दूर जा के, हमसे सिमटना वो याद है।
शर्माना, मुस्कराना, फिर दामन निचोड़ना,
बारिश में तर -बदन का वो, थर्राना याद है।
दीवाना कर गयी, मेरे दिल को तेरी अदा,
आरिज पे तेरी जुल्फ का, लहराना याद है।
लज्जत मिली थी हमको, जिन्दगी में पहली बार,‘
बदनाम’ को उस रात का, अफसाना याद है।।
प्रस्तुति
-(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

‘‘जिन्दगी का गीत रोटी मे छिपा है’’ (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जिन्दगी का गीत रोटी मे छिपा है।
साज और संगीत, रोटी में छिपा है।।

रोटियों के लिए ही, मजबूर हैं सब,
रोटियों के लिए ही, मजदूर हैं सब।

कीमती सोना व चाँदी, तब तलक,
रोटियाँ संसार में हैं, जब तलक।

खेत और खलिहान सुन्दर, तब तलक,
रोटियाँ उनमें छिपी हों, जब तलक।

झूठ, मक्कारी, फरेबी, रोटियों के रास्ते हैं,
एकता और भाईचारे, रोटियों के वास्ते हैं।

हम सभी यह जानते है, रोटियाँ इस देश में हैं,
रोटियाँ हर वेश में है, रोटियाँ परिवेश में है।

रोटियों को छीनने को , उग्रवेशी छा गये हैं,
रोटियों को बीनने को ही, विदेशी आ गये हैं।

याद मन्दिर की सताती, रोटियाँ जब पेट में हों,
याद मस्जिद बहुत आती, रोटियाँ जग पेट में हों।

राम ही रोटी बना और रोटिया ही राम हैं,
पेट की ये रोटियाँ ही, बोलती श्री-राम हैं।

रोटियों से, थाल सजते, आरती के,
रोटियों से, भाल-उज्जवल भारती के।

रोटियों से बस्तियाँ, आबाद हैं,
रोटियाँ खाकर, सभी आजाद हैं।

प्यार और मनमीत, रोटी में छिपा है।
जिन्दगी का गीत, रोटी मे छिपा है।।

रविवार, 8 फ़रवरी 2009

‘‘आदमी’’ का चमत्कार (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

आदमी के प्यार का,को रोता रहा है आदमी।
आदमी के भार को, ढोता रहा है आदमी।।

आदमी का विश्व में, बाजार गन्दा हो रहा।
आदमी का आदमी के साथ, धन्धा हो रहा।।

आदमी ही आदमी का, भूलता इतिहास है।
आदमी को आदमीयत का नही आभास है।।

आदमी पिटवा रहा है, आदमी लुटवा रहा।
आदमी को आदमी ही, आज है लुटवा रहा।।

आदमी बरसा रहा, बारूद की हैं गोलियाँ।
आदमी ही बोलता, शैतानियत की बोलियाँ।।

आदमी ही आदमी का,को आज है खाने लगा।
आदमी कितना घिनौना, कार्य अपनाने लगा।।

आदमी था शेर भी और आदमी बिल्ली बना।
आदमी अजमेर था और आदमी दिल्ली बना।।

आदमी था ठोस, किन्तु बर्फ की सिल्ली बना।
आदमी के सामने ही, आदमी खिल्ली बना।।

आदमी ही चोर है और आदमी मुँह-जोर है ।
आदमी पर आदमी का, हाय! कितना जोर है।।

आदमी आबाद था, अब आदमी बरबाद है।
आदमी के देश में, अब आदमी नाशाद है।।

आदमी की भीड़ में, खोया हुआ है आदमी।
आदमी की नीड़ में, सोया हुआ है आदमी।।

आदमी घायल हुआ है, आदमी की मार से।
आदमी का अब जनाजा, जा रहा संसार से।।

एक शेर में परिचय-,एक गजल


रूमानी शायर गुरू सहाय भटनागर ‘‘बदनाम’’
आवास-विकास, खटीमा (उत्तराखण्ड)
मोबाइलः 09411282774

एक ढलती शाम, मेरी जिन्दगी,
प्यार का उपनाम, मेरी जिन्दगी।
हर किसी से हँस के है मिलती गले-
इसलिए बदनाम, मेरी जिन्दगी।।

तेरी मुहब्बत का हमको, गुजरा वो जमाना याद आया।
रंगीं वो मंजर याद आये, वो शहर पुराना याद आया।।

मिलते थे कहीं दीवानों से, चलते थे कहीं बेगानों से,
उस राह-ए मुहब्बत का ऐ दिल, इक-इक अफसाना याद आया।।

वो भी तो इक जमाना था, तुम पलके बिछाये रहते थे,
हमको तो मुहब्बत का तेरी, हर राज पुराना याद आया।।

मिट जायेंगे हम, मर जायेंगे हम, इस राह-ए मुहब्बत में इक दिन,
उन तेरी फरेबी नजरों का, ‘बदनाम’ फसाना याद आया।।

कलियुग का व्यक्ति (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)

जीवन की अभिव्यक्ति यही है,
क्या शायर की भक्ति यही है?

शब्द कोई व्यापार नही है,
तलवारों की धार नही है,
राजनीति परिवार नही है,
भाई-भाई में प्यार नही है,
क्या दुनिया की शक्ति यही है?

निर्धन-निर्धन होता जाता,
अपना आपा खोता जाता,
नैतिकता परवान चढ़ाकर,
बन बैठा धनवान विधाता,
क्या जग की अनुरक्ति यही है?

छल-प्रपंच को करता जाता,
अपनी झोली भरता जाता,
झूठे आँसू आखों में भर-
मानवता को हरता जाता,
हाँ कलियुग का व्यक्ति यही है?

वाह! क्या सीन है? (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)

आज के पाँच चित्र
(1)
कल तक आदमी,
चेहरे बदलता था।
दुनिया के साथ-साथ,
स्वयं को भी छलता था।
सोचता था,
दर्पण को भी छल लूँगा,
बोला-
मैं खुद अपना चेहरा बदल लूँगा।
क्या ईमान और क्या दीन है?
वाह क्या सीन है?
(2)
कल तक,
माखन चुराता था कन्हैया।
लेकिन,
आज का गोपाल भैया।
अश्लील-गीत,
गाता जा रहा है।
जाम पर जाम,
पीता जा रहा है।
क्या नौजवान संवेदनहीन है?
वाह क्या सीन है?
(3)
कल तक,
खोजता इन्सान था,
भगवान को।
परन्तु,
आज भगवान ही खोजता,
इन्सान को।
क्यों?
क्या जानता नही,भगवान?
आदमी तो बहुत है,
लेकिन,
थोड़े बचे इन्सान।
मालिक ! कौन सी धुन में तल्लीन है?
वाह क्या सीन है?
(4)
कल तक,
मंजिल को-
ढूँढता था मुसाफिर।
किन्तु,
वक्त हो गया है,
कितना काफिर ?
अब मंजिल खोजती है-
एक अदद मुसाफिर।
परिणाम है,
मात्र सिफर।
क्या मंजिल,
इतनी लाचार और क्षीण है?
वाह क्या सीन है?
(5)
कल तक,
रिश्वत खोजती थी कानून को।
परन्तु आज अन्याय,
बिना डकार लिए-
पीता है-न्याय के खून को।
साहब की कुर्सी जहाँ आसीन है।
पेशकार की मेज के नीचे-
वाह क्या सीन है.............

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

एक व्यंग (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

(स्वभाव के विपरीत व्यंग का प्रथम प्रयास)

एक पादप साल का,
जिसका अस्तित्व नही मिटा पाई,
कभी भी,समय की आंधी ।
ऐसा था,
हमारा राष्ट्र-पिता,महात्मा गान्धी ।।
कितना है कमजोर,
सेमल के पेड़ सा-
आज का नेता ।
जो किसी को,कुछ नही देता ।।
दिया सलाई का-
मजबूत बक्सा,
सेंमल द्वारा निर्मित,एक भवन ।
माचिस दिखाओ,और कर लो हवन ।
आग ही तो लगानी है,
चाहे-तन, मन, धन हो या वतन।।
यह बहुत मोटा, ताजा है,
परन्तु,
सूखे साल रूपी,गांधी की तरह बलिष्ट नही,
इसे तो गांधी की सन्तान कहते हुए भी-
.........................।।

कोढ़ में खाज (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

निर्दोष से प्रसून भी डरे हुए हैं आज।
चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।

अश्लीलता के गान नौजवान गा रहा,
चोली में छिपे अंग की गाथा सुना रहा,
भौंडे सुरों के शोर में, सब दब गये हैं साज।
चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।

श्वान और विडाल जैसा मेल हो रहा,
नग्नता, निलज्जता का खेल हो रहा,
कृष्ण स्वयं द्रोपदी की लूट रहे लाज।
चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।

भटकी हुई जवानी है भारत के लाल की,
ऐसी है दुर्दशा मेरे भारत - विशाल की,
आजाद और सुभाष के सपनों पे गिरी गाज।
चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।

लिखने को बहुत कुछ है अगर लिखने को आयें,
लिख -कर कठोर सत्य किसे आज सुनायें,
दुनिया में सिर्फ मूर्ख के, सिर पे धरा है ताज।
चिड़ियों के कारागार में पड़े हुये हैं बाज।।

रोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा,
लगता है, घोड़े बेच के भगवान सो रहा,
अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज।
चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।

कैसे जी पायेंगें कसाइयों के देश में? (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

नम्रता उदारता का पाठ, अब पढ़ाये कौन?
उग्रवादी छिपे जहाँ सन्तों के वेश में।

साधु और असाधु की पहचान अब कैसे हो,
दोनो ही सुसज्जित हैं, दाढ़ी और केश में।

कैसे खेलें रंग-औ-फाग, रक्त के लगे हैं दाग,
नगर, प्रान्त, गली-गाँव, घिरे हत्या-क्लेश में।

गांधी का अहिंसावाद, नेहरू का शान्तिवाद,
हुए निष्प्राण, हिंसा के परिवेश में ।

इन्दिरा की बलि चढ़ी, एकता में फूट पड़ी,
प्रजातन्त्र हुआ बदनाम देश-देश में।

मासूमों की हत्याये दिन-प्रतिदिन होती,
कैसे जी पायेंगे, कसाइयों के देश में।

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

मन-सुमन हों खिले, उर से उर हों मिले,
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।
ज्ञान-गंगा बहे, शन्ति और सुख रहे-
मुस्कराता हुआ वो वतन चाहिए।।

दीप आशाओं के हर कुटी में जलें,
राम-लछमन से बालक, घरों में पलें,
प्यार ही प्यार हो, ऐसा पतवार हो-
देश में प्रान्त में अब अमन चाहिए।
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।।

छेनियों और हथौड़ों की झनकार हो,
श्रम-श्रजन-स्नेह दें, ऐसे परिवार हों,
खेत, उपवन सदा सींचती ही रहे-
ऐसी दरिया-ए गंग-औ-जमुन चाहिए।
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।।

आदमी से न इनसानियत दूर हो,
पुष्प, कलिका सुगन्धों से भरपूर हो,
साज सुन्दर सजें, एकता से बजें,
चेतना से भरे, मन-औ-तन चाहिए।
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए।।

शहीदों को नमन (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

ऐ शहीदो तुम्हें कोटि-कोटि नमन,
प्राण देकर बचाया तुम्हीं ने वतन।

देश-रक्षा की खातिर जो ली थी कसम,
कारगिल होया पंजाब या हो असम,
तुमने लौटा दिया वादियों का अमन।
ऐ शहीदो तुम्हें कोटि-कोटि नमन।।

वीरता से लड़े, धीरता से लड़े,
तुम समर में सदा आगे-आगे बढ़े,
मातृ-भू पर निछावर किये अपने तन।
ऐ शहीदो तुम्हें कोटि-कोटि नमन।।

धन्य माता हुई, धन्य है यह धरा,
हो गया वो अमर, जो वतन पर मरा,
हैं समर्पित तुम्हें, वाटिका के सुमन।
ऐ शहीदो तुम्हें कोटि-कोटि नमन।।

हास्य तथा व्यंगकार कवि गेंदालाल शर्मा ‘निर्जन’


हास्य तथा व्यंगकार कवि गेंदालाल शर्मा ‘निर्जन’ की कलम से-
सम्पर्क- 05943-251449, मो0- 9997209139, खटीमा
(1)
कुर्सी की आड़ में, जनता की राड़ में,
खेले जो शिकार वही सच्चा खिलाड़ी है।
दिन में होय गूँगा, अरु टाँग एक टूटी होय,
रात में जो जुड़ जाये, सच्चा भिखारी है।
बिल्डिंग कई मंजिली, एक ईट दीवार होय,
घूँसा मार गिर जाये, जानो काम सरकारी है।
दिन में दवाई खायें, रात को मलाई खायें,
डाक्टर भी कहे, फैसनेबिल बीमारी है ।
(2)
दामाद-
जो किसी की न सुने, घूमे आवारा बन,
उसको इस युग में आजाद कहते है।
जो शादी से पहले, एडवांस ले बयाना,
उस भयानक जीव को दामाद कहते है।

प्रस्तुति-डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

भय का भूत (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

यह घटना मेरे बचपन की है। मेरी आयु उस समय 13-14 वर्ष की रही होगी। मेरा बचपन नजीबाबाद, उ0प्र0 मे बीता, वहीं पला व बड़ा हुआ । पास ही में एक गाँव अकबरपुर-चौगाँवा है, वहाँ मेरे मौसा जी एक मध्यमवर्ग के किसान थे । मैं अक्सर छुट्टियों में वहाँ चला जाता था । खेती किसानी में मुझे रुचि थी इसीलिए मौसा जी भी मुझको पसन्द करते थे ।
नवम्बर का महीना था। मैं और मौसा जी खेत में पानी लगाने के लिए चले गये। पानी लगाते हुए कुछ रात सी हो गयी थी । मौसा जी का खेत सड़क के किनारे पड़ता था, खेत में एक पीपल का पुराना पेड़ भी था । मैने मिट्टी तेल की लालटेन जला ली और पीपल के पेड़ में टाँग दी । उस समय नजीबाबाद में कोई भी अदालत नही थी । अतः लोग बिजनौर रेलगाड़ी से अदालत के काम से जाया करते थे । उस दिन रेलगाड़ी भी कुछ लेट हो गयी थी । अतः लोगों को गाँव लौटते हुए रात के लगभग 10 बज गये थे ।
अगले दिन मैं और मौसा जी मुखिया की चौपाल पर बैठे थे । तभी गाँव के कुंछ लोगों ने अपनी व्यथा सुनानी शुरू कर दी । कहने लगे- रात को हमने पीपल के पेड़ में भूतों की लालटेन जलती देखी थी , खेत में उनके चलने की आवाज भी आ रही थी । हम लोगों ने जब यह नजारा देखा तो भाग खडे हुए और चार मील का रास्ता तय कर दूसरे रास्ते से 11 बजे घर पहुँचे ।
अब तो मेरा हँसते-हँसते बुरा हाल था । मौसा जी भी खूब रस ले-ले कर बात को सुन रहे थे । किसी ने सच ही कहा है कि भय का ही भूत होता है ।
डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
(पूर्व सदस्य-अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखण्ड सरकार)
कैम्प-खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर, पिनकोड- 262 308
फोन/फैक्सः 05943-250207, मोबाइल- 09368499921

‘‘कुम्हार अनुसूचित जाति के वास्तविक हकदार ’’

‘‘कुम्हार अनुसूचित जाति के वास्तविक हकदार ’’
अनुसूचित जाति के यदि पारिभाषिक शब्द पर विचार करें तो दलित वर्ग में आने वाली प्रत्येक जाति अनुसूचित वर्ग में आने की हकदार है । अब प्रश्न उठता है कि क्या कुम्हार जाति दलित वर्ग से सम्बन्ध रखती है ? इसका एक ही उत्तर है ‘‘हाँ’’ ।
प्रजापति समाज अर्थात कुम्हार जाति के व्यक्ति समाज के दलित-शोषत वर्ग के अन्तर्गत ही क्यांे आने चाहिए ? इसके अनेक प्रमाण पाठकों के सामने व्यक्त करना मैं अपना परम कर्तव्य समझता हूँ ।
देश की 80 प्रतिशत जनता ग्रामों में निवास करती है । आप यदि भौगोलिक परिस्थितियों पर गौर करें तो आपने पाया होगा कि पहले गाँव के एक कोने पर वाल्मीकि समाज के व्यक्ति का घर होता था तथा गाँव के दूसरे कोने पर कुम्हार का घर होता था । अर्थात समाज से अलग-थलग पडें हुए यह व्यक्ति होते थे । जबकि बढ़ई, लोहार आदि समाज के लोगें के घर गाँव के मध्य में होते थे । आखिर क्यों यह परम्परा थी ? क्या यह कारण इस समाज का दलित होना परिलक्षित नही करता है ?
मिट्टी के बरतन बनाने वाला कुम्हार समाज के अगड़े वर्ग के लोगों में अपने मिट्टी के बरतन पहुँचाता था । जहाँ उसके बनाये गये पात्रों का विधिवत् पूजन अर्चन पण्डित के द्वारा किया जाता था । बल्कि उसके बनाये कलश (घड़े) में सर्वप्रथम कलावा बाँधा जाता था, उसके बनाये दीपक से भगवान की आरती की जाती थी । लेकिन इन पात्रों के निर्माता कुम्हार कों शामिल भी नही होने दिया जाता था । उसका स्थान कहाँ था ? समाज व देश का संविधान बनाने वाले भली-भाँति जानते हैं परन्तु अनजान हैं, अतः यह बताना आवश्यक ही है कि विवाह-शादी में कुम्हार का स्थान द्वार पर होता था । जहाँ कि वैवाहिक कार्यों में भाग लेने वाले लोगों के जूते-चप्पल उतारे गये होते थे । वहीं पर बैठा यह दलित कुम्हार अपनी गुहार लगाता रहता था कि ‘‘यजमान पारिस (खाना) भिजवा दो, बच्चे भूखे हैं । इससे अधिक दुर्दशा इस समाज की और क्या होगी ? क्या यह कारण इस समाज का दलित होना नही दर्शाता है ।
अब मैं आपको महाराज मनु के युग में ले जाना चाहता हूँ । मनु महाराज ने अपनी मनुस्मृति में लिखा है ‘‘दशसूनासमं चक्रं दशचक्रसमो ध्वजः। दशध्वजसमो देशो दशवेशसमो नृपः।।’’
(मनुस्मृति 4/85)
अर्थ - दश हत्या के समान चक्र अर्थात् कुम्हार, गाड़ी से आजीविका करनेवाले, दश चक्र के समान धोबी तथा मद्य को निकाल कर बेचनेवाले, दश ध्वज के समान वेश अर्थात वेश्या, भड़ुआ, भांड ,दूसरे की नकल करने वाले और अन्यायी राजा के यहाँ का अन्न अतिथि ग्रहण न करें ।
इस श्लोक के अनुसार तो कुम्हार दलित ही नही अछूत की श्रेणी में भी आते हैं । अतः कुहार जाति को अनुसूचित जाति वर्ग में न रखना सरकार का सरासर अन्याय है ।
अब यदि राजनीतिक पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो आजादी के बाद से अब तक एक भी प्रजापति समाज अर्थात् कुम्हार जाति का सांसद नही है । बड़े या छोटे किसी भी राजनीतिक दल ने आज तक एक भी कुम्हार जाति के व्यक्ति को देश की सर्वोच्च अदालत यानि संसद में भेजने के लिए टिकट तक नही दिया । यानि आज भी प्रजापति (कुम्हार) जाति राजनीतिक रूप से भी अछूत है । फिर उसके मौलिक अधिकार यानि अनुसूचित जाति में शामिल करने से परहेज क्यों ?
यदि सामाजिक परिवेश की बात करें तो कुम्हार समाज वर्षों से दबा-कुचला हुआ है और आज भी उसके साथ समाज के अगड़े लोगों द्वारा वही व्यवहार किया जा रहा है । देश के कर्णधार/कानूनविद् इस समाज से क्या अपेक्षा करते हैं ? आज यदि प्रजापति समाज अनुसूचित जातिवर्ग में सम्मिलित होने के लिए अपनी आवाज उठाता है तो उसको बलपूर्वक क्यों दबा दिया जाता है ?
इस लेख के माध्यम से मैं प्रजापति समाज को आह्वान करता हूँ कि समाज ने हमें अनुसूचित केवल व्यवहारिक रूप में माना है। कानूनी रूप से नही । अपना अधिकार लेने के लिए प्रजापति समाज को बलिदान तो देना ही होगा ।
 प्रजापति डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
पूर्वसदस्य-उत्तराखण्ड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,देहरादून। कैम्प-खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर
फोन-(05943)250207, मो0-09368499921

तीन दोहे (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)

बेमौसम आँधीं चलें, दुनिया है बेहाल ।
गीतों के दिन लद गये,गायब सुर और ताल ।।

नानक, सूर, कबीर के , छन्द हो गये दूर ।
कर्णभेद संगीत का , युग है अब भरपूर । ।

रामराज का स्वप्न अब, लगता है इतिहास ।
केवल इनके नाम का, राजनीति में वास । ।

स्वागत नव-वर्ष

स्वागत नव-वर्ष
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।
कुछ ने मँहगाई फैलादी, कुछ हैं मँहगाई के मारे ।।

काँपे माता काँपे बिटिया, भरपेट न जिनको भोजन है ।
क्या सरोकार उनको इससे क्या नूतन और पुरातन है ।

सर्दी में फटे वसन फटे सारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे।।

जो इठलाते हैं दौलत पर, वो खूब मनाते नया-साल ।
जो करते श्रम का शीलभंग,वो खूब कमाते द्रव्य-माल ।

वाणी में केवल हैं नारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।।

नव-वर्ष निरन्तर आता है,सुख के निर्झर अब तक न बहे।
सम्पदा न लेती अंगड़ाई, कितने ही दारुण-दुख-दर्द सहे ।।

मक्कारों के वारे-न्यारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।।

रोटी-रोजी के संकट में, नही गीत-प्रीत के भाते हैं ।
कहने को अपने सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं ।।

सब स्वप्न हो गये अंगारे, नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।।

टूटा तन मन भी टूटा है, अभिलाषाएँ ही जिन्दा हैं ।
आयेगीं जीवन में बहार, यह सोच रहा कारिन्दा हैं ।।

अब चमकेंगेें अपने तारे, नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।।

 प्रजापति डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
पूर्वसदस्य-उत्तराखण्ड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,देहरादून। कैम्प-खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर

संस्मरण:- ‘‘आर्य समाज: नागार्जुन की दृष्टि में’’ -

संस्मरण:- ‘‘आर्य समाज: नागार्जुन की दृष्टि में’’ -
राजकीय महाविद्यालय, खटीमा में हिन्दी के विभागाध्यक्ष वाचस्पति शर्मा थे । बाबा नागार्जुन अक्सर उनके यहाँ प्रवास कर लिया करते थे । इस बार भी जून के अन्तिम सप्ताह में बाबा का प्रवास खटीमा में हुआ । दो जुलाई, 1989, महर्षि दयानन्द विद्या मन्दिर टनकपुर में बाबा नागार्जुन के सम्मान में कवि गोष्ठी का आयोजन था । उसमें बाबा ने कहा शास्त्री जी 5,6,7 जुलाई को मैं खटीमा मे आपके घर रहूँगा । प्रातःकाल 5 जुलाई को प्रातःकाल शर्मा जी का बड़ा पुत्र अनिमेष बाबा को मेरे निवास पर पहुँच गया । 6 जुलाई को सुबह बाबा का मनपसन्द नमकीन दलिया नाश्ते में बनाया गया । बाबा जी बड़ ही अच्छे मूड में थे । दलिया भी कुछ गरम था । उसी समय बाबा ने अपने जीवन के बाल्यकाल का संस्मरण सुनाया - ‘‘शास्त्री जी उस समय मेरी आयु 12 या 14 वर्ष की रही होगी । उस समय में संस्कृत विद्यालय बनारस में पढ़ता था । मन में विचार आया कि इलाहाबाद में पं0 गंगाप्रसाद उपाध्याय आर्य समाज के बहुत बड़े कार्यकर्ता हैं, उनसे मिला जाये । उस समय आर्य समाज की बड़ी धूम भी थी । मैंने अपने दो सहपाठी साथ में चलने के तैयार कर लिए तो पदल ही बनारस से इलाहाबाद को चल पड़े । चलते-चलते प्यास लगने लगी । आगे एक गाँव रास्ते में पड़ा तो कुएँ पर गये । पनिहारिनों ने पानी पिलाने से मना कर दिया और कहा भाई तुम पण्डितों के लड़का मालूम होते हो । हम तो नीच जाति की है, हम तुम्हारा धर्म नही बिगाड़ेंगी । प्यास बहुत जोर की लगी थी । हमने बहुत अनुनय-विनय की तो उन्होंने पानी पिलाया । हम तीनों ने ओक से पानी पिया । उसी रास्ते पर एक ऊँट वाला भी जा रहा था । वह आगे-आगे सबसे कहता चला जा रहा था कि भाई पीछे जो तीन ब्राह्मण लड़के आ रहे हैं , इन्होंने दलितों के कुएँ पर पानी पिया है । इनका धर्म भ्रष्ट हो गया है । अतः लोग हमें बड़ी उपेक्षा की दृष्टि से देखते । अन्ततः हमने रास्ता छोड़ खेतो की मेढ़-मेढ़ चलना शुरू कर दिया । साथ के देानो सहपाठी तो कष्टोें को देख कर घबरा कर साथ छोड़ कर वापिस चले गये...वगैरा-वगैरा । किसी तरह इलाहाबाद पहुँचा तो पं0 ग्रंगाप्रसाद उपाध्याय का घर पूछा- लोगों ने बताया कि चैक में पंडित जी रहते हैं । खैर पण्डित जी के घर पँहुचा, उनकी श्रीमती जी से कहा बनारस से आया हूँ, पैदल, पण्डित जी से मिलना है । उन्होंने प्यार से भीतर बुलाया, तख्त पर बैठाया और गर्म-गर्म दूध एक कटोरे में ले आयीं । जब मैंने दूध पी लिया तो उन्होंने कहा कि तुम विश्राम करो । पं0 जी शाम को 7 बजे तक आयेंगे । शाम को जब पण्डित जी आये तो बातचीत हुई । उन्होंन कहा कि तुम बहुत थके हो कल सभी बातें विस्तार में होगी और अपनी पत्नी कलावती को आवाज लगाई, कहा कि देखो ये अपने सत्यव्रत जी के ही समान हैं , इनको 3-4 दिन तक खूब खिलाओ-पिलाओ.....वगैरा-वगैरा । 3-4 दिन तक पण्डित जी के यहाँ रहा खूब प्रेम से बाते हुईं । जब विदा हुए तो पण्डित जी, उनकी पत्नी और पुत्र सत्यव्रत रेलगाड़ी पर पहुँचाने आये , टिकट दिलाया । अन्त में उनकी पत्नी ने (उस समय में ) दो रुपये जेब खर्च के लिए दिये । पण्डित जी बोले कि देखो कभी पैदल मत आना । जब भी इच्छा हो टिकट कटा कर रेलगाड़ी से आया करो । उसके पश्चात 2-3 बार पण्डित जी के यहाँ गया व एक - एक सप्ताह ठहरा । अन्त में बाबा नागार्जुन ने बताया कि ‘आर्य समाज बहुत ही अच्छी संस्था है’ परन्तु आजकल पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय सरीखे लोगों की कमी हो गयी है ।’’ साथ ही बताया कि ’’आर्य समाज ऊँचा उठने की प्रथम सीढ़ी है ।’’ 
डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
पूर्वसदस्य-उत्तराखण्ड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,देहरादून।
कैम्प-खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर फोन नं0-05943-250207, मो0- 09368499921

लघु कथा‘‘हाय री शराब , हाय रे शराबी’’

मई-जून का महीना था । एक बार बस से लखनऊ तक की यात्रा करनी पड़ी । संयोगवश सबसे पीछे की सीट मिली । उसी सीट पर तीन व्यक्ति पीलीभीत से भी सवार हो गये । वे अपने साथ बीयर लेकर आये थे । बस की सीट पर बैठ कर उन्होंने आराम से बीयर पी । आगे की सीट पर भी दो शराबी बैठे हुए थे । वह यह नजारा बड़े यान से देखते रहे । उनकी मुद्रा ऐसी थी कि मन मे पछता रहे हों कि हमने ठण्डी बीयर लेकर क्यों नही पी । अब शाम हो चली थी और अन्धेरा भी होने लगा था । समय यही कोई आठ बजे का रहा होगा। अब बीयर पीने वालों को लघुशंका लगने लगी । उनमें से एक बोला कि ‘‘यार पेशाब जोर से लगा है बस रुकवानी चाहिए ।’’ तभी उनका एक साथी बोला कि ‘‘बस रुकवाने में अनावश्यक देर होगी । अतः क्यों न इन खाली बोतलों का सदुपयोग किया जाये ।’’ बस फिर क्या था, सबने खाली बीयर की बोतलों मे ही लघुशंका कर ली और बोतलों को खिडक़ी से बाहर फेंकने ही जा रहे थे कि आगे वाले शराबी बोले ‘‘ सर क्या बीयर गरम हो गयी है जो इन्हें आप बाहर फेंकना चाह रहे हो ।’’ पीछे वाले व्यक्ति में हाँ में सिर हिलाया ।’’‘‘सर इस बीयर को आप हमें दे दीजिए ।’’आगे वाले शराबी बोले पीछे की सीट वालों ने बोतले उन्हें दे दी । आगे वाले शराबियों ने बोतले खोंलीं और गट-गट कर पी गये । यह नजारा देख कर मैं सन्न रह गया कि ‘‘हाय री शराब और हाय रे शराबी।’’ डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर

अब बसन्त का मौसम आया । (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

पहिन बसन्ती-पीली साड़ी,

फुली सरसों मनभावन है।

गीत और संगीत बसन्ती,

मौसम लोक लुभावन है।

वासन्ती परिधान ओढ़कर,

सूरज ने भी रंग दिखाया।

मुझको यह आभास होगया-

अब बसन्त का मौसम आया ।।


आम, नीम भी बौराए है,

तरुवर नव पल्लव पाये है।

पीपल,गूलर भी हर्षित हैं,

भँवरे गुल पर आकर्षित हैं।

सेमल में भी फूल खिले हैं,

जंगल में ढाका मुस्काया।

मुझको यह आभास होगया-

अब बसन्त का मौसम आया ।।


नील-गगन से छँटा कुहासा,

कोयल मीठे स्वर में गातीं,

हिमगिरि साफ दिखाई देते,

नदिया कल-कल नाद सुनातीं।

हीटर, गीजर बन्द हो गए ,

सरदी ने निज कोप घटाया।

मुझको यह आभास होगया-

अब बसन्त का मौसम आया ।।

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

जीवन जीने की आशा है (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जीवन इक खेल तमाशा है,
जीवन जीने की आशा है ।

जिसने जग में जीवन पाया,
आया अदभुत् सा गान लिए।
मुस्कान लिए अरमान लिए,
जग में जीने की शान लिए।
इस बालक से जब यह पूछा,
बतलाओ तो जीवन क्या है?
बोला दुनिया परिभाषा है ,
सारा जीवन एक भाषा है।
जीवन इक खेल तमाशा है,
जीवन जीने की आशा है ।

पोथी जग की पढ़ते-पढ़ते,
अपने पथ पर बढ़ते-बढ़ते।
इक नीड़ बसाया जब उसने,
संसार सजाया जब उसने।
तब मैंने उससे यह पूछा-
बतलाओ तो जीवन क्या है?
वह बोला जीवन आशा है,
जीवन तो मधुर सुधा सा है ,
जीवन इक खेल तमाशा है,
जीवन जीने की आशा है ।

कुछ श्वेत-श्याम केशों वाले,
अनुभव के परिवेशों वाले।
अलमस्त पौढ़ और फलवाले,
जीवन बगिया के रखवाले।
बूढ़े बरगद से यह पूछा-
बतलाओ तो जीवन क्या है?
बोला जीवन अभिलाषा है,
जीवन तो एक पिपासा है।
जीवन इक खेल तमाशा है,
जीवन जीने की आशा है ।

जब आनन दन्त-विहीन हुआ,
तन सूख गया, बल क्षीण हुआ।
जब पीत बन गयी हरियाली,
मुरझाई जब डाली-डाली।
फिर मैंने उससे यह पूछा-
अब बतलाओ जीवन क्या है?
तब उसने अपना मुँह खोला,
और क्षीण भरे स्वर में बोला।
जीवन तो बहुत निराशा है।
जीवन तो बहुत जरा सा है।।
जीवन इक खेल तमाशा है,
जीवन जीने की आशा है ।

भारत माँ के मधुर रक्त को,(डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक")

आज देश में उथल-पुथल क्यों,
क्यों हैं भारतवासी आरत?
कहाँ खो गया रामराज्य,
और गाँधी के सपनों का भारत?

आओ मिलकर आज विचारें,
कैसी यह मजबूरी है?
शान्ति वाटिका के सुमनों के,
उर में कैसी दूरी है?

क्यों भारत में बन्धु-बन्धु के,
लहू का आज बना प्यासा?
कहाँ खो गयी कर्णधार की,
मधु रस में भीगी भाषा?

कहाँ गयी सोने की चिड़िया,
भरने दूषित-दूर उड़ाने?
कौन ले गया छीन हमारे,
अधरों की मीठी मुस्काने?

किसने हरण किया गान्धी का,
कहाँ गयी इन्दिरा प्यारी?
प्रजातन्त्र की नगरी की,
क्यों आज दुखी जनता सारी?

कौन राष्ट्र का हनन कर रहा,
माता के अंग काट रहा?
भारत माँ के मधुर रक्त को,
कौन राक्षस चाट रहा?

लोकप्रिय पोस्ट

लेबल

-अच्छा लगता है -एक गीत" -नाच रहा इंसान -नेह के दीपक -बादल -सन्देश- :(नवीन जोशीःनवीन समाचार से साभार) :ताजमहल का सच :स्वर-अर्चना चावजी का !!रावण या रक्तबीज!! ‘‘चम्पू छन्द’’ ''धान खेत में लहराते" ‘‘बाल-गीत’’ ‘‘वन्दना’’ ‘‘हाइकू’’ 'आप' का अन्दाज़ बिल्कुल 'आप' सा ‘कुँवर कान्त’ ‘क्षणिका’ ‘ग़ज़लियात-ए-रूप’ 'गबन' और 'गोदान' ‘चन्दा और सूरज’ ‘भूख ‘रूप’ का इस्तेमाल मत करना ‘रूप’ की महताब ‘रूप’ के पास एक विपुल जीवनानुभव है 'रूप' बदलता जाता है 'सिफत' के लिए शुभाशीष ‘सुख का सूरज’ को पढ़ने का अनुभव " (सौंदर्य) Beauty by John Masefield" अनुवादक - डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' " दुखद समाचार" मेरे पिताश्री श्रद्धेय घासीराम आर्य जी का देहावसान " रावण सारे राम हो गये "1975 में रची गयी मेरी एक पेशकश" "5 मार्च-मेरे पौत्र का जन्मदिवस" "अनोखा संस्मरण" "अपना वतन" "अमर वीरंगना लक्ष्मीबाई का 193वाँ जन्मदिवस" "अमलतास खिलता मुस्काता" “अरी कलम! तू कुछ तो लिख” "आज से ब्लॉगिंग बन्द" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक') "आजादी का जश्न" "आजादी की वर्षगाँठ" "ईद मुबारक़" "उत्तराखण्ड का पर्व हरेला" "उल्लू" “एहसास के गुंचे” "कुहरा पसरा है गुलशन में" "कृष्णायन संजीवनी" "क्षणिका" "खटीमा का छोटी लाइन से बड़ी लाइन तक का ऐतिहासिक सफर" "खेतों में शहतूत उगाओ" “ग़ज़लियात-ए-रूप” तथा “स्मृति रपट "गधा हो गया है बे-चारा" "गिलहरी" “गुरुओं से सम्वाद” "गुलमोहर" "गोबर लिपे हुए घर" "चिड़िया रानी" "छन्द परिचय" "जग का आचार्य बनाना है" "जमा न ज्यादा दाम करें" "जय विजय का अप्रैल-2018 का अंक" "जय विजय का नवम्बर-2020 का अंक" "जय विजय का सितम्बर-2019 का अंक" "जय विजय के अगस्त-2016 अंक में प्रकाशित" "जय विजय के दिसम्बर अंक में "जय-विजय "जय-विजय-जुलाईः2016" "जाड़े पर आ गयी जवानी "जीवन में खुशियाँ लाते हैं" "ज्येठ भ्राता सम मेरे बहनोई मा. रघुनन्दन प्रसाद" "टुकड़ा-Fragment' a poem by Amy Lowell" "टुकड़ा" (Fragment' a poem by Amy Lowell) "ढल गयी है उमर" "ताऊ डॉट इन पर 2009 में मेरा साक्षात्कार" "तेरह सितम्बर-ज्येष्ठ पुत्र का जन्मदिन" "दीपावली" "दो जून की रोटी" "दो फरवरी" छोटेपुत्र की वैवाहिक वर्षगाँठ "दोहा दंगल में मेरे दोहे" “नदी सरोवर झील” "नया-नवेला साल" "नववर्ष" "नूतन भारत के निर्माता पं. नेहरू को नमन" "पर्यावरण-दिवस" "पावन प्यार-दुलार" "पिता की आकांक्षाएँ...by Samphors Vuth" "पितृ दिवस पर विशेष" "पुस्तक दिवस" "पैंतालिसवीं वैवाहिक वर्षगाँठ" “प्रकाश स्तम्भ” "प्राणों से प्यारा है अपना वतन" "बचपन" "बच्चों का संसार निराला" "बसन्त पञ्चमी" “बीमार गुलाब:William Blake” "भइया दूज का तिलक" "भारत को करता हूँ शत्-शत् नमन" "भावावेग-कुन्दन कुमार" "माँ की ममता" "माता के उपकार" "मातृ दिवस" "मित्र अलबेला खत्री की 5वीं पुण्य तिथि पर" "मूरख दिवस" "मृग-मरीचिका" डॉ.राज "मेरी पसन्द के पाँच दोहे" "मेरी मुहबोली बहन" "मौसम के अनुकूल बया ने "रूप की अंजुमन" से ग़ज़ल “रूप” को मोम के पुतले घड़ी भर में बदलते हैं “रूप” सुखनवर तलाश करता हूँ "रेफ लगाने की विधि और उसका उच्चारण" "लगा रहे हैं पहरों को" “लौट चलें अब गाँव” "विविध दोहावली" "विश्व रंग-मंच दिवस" "विश्व हिन्दीदिवस" "व्योम में घनश्याम क्यों छाया हुआ?" "शरीफों की नजाकत है" "श्री कृष्ण जन्माष्टमी" “सकारात्मक अर्थपूर्ण सूक्तियाँ” "सबका ऊँचा नाम करूँ" “सम्वेदना की नम धरा पर” "सावन आया रे.... "साहित्य सुधा-अक्टूबर (प्रथम) में "सिसक रहे शहनाई में" "सीधा प्राणी गधा कहाता" "सीधी-सच्ची बात" "सुनानी पड़ेगी ग़ज़ल धीरे-धीरे" "सुन्दर सूक्तियाँ" "हम तुम्हें हाल-ए-दिल सुनाएँगे" "हमारा गणतन्त्र" "हमारे प्रधानमन्त्री मोदी जी का जन्मदिन" "हमीं पर वार करते हैं" "हमें फुरसत नहीं मिलती" “हरेला” “हिन्दी व्यञ्जनावली-पवर्ग” “DEATH IS A FISHERMAN" BY BENJAMIN FRANKLIN (जय विजय (डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय 'नन्द') (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') ♥ फोटोफीचर ♥ 1111 13 सितम्बर 13 सितम्बर- नितिन तुमको हो मुबारक जन्मदिन 15वीं वर्षगाँठ १‍६००वीं पोस्ट 17-04-2015 (शुक्रवार) को प्रातः 10 बजे से यज्ञ (हवन) तत्पश्चात श्रद्धांंजलि 1800वीं पोस्ट 1901वाँ पुष्प 2000वीं पोस्ट 2016 2017 2017 में मेरा गीत प्रकाशित 2017 में मेरी बालकविता 2019 2019 में मेरी बालकविता 2021 2022 243वीं पुण्य तिथि पर 25 दिसम्बर 26 जनवरी का इतिहास 30 सितम्बर 38वी 4 अक्टूबर 40वीं वैवाहिक वर्षगाँठ 42वीं वैवाहिक वर्षगाँठ 48वीं वैवाहिक वर्षगाँठ 5 दिसम्बर 5 मार्च मेरे पौत्र प्रांजल का जन्मदिन 50वीं वैवाहिक वर्षगाँठ 8 जून 2013 9 नवम्बर 9 नवम्बर 2000 9 फरवरी ंहकी हवाएँ अंकगणित के अंक अंकुर हिन्दी पाठमाला में बिना मेरी अनुमति के मेरी बाल कविता अंग ठिठुरता जाय अँगरेजी का जोर अँगरेजी का रंग अंगिया के सँग आज अंग्रेजी का मित्रवर छोड़ो अब व्यामोह अंजाना ये गाँव है अंजाने से इस आँगन में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मलेन अँधियारा हरते जाएँगे अकविता अक्टूबर 2019 में मेरा गीत अक्टूबर-2017 अक्टूबर-2018) अक्षर बड़े अनूप अखबारों में नाम अगजल अग़ज़ल अगर न होंगी नारियाँ अगर न होती बेटियाँ थम जाता संसार अगर न होती रोटियाँ मिट जाता संसार अगस्त 2017 अचरज में है हिन्दुस्तान अच्छा लगता घाम अच्छा लगता है अच्छा व्यक्ति बनना बहुत जरूरी है अच्छा साहित्यकार अच्छी नहीं लगतीं अच्छी लगती घास अच्छी सेहत का राज अच्छे नहीं आसार हैं अच्छे हों उपमान अज़ल अज्ञान के तम को भगाओ अज्ञानी को ज्ञान नहीं अटल आपका नाम अटल बिहारी का जन्मदिन अटल बिहारी के बिना अटल बिहारी बाजपेई अटल बिहारी वाजपेई अडिगता-सजगता का प्रण चाहता हूँ अड्डा पाकिस्तान अढ़सठ आज बसन्त अतिवृष्टि अतुकान्त अदाओं की अपनी रवायत रही है अद्भुत अपना देश अध्यापक की बात अध्यापक दिवस अनज़ान रास्तों पे निकलना न परिन्दों अनीता सैनी अनुत्तरित प्रश्न अनुबन्धों का प्यार अनुबन्धों की मत बात करो अनुभावों की छिपी धरोहर अनुभावों की धरोहर अनुवाद अनुवादक : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” अनोखा संस्मरण (परलोक) अनोखी गन्ध अन्त किया अत्याचारी का अन्तरजाल अन्तरजाल हुआ है तन अन्तरराष्ट्रीय नारि-दिवस पर दो व्यंग्य रचनाएँ अन्तरराष्ट्रीय मित्रता-दिवस अन्तर्जाल अन्तर्राष्टीय मूर्ख दिवस अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन की चित्रावली अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस अन्तस आशाएँ मुस्काती हैं अन्तस् मैले हैं अन्धविश्वास या इत्तफाक अन्धा कानून अन्न उगाओ अन्नकूट अन्नकूट (गोवर्धनपूजा) अन्नकूट त्यौहार अन्नकूट पूजा अन्नकूट पूजा करो अन्नकूट/गोवर्धन पूजा अन्ना अन्ना हजारे अन्ना-रामदेव अन्र्तरजाल अपना गणतन्त्र अपना चौकीदार अपना दामन सिलना होगा अपना देश महान अपना धर्म निभाओगे कब अपना नीड़ बनाया है अपना नैनीताल अपना बना गया कोई अपना भगवा रंग अपना भारत देश अपना भारत देश महान अपना शीश नवाता हूँ अपना हिन्दुस्तान अपना है गणतंत्र महान अपनायेंगे योग अपनावतन अपनी आजादी अपनी बेरी गदरायी है अपनी भाषा मौन अपनी भाषा हिन्दी अपनी माटी गीत सुनाती अपनी मुरलिया बना तो अपनी मेहनत से मुकद्दर को बनाना चाहिए अपनी रक्षा का बहन अपनी वाणी मधुर बनाओ अपनी हिन्दी अपनीआजादी अपनीबात अपने छोटे से जीवन में अपने ज़माने याद आते हैं अपने पैर पसार चुका है अपने भारत को करता हूँ शत्-शत् नमन अपने मन को बहलाते हैं अपने वीर जवान अपने शब्दों में धार भरो अपने सढ़सठ साल अपने स्वर में गाते हैं अपने हिन्दुस्तान की अपराधी-कुख्यात बन गया अफजलगुरू अब आ जाओ कृष्ण-कन्हैया अब आँगन में वृक्ष अब इस ओमीक्रोन से अब कागा की काँव में अब कैसे सुधरें हाल सुनो अब गर्मी पर चढ़ी जवानी अब जगत के बन्धनों से मुक्त होना चाहता हूँ अब जम्मू-कश्मीर की ध्वस्त करो सरकार अब जलधार कहाँ से लाऊँ अब जला लो मशालें अब जूते के सामने अब झूठे सम्मान अब तक का लोखा जोखा अब तो करो प्रहार अब तो जम करके बरसो अब तो दुआ-सलाम अब तो मस्त बयार अब तो युद्ध जरूरी है अब न कुठाराघात करो अब नीड़ बनाना है अब पढ़ना मजबूरी है अब पैंतालिस वर्ष अब बसन्त आने वाला है अब बसन्त आयेगा अब भी वीर सुभाष के अब मिट गया वजूद अब मेरी तबियत ठीक है अब मेरे सिर पर नहीं अब रिश्वत का चलन मिटायें अब हिन्दी की धूम अबकी बार दिवाली में अभिनय करते लोग अभी शीत का योग अमन अमन का सन्देश अमन चाँदपुरी अमन हो गया गोल अमर बारती अमर भारती अमर भारती जिन्दाबाद अमर रहे साहित्य अमर रहेगा जगत में अमर वीरंगना लक्ष्मीबाई की 159वीं पुण्यतिथि अमर वीरंगना लक्ष्मीबाई के 185वें जन्मदिवस पर अमर वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई अमर वीरांगना लक्ष्मीबाई और श्रीमती इन्दिरा गांधी का जन्मदिवस अमरउजाला अमरभारती अमरभारती पहेली 100 के परिणाम अमरूद अमरूद गदराने लगे अमल-धवल होता नहीं अमलतास अमलतास का रूप अमलतास का हो गया अमलतास के गजरे अमलतास के झूमर अमलतास के पीले गजरे अमलतास के पीले झूमर अमलतास के पीले झूमर बहुत लुभाते हैं अमलतास के फूल अमलतास खिलता-मुस्काता अमलतास तुम धन्य अमलतास राहत पहुँचाता अमिया अमृता पांडे अम्बेदकर जी का जन्मदिन अयोध्या पर फैसला अरमानों की डोली अर्चना चावजी अर्चना चावजी और रचनाबजाज अर्चना-रचना अर्चाना चावजी अर्द्धकुम्भ की धूम अलग सा लिखो अब गजल-गीत में अलग-अलग हैं राग अलबेला खत्री जी को श्रद्धाजलि अलाव अशोक कुमार मिश्र अष्टमी-नवमी और विजयादशमी असली 'रूप' दिखाता दर्पण असार-संसार अस्तित्व अस्मत बचाना चाहिए अहंकार की हार अहसास अहोई अष्टमी अहोई-अष्टमी अहोईअष्टमी आ गई गुलशन में फिर बहार आ गया नव वर्ष फिर से आ गया बसन्त. बसन्तपंचमी आ गया है दादुरों को गीत गाना आ गयी दीपावली आ गये नेता नंगे आ गये फकीर हैं आ गये बादल आ जाओ अब कृष्ण-कन्हैया आ जाओ गोपाल आ जायेगी खुद्दारी आ भी आओ चन्द्रमा आ भी आओ चन्द्रमा आकाश में आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में आ भी जाओ! आ हमारे साथ श्रम को ओढ़ ना आँखें आँखें कर देतीं इज़हार आँखें कुदरत का उपहार आँखें नश्वर देह का आँखों का उपहार आँखों का दर्पण आँखों के बिन जग सूना है आँखों में होती है भाषा आँगन बदल रहा है आँचल में है दूध और आँसू आँसू औ’ मुस्कान आँसू का अस्तित्व आँसू की कथा-व्यथा आँसू यही बताते हैं आइना आई चौदस रूप की आई फिर से लोहिड़ी आई फिर से लोहिड़ी आई फिर से लोहिड़ी लेकर नवल उमंग। आई फिर से लोहिड़ी लेकर नवल उमंग। आई फिर से होली आई बसन्त-बहार आई होली आई होली रे आई होली रे! आओ अपना धर्म निभाएँ आओ गौतम बुद्ध आओ तिरंगा फहरायें आओ दीप जलायें हम आओ दूर करें अँधियारा आओ पेड़ लगायें हम आओ प्यार की बातें करें आओ मोहन प्यारे आओ आओ हिन्दी-दिवस मनायें आग के बिन धुँआ नहीं होता आग बरसती धरा पर आगत का स्वागत करने में आगरा आगे बढ़ना आसान नहीं आगे बढ़िए-आगे बढ़िए.... आचमन के बिना आचरण आचरण होता नहीं आचरण-व्यवहार अब कैसे फलेगा आचार की बातें करें आचार्य देवेन्द्र देव आज अहोई पर्व आज आदमी बौना है आज और कल का भेद आज करवाचौथ पर मन में हजारों चाह हैं आज का नेता आज कुछ उपहार दूँगा आज के परिवेश में आज खिले कल है मुरझाना आज तो मूर्ख भी दिवस है ना आज दिवस प्रस्ताव आज नदारद प्याज आज नीम की छाँव आज पुरवा-बयार आयी है आज फिर बारिश डराने आ गयी आज बरखा-बहार आयी है आज बहनों की हैं ये ही आराधना आज बहुत है शोक आज मेरे देश को सुभाष चाहिए आज रफायल बन गया आज विश्व हिन्दी दिवस आज शाखाएँ बहकी आज शिक्षक दिवस है आज सुखद संयोग आज सुखद-संयोग आज हम खेलें ऐसी होली आज हमारी खिलती बगिया आज हा-हा कार सा है आज हारी है अमावस आज हुई बरसात आज-कल आजाद भारत आजाद हिन्दुस्तान के नारे बदल गये आजादी आजादी अक्षुण्ण हमारी आजादी करती है आज सवाल आजादी का तन्त्र आजादी का तोहफा आजादी का पर्व आजादी का मन्त्र आजादी की वर्षगाँठ आजादी मुझको खलती है आठ दोहे आठ मार्च-आठ दोहे आड़ू आतंक को पाल रहा नापाक आतंकवाद आतंकी आता खूब बहाव आती इन्दिरा याद आती नहीं तमीज आते हैं नवरात्र आते हैं बदलाव आदत में अब चाय समायी आदत है हैवानों की आदमी उदास है आदमी का चमत्कार आदमी को छल रही है जिन्दगी आदमी तो आज फिर से ताज पा गया आदमी मजबूर है आदमी से अच्छे जानवर आदमी ही बन गये हैं आदिदेव कर दीजिए बेड़ा भव से पार आधा "र्" का प्रयोग आधी आजादी आधुनिक भारत के निर्माता चाचा नेहरू आन-बान आने के ही साथ बँधी है आने लगा है मज़ा मात में आने वाला नया साल आने वाला है नया साल आने वाला है बसन्त आप सबको मुबारक नया वर्ष हो आपका एहतराम करते हैं आपके बिन मेरी होली सूनी है। आपदा आफत मचाने आ गयी आपस के सम्बन्ध आपस में तकरार आपस में मतभेद आपस में सुर मिलाना आपाधापी आफत की बरसात आफत के परकाले आभार आभारदर्शन आभासी दुनिया आभासी संसार आभासी संसार में आम आम और लीची आम और लीची का उदगम आम के वास्ते अब कहाँ तन्त्र है आम गया है हार आम दिलों में खास आम पिलपिले हो भले आम पेड़ पर लटक रहे हैं आम में ज़ायका नहीं आता आम में भरा हुआ है माल आम हो गया खास का आम-नीम बौराये फिर से आमआदमी आमन्त्रण आमों की बहार आई है आया देवउठान आया नया निखार आया नहीं सुराज आया पास किनारा आया फागुन मास आया फिर भूचाल आया बसन्त आया बसन्त-आया बसन्त आया भादौ मास आया मधुमास आया राखी का त्यौहार आया है ऋतुराज आया है त्यौहार ईद का आया है त्यौहार तीज का आया हैं मधुमास आयी रेल आयी सावन तीज आयी है बरसात आयी है शिवरात आयी होली आयी होली-आयी होली आये सन्त कबीर आये हैं शैतान आयेगा इस बार भी नया-नवेला साल आरती आरती उतार लो आरती उतार लो आ गया बसन्त है आराधना आर्य समाज: बाबा नागार्जुन की दृष्टि में आलिंगन उपहार आलिंगन-दिवस (HUG_DAY) आलिंगन/चुम्बन दिवस आलिंगनदिवस आलू आलूबुखारा आलेख आलोकित परिवेश आल्हा आवश्यक सामान आवश्यक सूचना आवागमन आशा आशा का चमत्कार आशा का दीप जलाया क्यों आशा के दीप जलाओ तो आशा पर उपकार टिका है आशा शैली आशा है आशाएँ मुस्काती हैं आशाएँ विश्वास जगाती आशाओं पर प्यार टिका है आशियाना चाहिए आशीष का आशीष तुम्हें मैं देता आशु-कविता आसमान आसमान का छोर आसमान की झोली से... आसमान के दीप आसमान में आसमान में कुहरा छाया आसमान में छाये बादल आसमान में बादल छाया आस्था-विश्वास आह्वान इंसान बदलते देखे हैं इंसानियत का रूप इंसानी पौध उगाओ इंसानी भगवानों में इक मौन-निमन्त्रण तो दे दो इक शामियाना चाहिए इक्कीस दोहे इतनी मत मनमानी कर इतने न तुम ऐंठा करो इदारे बदल गये इनकी किस्मत कौन सँवारे इन्तज़ार इन्तजार की ओस इन्दिरा गांधी इन्दिरा! भूलेंगे कैसे तेरो नाम इन्द्र बहादुर सेन इन्द्रधनुष का चौमासे में “रूप” हमें दिखलाते हैं इन्द्रधनुष का रूप हमें दिखलाते हैं इन्द्रधनुष के रंग निराले इन्द्रधनुष भी मन को नहीं सुहाए रे इन्सानी भगवानों में इबादत इमदाद आयेगी इलज़ाम के पत्थर इल्म रहता पायदानों में इशारे समझना इस जीवन की शाम ढली इस धरा को रौशनी से जगमगायें इस नये साल में ईद ईद और तीज आ गई है हरियाली ईद का चाँद आया है ईद तीज आ गई है हरियाली ईद मनाई जाती है ईद मुबारक़ ईद-दिवाली में ईद-दिवाली-होली मिलकर ईमान बदलते देखे हैं ईवीएम में बन्द ईश्वर के आधीन उगता दिल में प्यार उगता है आदित्य उगते-ढलते सूर्य की उगने लगे बबूल उग्रवाद-आतंक का उच्चारण की सबसे लोकप्रिय प्रविष्टि उच्चारण खामोश उजड़ गया है तम का डेरा उजड़ गया है नीड़ उजड़ा हुआ है आदमी उज्जवल-धवल मयंक उड़ जायें जाने कब तोते उड़ता गर्द-गुबार उड़ता बग़ैर पंख के नादान आज तो उड़ती हुई पतंग उड़तीं हुई पतंग उड़नखटोला द्वार टिका है उड़नखटोला-यान उड़ान उड़ान में प्रकाशित उतना पानी दीजिए जितनी जग को प्यास उतना ही साहस पाया है उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ उत्तर अब माकूल उत्तराखण्ड उत्तराखण्ड का पर्व हरेला उत्तराखण्ड का स्थापना दिवस उत्तराखण्ड का स्थापना दिवस और संक्षिप्त इतिहास उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर उत्तराखण्ड के कर्मठ मुख्यमन्त्री उत्तराखण्ड के पर्व हरेला पर विशेष उत्तराखण्ड के मा. मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी का जन्मदिन उत्तराखण्ड राज्य स्थापनादिवस उत्तराखण्ड राज्य का स्थापना दिवस उत्तरायणी उत्तरायणी पर्व उत्तरायणी-मकर संक्रान्ति उत्तरायणी-लोहड़ी उत्सव ललित-ललाम उत्सव हैं उल्लास जगाते उद्धव की सरकार उद्धव गुट की हार उन्नत अपना देश बनायें उन्मीलन पत्रिका में मेरा एक गीत उन्हें हम प्यार करते हैं उपन्यास सम्राट को उपमा में उपमान उपवन के फूल उपवन मुस्कायेगा उपवन में अब रंग उपवन में गुंजार उपवन में हरियाली छाई उपवन” का विमोचन उपसर्ग और प्रत्यय उपहार उपहार में मिले मामा-मामी उपासना का पर्व उपासना में वासना उफन रहे हैं ताल उमड़-घुमड़ कर आये बादल उमड़-घुमड़ कर बादल छाये उमड़ा झूठा प्यार उमड़ी पर्वत से जल धारा उम्मीद मत करना उम्र छियासठ साल हो गयी उलझ गया है ताना-बाना उलझ गये हैं तार उलझ रहे हैं तार उलझन-झमेले रहेंगे उलझा है ताना-बाना उलझे हुए सवाल उलझे हुए सवालों में उलूक का भूत उल्फत के ठिकाने खो गये हैं उल्लास का उत्तरायणी पर्व उल्लू और गदहे उल्लू का आतंक उल्लू की परवाज उल्लू की है जात उल्लू जी का भूत उल्लू बन जाना नहीं उसका होता राम सा उसूल नापता रहा उसूल बाँटता रहा ऋतुएँ तो हैं आनी जानी ऋतुराज ऋतुराज प्रेम के अंकुर को उपजाता ऋषियों की सन्तान ऋषियों की हम सन्ताने हैं ए.पी.जे.अब्दुल कलाम को श्रद्धाञ्जलि एक अशआर एक कविता और एक संस्मरण एक गीत एक गीत-एक कविता एक दिन तो मचल जायेंगे एक दोहा एक ग़ज़ल. झाड़ू की तगड़ी मार एक दोहा और गीत एक नज़्म एक निवेदन एक पाँच दो का टका एक पुराना गीत एक बालकविता एक मरता है एक मुक्तक एक मुक्तक पाँच दोहे एक मुक्तक-एक कुण्डलिया एक रचना एक रहो और नेक रहो एक समय का कीजिए दिन में अब उपवास एक समान विधान से एक हजार एक-विचार एककविता एकगीत एकगीत एकता की धुन बजायें एकल कवितापाठ एकाकीपन एतबार अपने पे कम हैं एतिहासिक विवरण एप्रिलफूल एमिली डिकिंसन एमीलोवेल एला और लवंग एला व्हीलर विलकॉक्स एसी-कूलर फेल ऐ दुलारे वतन ऐतिहासिकआलेख ऐसा करो उपाय ऐसा फूल गुलाब ऐसा हमें विधान चाहिए ऐसे घर-आँगन देखे हैं ऐसे पुत्र भगवान किसी को न दें ऐसे होगा देश महान ओ जालिम-गुस्ताख ओ बन्दर मामा ओ मेरे मनमीत ओटन लगे कपास ओम् जय शिक्षा दाता ओले ओलों की बरसात ओसामा और अब कितना चलूँगा...? और न अब हिमपात करो कंकड़ और कबाड़ कंकड़ देते कष्ट कंकरीट का जाल कंकरीट की ठाँव में कंकरीटों ने मिटा डाला चमन कंचन का गलियारा है कंचन सा रूप कंजूस मधुमक्खी कंस आज घनश्याम हो गये ककड़ी ककड़ी खाने को करता मन ककड़ी बिकतीं फड़-ठेलों पर ककड़ी मौसम का फल अनुपम ककड़ी लम्बी हरी मुलायम ककड़ी-खीरा ककड़ी-खीरा खरबूजा है कचरे के अम्बार में कच्चे घर अच्छे रहते हैं कच्चेघर-खपरैल कट्टरपन्थी जिन्न कठमुल्लाओं की कटी कठिन झेलना शीत कठिन बुढ़ापा बीमारी है कठिन बुढ़ापा होता है कठिन हो गया आज गुज़ारा कड़ाके की सरदी में ठिठुरा बदन है कड़ी धूप को सहते हैं कड़ुए दोहे कण-कण में श्री राम कथा कथानक क़दम क़दम पर घास कदम बड़ायेंगे कदम मिला कर चल रहा जीवनसाथी साथ कदम-कदम पर घास कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में कनिष्ठ पुत्र विनीत का जन्मदिन कनेर मुस्काया है कपड़े का पंडाल कब चमकेंगें नभ में तारे कब तक तुम सन्ताप भरोगे? कब तक मौन रहोगे कब दिवस सुहाने आयेंगे कब बरसेंगे बादल काले कबूतर का घोंसला कब्जा है "रूप" लुटेरों का कभी आकाश में बादल घने हैं कभी उम्मीद मत करना कभी कुहरा कभी न उल्लू तुम कहलाना कभी न करना भंग कभी न करना माफ कभी न टूटे मित्रता कभी नहीं रुकेगी यह परम्परा कभी भी लाचार हमको मत समझना कभी सूरज कमल कमल के बिन सरोवर पर कमल पसरे है कमल पसरे हैं कमा रहे हैं माल कम्प्यूटर कम्प्यूटर और इंटरनेट कम्प्यूटर और इण्टरनेट कम्प्यूटर और जालजगत कम्प्यूटर बन गई जिन्दगी कम्बल-लोई और कोट से कर दिया क्या आपने कर दो काम तमाम कर दो दूर गुरूर कर लेना कुछ गौर कर लो सच्चा प्यार करके विष का पान करगिल विजय दिवस करता नहीं कमाल करता हूँ मैं ध्यान करते दिल पर वार करते श्रम की बात करना ऐसा प्यार करना पूरी मात करना भूल सुधार करना मत कुहराम करना मत दुष्कर्म करना मत हठयोग करना राह तलाश करना सब मतदान करनी-भरनी. काठी का दर्द करने को कल्याण करने बवाल निकले करने मलाल निकले करलो अच्छे काम करवा पूजन की कथा करवाचौछ करवाचौथ करवाचौथ पर करवाचौथ विशेष करवाचौथ-निष्ठा का त्यौहार करें सितम्बर मास में करो आज शृंगार करो तनिक अभ्यास करो पाक को ढेर करो भोज स्वीकार करो मदद हे नाथ करो मेल की बात करो रक्त का दान करो शहादत याद करो सतत् अभ्यास करो साक्षर देश कर्तव्य और अधिकार कर्ता-धर्ता ईश्वर है कर्म हुए बाधित्य कर्मनाशा कर्मों का ताबीज कल की बातें छोड़ो कल हो जाता आज पुराना कल-कल कल-कल शब्द निनाद कलम मचल जाया करती है क़लम मचल जाया करती है कल़मकार लिए बैठा हूँ कलयुग तुम्हें पुकारता कलयुग में इंसान कलियाँ नवल खिलने लगी हैं कलियों ने भी अपना रूप निखारा है कलेण्डर ही तो बदला कल्पनाएँ निर्मूल हो गईं कल्पित कविराज कवर्ग कवायद कौन करता है कवि कवि और कविता कवि लिखने से डरता हूँ कविगोष्ठी कविता कविता का आकार कविता का आथार कविता का आधार कविता का संयोग कविता को अब तुम्हीं बाँधना कविता क्या है? कविताओँ का मर्म कविता् कवित्त कविधर्म कवियों के लिए कुछ जानकारियाँ कव्वाली कष्ट उठाना पड़ता है कसाब कसाब को फाँसी कह राम और रहीम कहते लोग रसाल कहनेभर को रह गया अपना देश महान कहलाना प्रणवीर कहा कीजिए कहाँ खो गई मीठी-मीठी इन्सानों की बोली कहाँ गयी केशर क्यारी? कहाँ जायें बताओ पाप धोने के लिए कहाँ रहा जनतन्त्र कहाँ है आचरण कहानी कहीं आकाश में बादल घने हैं कहीं है हरा कहें मुबारक ईद कहें सुखी परिवार कहो मुबारक ईद काँटे और गुलाब काँटे और सुमन काँटे बुहार लेना काँटों का परिवेश काँटों की चौपाल काँटों की पहरेदारी काँटों ने उलझाया मुझको काँधे पर हल धरे किसान काँप रही है थर-थर काया काँव-काँव कौआ चिल्लाया। काँव-काँवकर चिल्लाया है कौआ काँवड़ का व्यतिरेक काक-चेष्टा को अपनाओ कागज की नाव काग़ज़ की नाव कागज की है नाव कागा जैसा मत बन जाना काठ की हाँडी चढ़ेगी कब तलक काठी का दर्द काने करते राज काम अपना तमाम करते हैं काम कलम का बोलता काम न करना बन्द काम-आराम कामी आते पास कामी और कुसन्त कामुक परिवेश कामुकता का दौर कायदे से जरा चलना सीखो कायदे से धूप अब खिलने लगी है। कार यात्रा कार हमारी हमको भाती कारवाँ कारा उम्र तमाम कारा में सच्चाई बन्द है कार्टूननिस्ट-मयंक खटीमा कार्तिक पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा-गंगा स्नान काल की रफ्तार को छलता रहा हूँ काला अक्षर भैंस बराबर कालातीत बसन्त काले अक्षर काले बादल काव्य (छन्दों) को जानिए काव्य का मर्म काव्यानुवाद काव्यानुवाद-पिता की आकांक्षाएँ.. काश्..कोई मसीहा आये कितना आज सुकून कितनी अच्छी लगती हैं कितनी मैली हो गयी गंगा जी की धार कितनी सुन्दर मेरी काया कितने बदल गये हैं बन्दे कितने सपने देखे मन में किन्तु शेष आस हैं किया बहुत उपकार किये श्राद्ध निष्पन्न किसको गीत सुनाती हो? किसको लुभायेंगे अब किसमें कितना खोट भरा किसलय कहलाते हैं किसान किसान-जवान किसे अच्छी नहीं लगती किसे सुनायें गीत किस्मत में लिक्खे सितम हैं कीटनिकम्मे कीर्तिमान सब ध्वस्त कुंठित हुआ समाज कुगीत कुछ अभिनव उपहार कुछ उड़ी हुई पोस्ट कुछ उद्गार कुछ और ही है पेट में कुछ काँटे-कुछ फूल कुछ क्षणिकाएँ कुछ चित्र ‘‘हाइकू’’ में कुछ तो करो यकीन कुछ तो बात जरूरी होगी कुछ दोहे कुछ भी नहीं असली है कुछ भी नहीं सफेद कुछ मजदूरी होगी कुछ शब्दचित्र कुटिल न चलना चाल कुटिल नहीं होते कभी कुटिल-काँटे लड़ाई ठानते हैं कुटिलकाँटे कुटी बनायी नीम पर कुण्ठा कुण्ठा भरे विचार कुण्ठाओं ने डाला डेरा कुण्डलिया कुण्डलियाँ कुण्डलियाँ-चीयर्स बालाएँ कुदरत का उपहार अधूरा होता है कुदरत का कानून कुदरत का प्रारूप कुदरत का हर काज सुहाना लगता है कुदरत की करतूत कुदरत की खिलवाड़ कुदरत के क्या कहने हैं कुदरत ने फल उपजाये हैं कुदरत ने सिंगार सजाया कुदरत से खिलवाड़ कुन्दन जैसा रूप कुन्दन सा है रूप कुमाऊं के ब्लॉग कुमुद कुमुद का फोटोे फीचर कुम्भ कुम्भ की महिमा अपरम्पार कुर्ता होली खेलता कुर्बानी कुहका कुहरा कुहरा करता है मनमानी कुहरा चारों ओर कुहरा छँटने ही वाला है कुहरा छाया है कुहरा पसरा आज चमन में कुहरा पसरा है आँगन में कुहरे का है क्लेश कुहरे की फुहार कुहरे की मार कुहरे की सौगात कुहरे ने रंग जमाया है कुहासे का आवरण कुहासे की चादर कु्ण्डलिया कूटनीति की बात कूड़ा-कचरा कूर्मा़ञ्चली कविता कूलर कूलर गर्मी हर लेता है कृपा करो अब मात कृषक कृषक-मजदूर मुस्काए कृष्ण बन गये कंस कृष्ण सँवारो काज कृष्ण-कन्हैया के माखन नवनीत बदल जाते हैं कृष्णचन्द्र अधिराज कृष्णचन्द्र गोपाल के बिना केवल कुनबावाद केवल दुर्नीति चलती है केवल यहाँ धनार्थ केवल यादें बची केवल हिन्दू वर्ष क्यों केशव भार्गव "निर्दोष" की 8वीं पुण्यतिथि केशव भार्गव "निर्दोष" की 8वीं पुण्यतिथि के अवसर पर केसर के फूल केसरिया का रंग कैद कैमरे में करो कैसी है ये आवाजाही कैसे अपना भजन करूँ मैं कैसे आज बचाऊँ कैसे आये स्वप्न सलोना? कैसे उजियार करेगा कैसे उतरें पार? कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं कैसे उलझन को सुलझाऊँ कैसे गुमसुम हो जाऊँ मैं कैसे जान बचाऊँ मैं कैसे देश-समाज का होगा बेड़ा पार कैसे नवअंकुर उपजाऊँ? कैसे नियमित यजन करूँ मैं कैसे नूतन सृजन करूँ मैं कैसे नूतन सृजन करूँ मैं? कैसे पायें पार कैसे पौध उगाऊँ मैं कैसे प्यार करेगा? कैसे फूल खिलें उपवन में कैसे बचे यहाँ गौरय्या कैसे मन को सुमन करूँ मैं कैसे मन को सुमन करूँ मैं? कैसे मिलें रसाल कैसे मुलाकात होती कैसे लू से बदन बचाएँ? कैसे शब्द बचेंगे अपने कैसे सरल स्वभाव करूँ कैसे साथ चलोगे मेरे? कैसे सेवा-भाव भरूँ कैसे होंगे पार कैसै आये बहार भला कॉफी कॉफी की चुस्की कॉफी की चुस्की ले लेना कॉफी की तासीर निराली कोई अन्य विकल्प कोई बात बने कोई भूला हुए मंजर कोई वाद-विवाद कोई वादा-क़रार मत करना कोई साथ न दे पाता है कोई सोपान नहीं कोटि-कोटि वन्दन तुम्हें कोमल बदन छिपाया है कोयल आयी मेरे घर में कोयल आयी है घर में कोयल का सुर कोयल गाये गान कोयल चहकी कोयल रोती है कानन में कोयलिया खामोश हो गई कोरोना कोरोना का दैत्य कोरोना की बाढ़ कोरोना की मार कोरोना के रोग से कोरोना के साथ कोरोना को हराना है कोरोना वायरस कोरोना से डर रहा सारा ही संसार कोरोना से सारे हारे कोशिश कौआ कौआ काँव-काँव चिल्लाया कौआ होता अच्छा मेहतर कौड़ी में नीलाम मुहब्बत कौन सुखी परिवार कौन सुने फरियाद कौन सुनेगा सरगम के सुर क्या है प्यार क्या है प्यार-रॉबर्ट लुई स्टीवेंसन क्या हो गया है क्या होता है प्यार क्यों देश ऐसा क्यों राम और रहमान मरा? क्यों होता है हुस्न छली क्यों? क्रिकेट विश्वकप झलकियाँ क्रिसमस का त्यौहार क्रिसमस का शुभकामनाएँ क्रिसमस की बधाई क्रिसमस-डे क्रिस्टिना रोसेट्टी की कविता क्रोध क्षणभंगुर हैं प्राण क्षणिका क्षणिका को भी जानिए क्षणिका क्या होती है? क्षणिकाएँ खंजर उठा लिया खटमल-मच्छर का भेद खटीमा खटीमा (उत्तराखण्ड) का पावर हाउस बह गया खटीमा का परिचय खटीमा में आयोजितपुस्तक विमोचन के कार्यक्रम की रपट खटीमा में आलइण्डिया मुशायरा एवं कविसम्मेलन सम्पन्न खट्टे-मीठे और रसीले खतरे में आज सारे तटबन्ध हो गये हैं खतरे में तटबन्ध हो गये हैं खद्योत खद्योतों का निर्वाचन खबर छपी अखबारों मे ख़बरें अब साहित्य की ख़बरों की भरमार खर-पतवार उगी उपवन में खरगोश खरपतवार अनन्त खरबूजा खरबूजा-तरबूज खरबूजे खरबूजे का मौसम आया ख़ाक सड़कों की अभी तो छान लो खाता-बही है खादी खादी का परिधान खादी-खाकी खादी-खाकी की केंचुलियाँ खान-पान में शुद्धता खान-पान में शुद्धता सिखलाते नवरात्र खान-पान-परिधान विदेशी फिर भी हिन्दी वाले हैं खानदानों में खाने में सबको मिले रोटी-चावल-दाल ख़ार आखिर ख़ार है खार पर निखार है ख़ार से दामन बचाना चाहिए खारा पानी खारा-खारा पानी खारिज तीन तलाक खाली पन्नों को भरता हूँ खाली हुआ खजाना खास आज भी खास खास को होने लगी चिन्ता खास हो रहे मस्त खिचड़ी का आहार खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन खिल उठे फिर से बगीचे में सुमन खिल जायेंगे नव सुमन खिल रहे फूल अब विषैले हैं खिलता फागुन आया खिलता सुमन गुलाब खिलता हुआ बसन्त खिलती बगिया है प्रतिपल खिलते प्रसून काव्य संग्रह खिलते हुए कमल पसरे हैं खिलने लगते फूल खिलने लगा सूखा चमन खिला कमल का फूल खिला कमल है आज खिली रूप की धूप खिली रूप की धूप-दोहा संग्रह खिली सुहानी धूप खिली हुई है डाली-डाली खिले कमल का फूल खिसक रहा आधार खीरा खीरा- खरबूजे खीरे को भी करना याद खुद को आभासी दुनिया में झोका खुद को करो पवित्र ख़ुदगर्ज़ी का हुआ ज़माना खुदा की मेहरबानी है खुद्दारों की खुद्दारी खुमानी खुलकर खिला पलाश खुलकर हँसा मयंक खुली आँखों का सपना खुली ढोल की पोल खुली बहस- खुलूस से खुश हो करके बाँटिए खुश हो करके लोहड़ी खुश हो रहा बसन्त खुश हो रहे किसान खुशनुमा उपवन खुशहाली लेकर आया है चौमास खुशियों का परिवेश खुशियों की डोरी से नभ में अपनी पतंग उड़ाओ खुशियों की सौगात लिए होली आई है खुशियों की हों तरल-तरंगें खुशियों से महके चौबारा खूब थिरकती है रंगोली खूबसूरत लग रहे नन्हें दिये खेत खेत उगलते गन्ध खेत घटते जा रहे हैं खेती का कानून खेतीहर-मजदूर खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है खेतों में झुकी हैं डालियाँ खेतों में शहतूत लगाओ खेतों में सोना बिखरा है खेतों में हरियाली छाई खेल-खिलौने याद बहुत आते खेलते होली मोहनलाल खेलो रंग खो गई इन्सानियत खो गया कहाँ संगीत-गीत खो चुके सब कुछ खोज रहे हम सुख को धन में खोज रहे हैं शीतल छाया खोल दो मन की खिड़की खोलो तो मुख का वातायन ख़्वाब का ये रूप भी नायाब है ख़्वाब में वो सदा याद आते रहे ख़्वाब में वो हमें याद आते रहे गंगा गंगा का अस्तित्व बचाओ गंगा जी की धार गंगा पुरखों की है थाती गंगा बचाओ गंगा बहुत मनोहर है गंगा मइया गंगा में स्नान करो गंगा स्नान गंगास्नान गंगास्नान मेला गंजे गगन में छा गये बादल गगन में मेघ हैं छाये गजल गज़ल ग़जल ग़ज़ल ग़जल "शरीफों के घरानों की" ग़ज़ल "ख़ानदानों ने दाँव खेलें हैं" ग़ज़ल "उल्लओं की पंचायतें लगीं थी" ग़ज़ल "बातें ही बातें" ग़ज़ल की परिभाषा ग़ज़ल के उद्गगार ग़ज़ल में फिर से रवानी आ गयी है ग़जल या गीत ग़ज़ल संग्रह ग़ज़ल हो गयी क्या गजल हो गयी पास ग़ज़ल-गुरूसहाय भटनागर बदनाम ग़ज़ल? ग़ज़ल. ईमान आज तो ग़ज़ल. खून पीना जानते हैं ग़ज़ल. जीवन में खुशियाँ लाते हैं ग़ज़ल. टूटी पतवार लिए बैठा हूँ ग़ज़ल. दो जून की रोटी ग़ज़ल. पत्थरों को गीत गाना आ गया है ग़ज़ल. पाषाणों को गढ़ने में ग़ज़ल. यूँ अपनी इबादत का दिखावा न कीजिए ग़ज़लग़ो ग़ज़ल लिखने के ग़ज़लगो स्वयम् को बताने लगे ग़ज़लनुमा कुछ अशआर गज़लिका ग़ज़लिया-ए-रूप से एक नज़्म ग़ज़लियात-ए-रूप ग़ज़लियात-ए-रूप से एक ग़ज़ल ग़ज़लियात-ए-रूप से मेरी एक ग़ज़ल ग़ज़लियात-ए-रूप’ ग़ज़लियात-ए-रूप” की भूमिका गठबन्धन की नाव गढ़ता रोज कुम्हार गणतंत्र महान गणतन्त्र गणतन्त्र दिवस गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ गणतन्त्र दिवस पर राग यही दुहराया है गणतन्त्र पर्व पर गणतन्त्र महान गणतन्त्रदिवस गणनायक भगवान गणनायक भगवान की महिमा गणपति आओ बारम्बार गणेश चतुर्थी गणेश चतुर्थी पर विशेष गणेश चतुर्दशी गणेश वन्दना गणेशवन्दना गणेशोत्सव पर विशेष गणों का छन्दों में प्रयोग गणों की जानकारी गत गति-यति का क्या काम गदहे गद्दार गद्दारी-मक्कारी गद्दारों को जूता गद्य लिखो गद्य-गीत गद्य-पद्य गद्यगीत गधा हो गया है बे-चारा गधे इस देश के गधे को बाप भी अपना समय पर वो बताते हैं। गधे बन गये अरबी घोड़े गधे हो गये आज गन्दे हैं हम लोग गमों के बोझ का साया बहुत घनेरा है गया अँधेरा-हुआ सवेरा गया दिवाकर हार गया पुरातन भूल गयी चाँदनी रात गयी बुराई हार? गयी मनुजता हार गये आचरण भूल गरम-गरम ही चाय गरमी का अब मौसम आया गरमी में घनश्याम गरमी में जीना हुआ मुहाल गरमी में ठण्डक पहुँचाता मौसम नैनीताल का गरमी में तरबूज सुहाना गरमी है विकराल गरिमा जीवन सार गरिमा दीपक पन्त गरिमा ही शृंगार गर्दन पर हथियार गर्मी गर्मी आई खाओ बेल गर्मी के फल गर्मी को अब दूर भगाओ गर्मी को कर देती फेल गर्मी में खीरा वरदान गर्मी में स्वेदकण गर्मी से तन-मन अकुलाता गली-गली में बिकते बेर गले न मिलना ईद गले पड़े हैं लोग गा रही दीपावली गाँधी का निर्वाण गांधी जी कहते हे राम! गाँधी जी का चित्र गांधी जी का जन्म दिवस गाँधी जी का देश गांधी हम शरमिन्दा हैं गांधीजयन्ती गाँव याद बहुत आते हैं गाँवों का निश्छल जीवन गाओ फिर से नया तराना गाओ मंगल-गीत गाता है ऋतुराज तराने गाना तो मजबूरी है गान्धी-लालबहुदुर जयन्ती गाय गाय-भैंस को पालना गायब अब हल-बैल गिजाई गिनते नहीं हो खामियाँ अपने कसूर पे गिरवीं बुद्धि-विवेक गिरवीं रखा जमाल गिरी जनक पर गाज गिरे शिवधाम के पत्थर गिलहरी गिलहरी दाना-दुनका खाती हो गीत गीत "गाओ फिर से नया तराना" गीत "मेरे ज्येष्ठ पुत्र नितिन का जन्मदिन" गीत और प्रीत का राग है ज़िन्द़गी गीत का व्याकरण गीत की परिभाषा के साथ मेरा एक गीत गीत को भी जानिए गीत गाना जानता है गीत गाने का ज़माना आ गया है गीत ढोंग-आडम्बर गीत न जबरन गाऊँगा गीत बन जाऊँगा गीत मेरा गीत सुनाती माटी गीत सुनाती माटी अपने गीत सुनाते हैं मधुबन में गीत सुर में गुनगुनाओ तो सही गीत-ग़ज़लों का तराना गीत-छन्द लिखने का फैशन हुआ पुराना गीत? गीत. नाविक फँसा समन्दर में गीत. पुनः हरा नही हो सकता गीत. मतवाला गिरगिट रूप बदलता जाता है गीत. मेरे तीन पुराने गीत गीत. वीरों के बलिदान से गीतकार नीरज तुम्हें गीतिक गीतिका गीतिका छन्द गीतिका. आजादी की वर्षगाँठ गीदड़ और विडाल गीला हुआ रुमाल गीूत गुझिया-बरफी गुटबन्दी के मन्त्र गुनगुनाओ तो सही गुब्बारे गुम हो गया उजाला क्यों गुरु नानक का जन्मदिन गुरु नानक जयन्ती गुरु पारस पाषाण है गुरु पूर्णिमा गुरु वन्दना गुरुओं का ज्ञान गुरुओं का दिन गुरुओं का सोपान गुरुकुल में हम साथ पढ़े गुरुदेव का वन्दन गुरुवर का सम्मान गुरू ज्योति का पुंज गुरू पूर्णिमा गुरू पूर्णिमा-गंगा स्नान गुरू वन्दना गुरू सहाय भटनागर गुरू सहाय भटनागर नहीं रहे गुरू-शिष्य गुरूकुल गुरूदक्षिणा गुरूदेव का ध्यान गुरूद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब गुरूनानक का दरबार गुरूपूर्णिमा गुरूवन्दना गुरूसहाय भटनागर बदनाम गुरूसहाय भटनागार गुर्गे देते बाँग गुलमोहर गुलमोहर का रूप गुलमोहर का रूप सबको भा रहा गुलमोहर खिलने लगा गुलमोहर लुभाता है गुलशन का खिलता गलियारा गुलशन बदल रहा है गुलाब दिवस गुलामी बेहतर थी गुलाल-अबीर गूँगी गुड़िया आज गूँगे और बहरे हैं गूँज रहा उद्घोष गूँज रहे सन्देश गूगल-फेसबुक गेहूँ गेहूँ करते नृत्य गैरों से सहारों की गैस सिलेण्डर गैस सिलेण्डर है वरदान गोबर की ही खाद गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे गोमुख से सागर तक जाती गोरा-चिट्टा कितना अच्छा गोरी का शृंगार गोल-गोल है दुनिया सारी गोवर्धन गोवर्धन पूजा गोवर्धन पूजा करो गोवर्धनपूजा और भइयादूज की शुभकामना गोवर्धनपूजा और भइयादूज की शुभकामनाएँ गोविन्दसिंह कुंजवाल गौमाता भूखी मरे गौमाता से प्रीत गौरय्या गौरय्या का गाँव गौरय्या का नीड़ चील-कौओं ने हथियाया है गौरय्या के गाँव में गौरव और गुमान की गौरव का आभास गौरी और गणेश गौरैया का गाँव में गौरैया का गाँव में पड़ने लगा अकाल गौरैया ने घर बनाया ग्यारह दोहे ग्राम्यजीवन ग्रीष्म ग्वाले हैं भयभीत घट गया इक साल मेरी उम्र का घटते जंगल-खेत घटते वन-बढ़ता प्रदूषण घना तुषारापात घनाक्षरी घनाक्षरी गीत घर की रौनक घर बनाना चाहिए घर भर का अभिमान बेटियाँ घर में कभी न लायें हम घर में पढ़ो नमाज घर में पानी घर में बहुत अभाव घर सब बनाना जानते हैं घातक मलय समीर घास घिर-घिर बादल आये घिर-घिर बादल आये रे घुटता गला सुवास का घूम रहा है चक्र घोंसला हुआ सुनसान आज तो घोटालों पर घोटाले घोड़ों से भी कीमती घोर संक्रमित काल में मुँह पर ढको नकाब चंचल “रूप” सँवारा चंचल अठसई (दोहा संग्रह) चंचल चितवन नैन चंचल सुमन चकरपुर चक्र है आवागमन का चक्र है आवागमन का। चढ़ा केजरी रंग चढ़ा हुआ बुखार है चतुर्दशी का पर्व चदरिया अब तो पुरानी हो गयी चना-परमल चन्दा कितना चमक रहा है चन्दा देता है विश्राम चन्दा मामा-सबका मामा चन्दा से मुझको मोह नहीं चन्दा-सूरज चन्द्र मिशन चन्द्रमा सा रूप मेरा चमकती न बिजली न बरसात होती चमकेंगें कब सुख के तारे! चमकेगा फिर से गगन-भाल चमचों की महिमा चमत्कार चमन का सिंगार करना चाहिए चमन की तलाश में चमन हुआ गुलजार चम्पावत जिले की सुरम्य वादियाँ चम्पू काव्य चरित्र चरित्र पर बाइस दोहे चरैवेति का मन्त्र चरैवेति की सीख चरैवेति-मेरा एक गीत चलके आती नही चलता खूब प्रपञ्च चलता जाता चक्र निरन्तर चलते बने फकीर चलना कछुआ चाल चलना कभी न वक्र चलना सीधी चाल। चलने से कम दूरी होगी चला दिया है तीर चला है दौर ये कैसा चली झूठ की नाव चली बजट की नाव चली बसन्त बयार चले आये भँवरे चले थामने लहरों को चलो दीपक जलाएँ हम चलो भीगें फुहारों में चलो होली खेलेंगे चवन्नी चहक रहा मधुमास चहक रहे घर द्वार चहक रहे हैं उपवन में चहक रहे हैं रंग चहक रहे हैं वन-उपवन में चहकता-महकता चमन चहका है मधुमास चहके गंगा-घाट चहके चारों धाम चहके प्यारी सोन चिरैया चाँद बने बैठे चेले हैं चाँद-करवा का पूजन तुम्हारे लिए चाँद-तारों की बात करते हैं चाँद-सूरज चाँदनी का हमें “रूप” छलता रहा चाँदनी रात चाँदनी रात बहुत दूर गई चाँदी की संगत चाचा नेहरू को शत्-शत् नमन चाचा नेहरू तुम्हें नमन चाटुकार सरदार हो गये चापलूस बैंगन चाय चाय हमारे मन को भाई चार कुण्डलियाँ चार चरण-दो पंक्तियाँ चार दोहे चार फुटकर छन्द चार मुक्तक चारों ओर बसन्त हुआ चारों ओर भरा है पानी चालबाजी चासनी में ज़हर मत घोला करो चाहत कभी न पूरी होगी चिंकू तो है शाकाहारी चिंकू ने आनन्द मनाया चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे चिट्ठी-पत्री का युग बीता चिड़िया चिड़ियारानी चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज चित्रकारिता दिवस चित्रग़ज़ल चित्रपट चित्रावली चित्रोक्ति चिन्तन चिन्तन-मन्थन चिमटा आज हमीद चिल्लाया है कौआ चीत्कार पसरा है सुर में चीनी लड़ियाँ-झालर अपने चुगलखोर चुनना केवल एक चुनना नहीं आता चुनाव चुनाव लड़ना बस की बात नहीं चुनावी कानून में बदलाव की जरूरत चुम्बन का व्यापार चुम्बन दिवस चुम्बन दिवस की शुभकामनाएँ चुम्बन-दिवस (KISS-DAY) चुम्बनदिवस चुरा रहे जो भाव चूनरी तो तार-तार हो गई चूस मकरन्द भँवरे किनारे हुए चूहों की सरकार में बिल्ले चौकीदार चेतावनी चेहरा चमक उठा चेहरे हुए झुर्रियों वाले चेहल्लुम का जुलूस चैतन्य की हिन्दी की टेक्सटबुक (अंकुर हिन्दी पाठमाला) चॉकलेट देकर नहीं चॉकलेट देकर नहीं उगता दिल में प्यार चॉकलेट से मत करो चॉकलेट-डे चोदहदोहे चोर पुराण चोरपुराण चोरों के नहीं महल बनेंगे चोरों से कैसे करें अपना यहाँ बचाव चोरों से भरपूर है आभासी संसार चौकस चौकीदार चौदह जनवरी-चौदह दोहे चौदह दिन के ही लिए हिन्दी से है प्यार चौदह दोहे चौदह फरवरी चौदह मार्च-मेरी पौत्री का जन्मदिन चौदह सितम्बर को समर्पित चौदह दोहे चौदह सितम्बर-चौदह दोहे चौपाइयों को भी जानिए चौपाई चौपाई के बारे में भी जानिए चौपाई लिखना सीखिए चौपाई लिखिए चौबीस दोहे चौमासा बारिश से होता चौमासे का मौसम आया चौमासे का रूप चौमासे ने अलख जगाई चौराहों पर खड़े लुटेरे छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन छंदहीनता छटा अनोखी अपने नैनीताल की छठ का है त्यौहार छठ पूजा छठ माँ का उद्घोष छठ माँ का त्यौहार छठ माँ हरो विकार छठ-माँ का त्यौहार छठपूजा छठपूजा त्यौहार छन्द और मुक्तक छन्द क्या होता है? छन्द हो गये क्ल्ष्टि छन्दशास्त्र छन्दों का विज्ञान छन्दों के विषय में जानकारी छब्बीस जनवरी खुशियाँ लेकर आता है छल-छल करती गंगा छल-छल करती धारा छल-फरेब के गीत छल-बल की पतवार छाई हुई उमंग छाई है बसन्त की लाली छाता छाते छाप रहे अखबार छाया का उपहार छाया चारों ओर उजाला छाया देने वाले छाते छाया बहुत अन्धेरा है छाया भारी शोक छाया है उल्लास छाये हुए हैं ख़यालात में छिन जाते हैं ताज छीनी है हिन्दी की बिन्दी छुक-छुक करती आती रेल छुट्टी दे दो अब श्रीमान छुहारे-किशमिश छूट गया है साथ छोटी पुत्रवधु का जन्मदिवस छोटी-छोटी बात पर छोटे पुत्र विनीत का छोटे पुत्र विनीत का जन्मदिन छोटे पुत्र विनीत का जन्मदिवस छोटों को सम्बल दिया लिया बड़ों से ज्ञान छोड़ विदेशी ढंग छोड़ा पूजा-जाप छोड़ा मधुर तराना जंग ज़िन्दगी की जारी है जंगल का कानून जंगल की चूनर धानी है जंगल के शृंगाल सुनो जंगल में पलाश मुस्काया जंगलों के जानवर जंगी यान रफेल जकड़ा हुआ है आदमी जग उसको पहचान न पाता जग का आचार्य बनाना है जग के झंझावातों में जग के देव महेश जग के नियम-विधान जग को लुभा गये हैं जग में अन्तरजाल जग में ऊँचा नाम जग में केवल योग जग में माँ का नाम जग में सबसे न्यारा मामा जग है एक मुसाफिरखाना जगत है जीवन-मरण का जगदम्बा माँ आपकी जगमग सजी दिवाली जगह-जगह मतदान जड़े न बदलें पेड़ जन-गण का विश्वास जन-गण का सन्देश जन-गण रहे पछाड़ जन-जन के राम। जन-जागरण जन-जीवन बेहाल जन-मानस बदहाल जन.2017 में मेरा गीत जनता का जनतन्त्र जनता का तन्त्र कहाँ है जनता का धीरज डोल रहा जनता के अरमान जनता जपती मन्त्र जनता है कंगाल जनता है मजबूर जनमानस के अन्तस में आशाएँ मुस्काती हैं जनमानस लाचार जनवरी-2017 जनसेवक खाते हैं काजू जनसेवक लाचार जनहित के कानून को जन्म दिन जन्म दिन मेरी श्रीमती जन्म दिवस जन्मदिन जन्मदिन की दे रहे हैं सब बधायी जन्मदिन पर रूप मुझको भा गया है जन्मदिन फिर आज आया जन्मदिन योगिराज श्रीकृष्णचन्द्र महाराज जन्मदिन है आज मेरा जन्मदिन-मा. पुष्कर सिंह धामी जन्मदिन. मेरे ज्येष्ठ पुत्र का जन्मदिन जन्मदिवस जन्मदिवस की बेला पर जन्मदिवस चाचा नेहरू का जन्मदिवस चाचा नेहरू का भूल न जाना जन्मदिवस पर विशेष जन्मदिवस विशेष जन्मदिवस विशेष) जन्मदिवस है आज जन्मभूमि में राम जन्माष्टमी जन्मे थे धनवन्तरी जब खारे आँसू आते हैं जब पहुँचे मझधार में टूट गयी पतवार जब मन में हो चाह जब-जब मक्कारी फलती है जमा न ज्यादा दाम करें जमाना बहुत बदल गया जमीं की सब दरारों को जय बोलो नन्दलाल की जय माता की कहने वालो जय विजय जय विजय 2019 में मेरी बालकविता जय विजय अगस्त-2019 जय विजय के फरवरी जय विजय जुलाई-2018 जय विजय जून जय विजय पत्रिका में मेरा गीत जय विजय पत्रिका में मेरी बालकविता जय विजय मई जय विजय मासिक पत्रिका के नवम्बर-2016 अंक में मेरी ग़ज़ल जय विजय में मेरी बाल कविता जय विजय-अप्रैलः2020 जय विजय-नवम्बर जय शिक्षा दाता जय श्री गणेश जय सिंह आशावत जय हिन्दी-जय नागरी जय हो देव महेश जय हो देव सुरेश जय-जय गणपतिदेव जय-जय जगन्नाथ भगवान जय-जय जय वरदानी माता जय-जय-जय गणपति महाराजा जय-जवान और जय-किसान जय-विजय जय-विजय अगस्त जय-विजय पत्रिका जय-विजय पत्रिका में मेरा गीत जय-विजय पत्रिका अक्टूबर-2016 में मेरी ग़ज़ल प्रकाशित जयविजय जयविजय नवम्बर 2018 जयविजय मई-15 जयविजय में मेरी ग़ज़ल जयविजय-जून जरी-सूत या जूट के धागे हैं अनमोल जरूरी है जल का स्रोत अपार कहाँ है जल जीवन की आस जल दिवस जल बिना बदरंग कितने जल बिना बेरंग कितने जल रहा च़िराग है ज़लज़ले नाख़ुदा नहीं होते जलद जल धाम ले आये जलधारा जलमग्न खटीमा जहरीला पेड़:A Poison Tree जहरीली बह रही गन्ध है जाँच-परख कर मीत जागरण जागा दयानन्द का ज्ञान जागेगा इंसान जाति-धर्म के मन्त्र जातिवाद में बँट गये जादू-टोने जान बिस्मिल हुई जानिए मेरे खटीमा को भी जाने कितने भेद जाने की तैयारी जाने वाला साल जाम जाम ढलने लगे ज़ारत जालजगत जालजगत की शाला है जालिम जमाने में ज़ालिमों से पुकार मत करना जिजीविषा जितना चाहूँ भूलना उतनी आती याद जितने ज्यादा आघात मिले जिनके पास जमीर ज़िन्दगी ज़िन्दग़ी अब नरक बन गयी है ज़िन्दगी इक खूबसूरत ख़्वाब है जिन्दगी का सफर निराला है ज़िन्दग़ी का सहारा ज़िन्दगी की जेल में मैं पल रहा हूँ ज़िन्दग़ी की सलीबों पे चढ़ता रहा ज़िन्दग़ी के तीन मुक्तक ज़िन्दग़ी के लिए जिन्दगी जिन्दगी पे भारी है ज़िन्दग़ी भर उन्हें आज़माते रहे जिन्दगी भर सलामत रहो साजना ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना ज़िन्दग़ी में न ज़लज़ले होते जिन्दगी में प्यार-Life in a Love जिन्दगी में बसन्त छाया है ज़िन्दग़ी सस्ती हुई जिन्दगी है बस अधूरी ज़िन्दग़ी जिन्दा उसूल हैं ज़िन्दादिली जिन्दादिली का प्रमाण दो जियो ज़िन्दगी को जिसमें पुत्रों के लिए होते हैं उपवास जी उठेगी जिन्दगी जी रहा अब भी हमारे गाँव में जीत का आचरण जीत रही है मौत जीते-जी की माया जीना पड़ेगा कोरोना के साथ जीना-मरना सदा से जीने का अंदाज जीने का अन्दाज़ जीने का अन्दाज़ निराला जीने का आधार हो गया जीने का ढंग जीव सभी अल्पज्ञ जीवन जीवन आशातीत हो गया जीवन आसान बना देना जीवन का गीत जीवन का चक्र जीवन का चल रहा सफर है जीवन का ताना-बाना जीवन का भावार्थ जीवन का विज्ञान जीवन का संकट गहराया जीवन का है मर्म जीवन किताबी हो गया जीवन की अब शाम हो गई जीवन की आपाधापी जीवन की आपाधापी में जीवन की ये नाव जीवन की राह जीवन की है भोर तुम्हारे हाथों में जीवन के आधार जीवन के संग्राम में जीवन के हैं खेल जीवन के हैं ढंग निराले जीवन के हैं मर्म जीवन को हँसी-खेल समझना न परिन्दों जीवन जटिल जलेबी जैसा जीवन जीना है दूभर जीवन तो बहुत जरा सा है जीवन दर्शन समझाया जीवन देती धूप जीवन पतँग समान जीवन बगिया चहके-महके जीवन में अभिसार जीवन में सन्तुष्ट जीवन में है मित्रता जीवन ललित-ललाम जीवन श्रम के लिए बना है जीवन है बदहाल जीवन है बेहाल जीवन-पथ पर बढ़ना सीखो जीवनचक्र जीवनयात्रा जीवित देवी-देवता दुनिया में माँ-बाप जीवित रहती घास जीवित हुआ पराग जीवित हुआ बसन्त जीूवनचक्र जुलाईः18 जुल्म के आगे न झुकेंगे जुल्म झोंपड़ी पर ढाया जूझ रहा है देश जूती-टोपी बनी सहेली जूतों की बौछार जून-2109 जेठ लग रहा है चौमासा जैविकपिता जैसे खर-पतवार जो नंगापन ढके बदन का हमको वो परिधान चाहिए जोकर जोकर खूब हँसाये जोकर-बौने ज्ञान का तुम ही भण्डार हो ज्ञान का प्रसाद लो ज्ञान की अमावस ज्ञान न कोई दान ज्ञान हुआ विकलांग ज्ञान-चक्षु दो खोल ज्ञानी भी मूरख बनें ज्यादा दाद मिला करती है ज्यादा दोहाखोर ज्यादातर तो कट गयी ज्येष्ठ पुत्र का जन्मदिन ज्येष्ठ पुत्र नितिन का जन्मदिन ज्येष्ठ पूर्णिमा झंझावात बहुत गहरे हैं झंझावातों में झटका और हलाल झड़े सलोने पात झण्डे रहे सँभाल झनकइया मेला गंगास्नान झनकइया-खटीमा झरता हुआ प्रपात झरने करते शोर झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई की 160वीं पुण्यतिथि पर विशेष झाँसी की रानी झाड़ुएँ सवाँर लो झालर-बन्दनवार झिलमिल करते दीप झील सरोवर ताल झुक गयी है कमर झुकेगी कमर धीरे-धीरे झूठ की तकरीर बच गयी झूठ जायेगा हार झूठे शोध-प्रबन्ध झूमर से लहराते हैं झूमर से सोने के गहने झूल रही हैं ममता-माया झूला झूले कैसे पड़ें बाग में? झेल रहा है देश झेलना जरूरी है झोंके मस्त बयार के टाबर टोली टिप्पणियाँ टिप्पणी और पसन्द टिप्पणी पोस्ट टुकड़ा-एमी लोवेल टूटा कुनबेवाद से टूटी-फूटी रोमन-हिन्दी टैडी का उपहार टॉम-फिरंगी टॉम-फिरंगी प्यारे-प्यारे टोपी टोपी हिन्दुस्तान की टोपी है बलिदान की ठलवे-जलवे ठहर गया जन-जीवन ठिठुर रहा है गात ठिठुर रही है सबकी काया ठिठुरा बदन है ठिठुरा सकल समाज ठेंगा न सूरज को दिखाना चाहिए ठेले पर बिकते हैं बेर ठोकरें खाकर सँभलना सीखिए डमरू का अब नाद सुनाओ डमरू का तुम नाद सुनाओ डरता हूँ डरा और धमका रहा कोतवाल को चोर डरा रहा देश को है करोना डाली को कैसे बौराऊँ डूबे गोताखोर डॉ. गंगाधर राय डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय 'नन्द' डॉ. राजविन्दर कौर डॉ. राजविन्दर कौर द्वारा ग़ज़लियात-ए-रूप” की भूमिका डॉ. सारिका मुकेश डॉ. सुभाष वर्मा डॉ. हरि 'फैजाबादी' डॉ.धर्मवीर डॉ.राष्ट्रबन्धु डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ डॉक्टर गोपेश मोहन जैसवाल डोल रहा ईमान डोलियाँ सजने लगीं ढंग निराला होली के त्यौहार का ढंग निराले होते जग में मिले जुले परिवार के ढंग हमारे बदल गये ढकी ढोल की पोल ढल गयी है उमर ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए ढाईआखर ढुल-मुल नहीं उसूल ढोंग और षड़यन्त्र ढोंग-आडम्बर ढोंगी और कुसन्त ढोंगी साधू ढोलक और मृदंग ढोलकी का सुर नगाड़ा हो गया तंज करने से बिगड़ती बात हैं तजना नहीं उमंग तजो पश्चिमी रीत तन-मन मेरा पीत हो गया तन्त्र अब खटक रहा है तन्त्र ये खटक रहा है तपते रेगिस्तानों में तब मैने माँ तुम्हें पुकारा तब-तब मैं पागल होता हूँ तबाही के कुछ ताजा चित्र तमन्नाओं की लहरे हैं तम्बाकू दो त्याग तम्बाकू का रोग तम्बाकू को त्याग दो तम्बाकू दो छोड़ तम्बाकू निषेध दिवस तम्बाकू निषेध दिवस पर सन्देश तरबूज तरस रहा माँ-बाप की तवर्ग ताकत देती धूप ताजमहल का सच ताजमहल की हकीकत तान वीणा की माता सुना दीजिए ताना-बाना ताल-लय उदास हैं तालाबों की पंक तिगड़ी की खिचड़ी तिज़ारत तिज़ारत में सियासत है तिजारत ही तिजारत है तितली तितली आई! तितली आई!! तितली करती नृत्य तितली है फूलों से मिलती तिनका-तिनका दोहा संग्रह तिनके चुन-चुन लाती हैं तिरंगा बना देंगे हम चाँद-तारा तिलक दूज का कर रहीं तीज आ गई है हरियाली तीजो का आया त्यौहार चलो झूला झूलेंगे तीजो का त्यौहार तीन तीन अध्याय तीन तलाक तीन दिनों से भार बारिश तीन पत्थरों का चूल्हा तीन मिसरी शायरी (तिरोहे) तीन मुक्तक तीन साल का लेखा जोखा तीन-लाइना तीस सितम्बर तुकबन्दी तुकबन्दी को ही अपनाओ तुकबन्दी मादक-उन्मादी तुकबन्दी से खिलता उपवन तुकबन्दी से होता गायन तुकबन्दी से होता वन्दन तुम पंखुरिया फैलाओ तो तुम साथ क्या निभाओगे? तुम हो दुर्गा रूप तुमने सबका काज सँवारा तुमसे ही मेरा घर-घर है तुमसे ही है दुनियादारी तुम्हारे चरण-रज का कण चाहता हूँ तुम्हारे हाथों में तुम्ही मेरी आराधना तुम्हीं ज्ञान का पुंज तुम्हीं साधना-तुम ही साधन तुलसी का पौधा गुणकारी तुलसी का बिरुआ गुणकारी तुलसी-पीपल-नीम तुलसीदास तुहिन-हिम नभ से अचानक धरा पर झड़ने लगा तू माँ का वरदान ना पाये तू से आप और सर तूफानों से लड़ते जाओ तूफानों से लड़ने में तेइस दोहे तेजपाल का तेज तेरह दोहे तेरह सितम्बर तेल कान में डाला क्यों? तेल-लकड़ी तेवर नहीं अब वो रहे तो कोई बात बने तोंद झूठ की बढ़ी हुई है तोता तोल-तोलकर बोल त्योहारों की रीत त्यौहार त्यौहार तीज का त्यौहारों की गठरी त्यौहारों की शृंखला त्यौहारों पर किसी का खाली रहे न हाथ थक जायेगी नयी रीत फिर थम जाये घुसपैंठ थमे हुए जल में सदा बन जाते शैवाल थर-थर काँपे देह थान मखमल बुन रहा अब भी हमारे गाँव में थाली के बैंगन थीम चुराई मेरी थोड़ी है अवशेष थोड़े दिन का प्यार थोड़े दोहाकार है दंगों का है जोर दबा सुरीला कोकिल का सुर दबी हुई कस्तूरी होगी दम घुटता है आज चमन में दम घुटता है आज वतन में दमक उठा है रूप भी’ दया करो हे दुर्गा माता दयानन्द पाण्डेय दरक रहे हैं शैल दरबान बदलते देखे हैं दरवाजे की दस्तक दर्द का मरहम दर्द का मरहम लगा लिया दर्द का सिलसिला दिया तुमने दर्द की छाँव में मुस्कराते रहे दर्द दिल में जगा दिया उसने दर्पण असली 'रूप' दिखाता दर्पण काला-काला क्यों दर्पण में तसबीर दलबदलू दशहरा दशहरा पर दस दोहे दशहरा-दस दोहे" दस दोहे दहे दहेज दाँव-फन्दे आ गये दाग़ तो दाग़ है ज़िन्दग़ी के लिए दाढ़ी में है चोर दादी अम्मा दादी जी! प्रसाद दे दो ना दाम नहीं है पास दामिनी काण्ड की बरसी दामिनी को भावभीनी श्रद्धांजलि दामोदर नरेन्द्र भाई मोदी दाल-भात अच्छे लगें दिखने लगा उजाड़ दिखलानी होगी अपनी खुद्दारी दिखायी तो नहीं जाती दिखावा हटाओ दिन आ गये हैं प्यार के दिन में छाया अँधियारा दिन में सितारों को बुलाते हो दिन है कितना खास दिन है देवोत्थान का व्रत-पूजन का खास दिन हैं अब नजदीक दिनकर है भयभीत दिनांक 27-04-2016 दिया तिरंगा गाड़ दिल दिल की आग दिल की आवाज दिल की बात दिल की बेकरारी दिल की लगी क्या चीज़ है दिल के करीब और दिल से दूर दिल को बेईमान न कर दिल तो है मतवाला गिरगिट दिल मिला नहीं होता दिल में इक दीप जलाकर देखो दिल-ए-ज़ज़्बात दिलों में उल्फतें कम हैं दिल्लगी समझते हैं दिल्ली दिवस आज का खास दिवस गये अनुराग के दिवस बढ़े हैं शीत घटा है दिवस बहुत है खास दिवस सुहाने आयेंगे दिवाली दिवाली को मनाएँ हम दिवाली मेला दिवाली मेला-नानकमत्ता साहिब दिव्य स्वरूप विराट दिशाहीन को दिशा दिखाते दिसम्बर दीन-ईमान के चोंचले मत करो दीन-ईमान पल-पल फिसलने लगे दीप अब कैसे जलेगा...? दीप खुशियों के जलाओ दीप खुशियों के जलें दीप जगमगाइए दीप जलते रहे दीप बनकर जल रहा हूँ दीप मन्दिर में जलाओ दीपक जलाएँ बार-बार दीपक-बाती दीपशिखा सी शान्त दीपावली दीपावली की शुभकामनाएँ दीपावली के दोहे दीपावली. अँधियारा हरते जाएँगे दीपों की दीपावली दीमक ने पाँव जमाया है दीमकों से चमन को कैसे बचायें? दीवाली पर देवता दुख-सन्ताप बहुत झेले हैं दुखद समाचार दुनिया का भूगोल दुनिया की नियति दुनिया की है रीत दुनिया को दें ज्ञान दुनिया भर में सबसे न्यारा दुनिया में इंसान दुनिया में नाचीज दुनिया में परिवार दुनिया वक्र है दुनिया से वह चला गया दुनियादारी दुनियादारी जाम हो गई दुर्गा जी की वन्दना दुर्गा जी के नवम् रूप हैं दुर्गा माता दुर्दशा दुल्हिन बिना सुहाग के लगा रही सिंदूर दुश्मन से लोहा लेना होगा दुष्ट हो रहे पुष्ट दूध-दही अपनाना है दूर करो अज्ञान दूर निकल जाते हैं बादल दूरी की मजबूरी दूषित हुआ वातावरण दूषित है परिवेश दे दो ज्ञान भवानी माता दे रहा मधुमास दस्तक देंगे नाम मिटाय देंगे बदल लकीर देंगे मिटा गुरूर देख तमाशा होली का देख बसन्ती रूप देखना इस अंजुमन को देखो कितना मुक्त है आभासी संसार देता है आदित्य देता है ऋतुराज निमन्त्रण देता है सन्देश देते हैं आनन्द देते हैं आनन्द अनोखा रिश्ते-नाते प्यार के देनी पड़ती घूस देव उत्थान देव दिवाली पर्व देव दीपावली देवउठनी देवउठान देवदत्त 'प्रसून' देवदत्त 'प्रसून' जी हमारे बीच नहीं रहे। देवदत्त सा शंख देवपूजन के लिए सजने लगी हैं थालियाँ देवभूमि अपना भारत देवालय का सजग सन्तरी देवालय में बूढ़ा बरगद जिन्दा है देवों का उत्थान देवों का गुणगान देवोत्थान देवोत्थान प्रबोधिनी एकादशी देश कहाये विश्वगुरू तब देश का दूषित हुआ वातावरण देश की अंजुमन बेच देंगे देश की कहानी देश की हालत देश को सुभाष चाहिए देश भक्ति गीत देश-प्रेम गीत देश-भक्ति गीत देश-समाज देशप्रेम का दीप जलेगा देशभक्त गुमनाम हो गये देशभक्ति देशभक्ति का जाप देशभक्ति गीत देशभक्तिगीत देशभक्तों का नमन होना चाहिए देहरा दून-सखनऊ के चित्र देहरादून यात्रा देहरादून यात्रा-दस दोहे दो अक्टूबर दो आँखें दो आँखों की रीत दो कुणडलियाँ दो कुण्डलियाँ दो गीत दो जून दो जून की रोटी दो जून रोटी दो पक्षों के बोल दो बच्चे होते हैं अच्छे दो मुक्तक दो शब्द दो हजार का नोट दो हजार के नोट दो हाथों का घोड़ा दो-अक्टूबर दोनों पुस्तकों का विमोचन दोपहरी में शाम हो गई दोस्ती-दग़ाबाजी दोह दोहा दोहा ग़ज़ल दोहा गीत दोहा छन्द दोहा पच्चीसी दोहा बत्तीसी दोहा महिमा दोहा सप्तक दोहा-अष्टक दोहा-गीत दोहा-मुक्तक दोहाग़ज़ल दोहागीत दोहागीत "गुरू पूर्णिमा" दोहागीत. उपवन का परिवेश दोहागुणगान दोहाचित्र दोहाचोर दोहाछन्द दोहाछन्द को भी जानिए दोहावली दोहाष्टक दोहासंग्रह दोहे दोहे "हनुमान जयन्ती" दोहे "पैंतीस दोहे" दोहे "बाँटो कुछ आनन्द" दोहे "राजनीति में हंस" दोहे और मुक्तक दोहे का विन्यास दोहे पर दोहे दोहे रखना सम अनुपात दोहे-जलता हुआ अलाव दोहे. उलटी गिनती पाक की दोहे. करवाचौथ सुहाग का दोहे. धीरज से लो काम दोहे. पर्व लोहिड़ी का हमें दोहे. पावस का आगाज दोहे. बहुत अनोखे ढंग दोहे. बापू जी के देश में बढ़ने लगे दलाल दोहे. भइयादूज दोहे. भारत देश महान दोहे. माता का अवतार दोहे. योगिराज का जन्मदिन दोहे" रचता जाय कुम्हार दोहेे दोहे् दोहों का मर्म दोहों पर दोहे दोहों में कुछ ज्ञान दोहों में फरियाद दोेहे दोौहे धड़कन पढ़ते जाओ धड़कन बिना शरीर धधक रही है आग धन का खुल्ला खेल धन में से कुछ दान धनतेरस धनतेरस त्यौहार धन्य अयोध्या धाम धन्यवाद-ज्ञापन धन्वन्तरि जयन्ती धन्वन्तरि संसार को देते जीवनदान धन्वन्तरी जयन्ती धरती और पहाड़ पर है कुदरत की मार धरती का त्यौहार धरती का शृंगार धरती का सन्ताप धरती का सिंगार धरती का सौन्दर्य धरती गाती गान धरती ने पहना नया घाघरा धरती ने है प्यास बुझाई धरती पर नजारों को बुलाते हो धरती पर हरियाली छाई धरती है बदहाल धरा का प्रभावशाली चित्रण धरा के रंग धरा के रंग की भूमिका धरा को रौशनी से जगमगायें धरा दिवस धरा हुई बेचैन धरा-दिवस धर्म रहा दम तोड़ धर्म हुआ मुहताज धर्मान्तरण के कारण धागे हैं अनमोल धान धान की बालियाँ धान खेतों में लरजकर पक गया है धान्य से भरपूर खेतों में झुकी हैं डालियाँ धारण त्रिशूल कर दुर्गा बन धारा यहाँ विधान की धावकमन बाजी जीत गया धीरज रखना आप धीरे-धीरे धीरे-धीरे घट रहा लोगों में अब प्यार धुँधली सी परछाई में धूप धूप अब खिलने लगी है धूप गुनगुनी पाने को धूप बहुत विकराल धूप में घर सब बनाना जानते हैं धूप यौवन की ढलती जाती है धूप हुई विकराल धूप-छाँव का खेल धूल चाटता रहा धो दिया कलंक ध्येय और संकल्प न कोई धर्म-न ईमान न जाने टूट जायें कब न फिर मात होती न शह कोई पड़ती नंगा आदमी भूखा विकास नंगा आदमी-भूखा विकास नंगेपन के ढ़ंग नई गंगा बहाना चाहता हूँ नखरे भी उठाये जाते हैं नगमगी 'रूप' ढल जायेगा नगमे सुखद बहार के नगर में नाग छलते हैं नज़र में कुछ और नजरबन्द हो गयी देश में अपनी प्यारी खादी है नजारा देख मौसम का नज़ारे बदल गये नदी का काम है बहना नदी के रेत पर नदी-नाले उफन आये नन्हे-मुन्ने नन्हें दीप जलायें हम नन्हेसुमन नफरतों का सिला दिया तुमने नभ पर घटा घिरी है काली नभ पर बादल छाये हैं नभ पर बादलों का है ठिकाना नभ में अब घनश्याम नभ में घना कुहासा छाया नभ में बदली काली लेकर आया है चौमास नभ में लाल-गुलाल उड़े हैं नभ है मेघाछन्न नमकीन पानी में बहुत से जीव ठहरे हैं नमन नमन आपको मात नमन तुम्हें शत् बार नमन शैतान करते हैं नमन हजारों बार नयनों की भाषा नया आ गया साल नया गीत आया है नया जमाना आया है नया राष्ट्र निर्माण करेंगे नया साल नया साल 2017 नया साल आया है नया साल दे हर्ष नया साल-2021 नया सृजन होता है नयागाँव-सितारगंज नयागीत नयासाल नयी रीत फिर नयी-कविता नये वर्ष का अभिनन्दन नये वर्ष का अभिनन्दन! नये वर्ष में आप हर्षित रहें नये साल का अभिनन्दन नये साल का सूरज नये साल की दस्तक नये साल के कदम पड़ने वाले हैं नये साल के साथ में सुधरेंगे हालात नर का निर्बल पक्ष नरक चतुर्दशी नरकचतुर्दशी नरेन्द्र भाई मोदी को जन्म दिन की शुभकामनाएँ नरेन्द्र मोदी नर्क चतुर्दशी नव वर्ष नव वर्ष चलकर आ रहा नव विहान छेड़ता नव सम्वतसर नव सम्वत्सर आया है नव-गीत नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे नव-वर्ष मनायें अब कैसे नवअंकुर उपजाओगे कब नवगीत नवगीत मचल जाते हैं नवजात नवदुर्गा नवदुर्गा के नवम् रूप हैं नवदुर्गा जी की आरती नवपल्लव परिधान नवरात्र नववर्ष नववर्ष मुबारक हो सबको नववर्ष से आशाएँ नववर्ष-2012 नवसम्वत से चमन का नवसम्वतसर नवसम्वतसर 2077 नवसम्वतसर मन में चाह जगाता है नवसम्वत्सर नवसम्वत्सर आ गया नवोदित नही ज़लज़लों से डरता है नहीं आता नहीं कभी मन को भटकाया नहीं किसी का जोर नहीं घटे क्यों दाम? नहीं चलेगा वंश नहीं जाती नहीं जेब में दाम नहीं पहचान पाये रूप नहीं रहा लालित्य नहीं रही वो बात नहीं राम का राज नहीं शीत का अन्त नहीं समय अनुकूल नहीं सरल है काम नहीं सुहाता ठण्डा पानी नहीं हमें अनुदान चाहिए नहीं हमें मंजूर नागपंचमी नागपंचमी-तीज नागपञ्चमी नागपञ्चमी आज भी श्रद्धा का आधार नागपञ्चमी श्रद्धा का आधार नागपञ्चमी-हरेला रक्षाबन्धन-तीज नागफनी का रूप नागफनी के फूल नागों के नेवलों से सम्बन्ध हो गये हैं नाज़ुक कलाई मोड़ ना नानकमत्ता साहिब का दिवाली मेला नानकमत्तासाहिब नानी का घर नानी का घर सुख का धाम नाम के इंसान हैं नाम गिलहरी नाम बड़े हैं दर्शन थोड़े नाम है आचमन जाम ढलने लगे नारायणदत्त तिवारी नारि नारि न हुआ नारिशक्ति नारी नारी का सम्मान करो नारी की आवाज नारी की कथा-व्यथा नारी की महिमा नारी की व्यथा... नारी दिवस नारी दुर्गा रूप नारी रूप अगर देते निखरा हुआ चन्द्रमा निखरा-निखरा गात निखरा-निखरा है नील गगन निखरी-निखरी धूप निज पुरुखों को याद निठल्ला-चिन्तन नित नया पर्व नितिन नितिन का जन्मदिन नितिन शास्त्री नित्य नयी तान है नित्य-नियम से योग निन्दा प्रस्ताव निमन्त्रण निम्बौरी अब आयीं है नीम पर निम्बौरी आयीं है अब नीम पर नियति नियम और कानून नियमन में है खोट नियमों को अपनाओगे कब निर्झर निर्झर हमें सिखाते हैं निर्धन हुए विपन्न निर्मल गंगा धार कहाँ है निर्मल जल बरसाते हैं निर्मल नीर पिलाते हैं निर्मल हुए पहाड़ निर्मल हो परिवेश निर्वाचन निर्वाचनी बयार निर्वेद निश्छल पावन प्यार निष्ठा का त्यौहार निष्ठुर उपवन देखे हैं निष्पक्ष चुनाव के लिए नींद टूट जाया करती है... नीड़ को नन्हें दियों से जगमगायें नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें नीड़ बनाया है नीति के दोहे नीति-रीति के पथ को गुरु ही बतलाता नीतिदशक नीम नीम की छाँव नीम की छाँव नहीं रही नीर पावन बनाओ करो आचमन नीरज जी से अन्तिम भेंट नीले-नीले अम्बर में नूतन का अभिनन्दन नूतन का करता अभिनन्दन नूतन वर्ष नूतन वर्ष का अभिनन्दन नूतन वर्षःअच्छे दिन? नूतन वर्षाभिनन्दन नूतन सम्वत्सर आया है नूतनवर्ष नूतनसम्वत्सर आया है नून नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे नेट के सम्बन्ध नेट सबल आधार नेता नेता आया बिनबुलाया है नेता का श्रृंगार नेता के पास जवाब नही नेता बाद में नेता महान नेता महान हैं नेताओं की तफरी नेताजी नेत्र शिव का खुल गया नेशनल दुनिया में मेरी बाल कविता नेह नेह का बिरुआ यहाँ कैसे पलेगा नेह के दीपक नैनीताल यात्रा नैसर्गिक शृंगार नैसर्गिक स्वाद मिठास का नोक लेखनी की भाला बन जाया करती है नोट पाँच सौ के हुए सभी पुराने बन्द नौ दिन तक उपवास नौ शेरी ग़ज़ल नौकरशाही भ्रष्ट नौका में है छेद कहीं नौका लहरों में फँसी बेबस खेवनहार नौशेरी ग़ज़ल पं. गोविन्द बल्लभ पन्त पं. नाराचण दत्त तिवारी पं. लाल बहादुर शास्त्री पं.नारायणदत्त तिवारी पंक में खिला कमल पंक से मैला हुआ है आवरण पंखुड़ियों के रंग पंच तत्व की देह पंच पर्व नजदीक पंच पर्वों की शुभकामनाएँ पंछी पंजी-दस्सी-चवन्नी पकवानों का थाल लिए होली आई है पक्के आम पचास साल पहले इसे लिखा था पच्चीस दोहे पछुआ पश्चिम से है आई पठनीय ही नहीं संग्रहणीय भी है पड़ रहीं रिमझिम फुहारें पड़ने लगा अकाल पड़ने लगी फुहार पड़ने वाले नये साल के हैं कदम पड़ी कूप में भाँग पढ़ गीता के श्लोक पढ़ लेते हैं सारी भाषा पढ़ना बच्चों का अधिकार पढ़ना बहुत जरूरी है पढ़ना-लिखना पढ़ना-लिखना मजबूरी है पढ़ने में भी ध्यान लगाओ पढ़े-लिखे मुहताज़ पण्डित टीकाराम पतंग पतला सा शॉल पत्थर पत्थर दिल कब पिघलेंगे पत्थरों को तोड़ ना पत्थरों में से धारे निकल आयेंगे पत्रकारिता दिवस पत्रिका एवं पुस्तकों का विमोचन पथ उनको क्या भटकायेगा पथ का निर्माता हूँ पथ नहीं सरल यहाँ पथ नापते हैं चरण पथ पर जाना भूल गया पथ हमें प्रकाश का दिखला रही दीपावली पथ होते अवरुद्ध पथरीला पथ अपनाया है पनप रहा व्यभिचार पनप रहा है भोग पनप रहे हैं शूल पन्थ अनोखा बतलाया पन्द्रह दोहे पन्नियाँ बीन रहा है बचपन परदेशियों ने डेरा डाला हुआ चमन में परदेशी परमपिता का दूत परवाना फड़कता है पराक्रम जीवन में अपनाओ परिणय को अपने हुए परिन्दे आ गये परिन्दे किधर गये परिभाषा परिभाषाएँ परिवर्तन परिवेश परिवेश में गजल परिश्रमी धुनता काया परीक्षा परेशान हैं आम पर्यावरण पर्यावरण का नियन्ता पर्यावरण दिवस पर्यावरण बचाइए पर्यावरण बचाइए धरती कहे पुकार पर्यावरण बचाइए बचे रहेंगे आप पर्व अहोई पर्व अहोई खास पर्व अहोई-अष्टमी पर्व नया-नित आता है पर्व लोहड़ी में करो पर्व हरेला आज पर्वत पर चढ़ना होता आसान नहीं पर्वत पर हिम से जमे पर्वत पर हिमपात पर्वत बन कर डटे रहेंगे पर्वत सभी को भा रहे हैं पर्वत से बह निकले धारे पर्वतीयमहिला पर्वों का परिवेश पर्वों का विन्यास पल में तोला पल में माशा पल रहीं कैदियों की तरह पलाश के फूल पवन बसन्ती चलकर वन में आया पवनपुत्र हनुमान पश्चिम अनुकरण का अब तो कर दो त्याग पश्चिम का प्रणय सप्ताह पश्चिम की है सभ्यता पश्चिम के किरदार पश्चिम के दिन-वार पश्चिमी गंगा बहाने पसरी धवल उजास पहनावा बदला पहरे पहली बारिश पहली बारिश का आना पहली बारिश जून की पहली बारिश मानसून की पहले छाया बौर निम्बौरी अब आयीं है पहाड़ पहाड़ी की यही असली कहानी है पहाड़ी मनीहार पहाड़ी रूप पहाड़ों की सतह में पहाड़ों के ढलानों पर पहाड़ों के मचानों पर पहाड़ों में मचलता है पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा पाँच क्षणिकाएँ पाँच दिसम्बर पाँच मार्च पाँच मुक्तक पाँच शब्द चित्र पाँच शब्दचित्र पाँचमुक्तक पाक आज कुख्यात पाक की...नीयत है नापाक पाक से करना युद्ध जरूरी है पाकर शुभसन्देश पागल की पहचान पागल बनते लोग पागल मधुकर घूम रहे आवारा हैं पात झर गये मस्त पवन में पात्र बना परिहास का पानी पानी का भण्डार पानी की चाहत पानी को लाचार पाप गंगा में बहाने चल दिये पापी राम-रहीम पार्थना पालतू जानवर सिर्फ पालतू ही नहीं होता पालते हैं हम सुमन को पावन और पवित्र पावन करवाचौथ पावन करवाचौथ है निष्ठा का त्यौहार पावन है त्यौहार पावन हो परिवेश पावस का त्यौहार पाषाण हैं अनमोल सोना पाषाणों को गढ़ने में पाषाणों से प्यार हो गया पिकनिक पिघलते रहेंगे चेहरे पिचकारी पिछड़ा हुआ है आदमी पिता जी पिता जी और मैं पिता जी और मैं-भाग एक पिता विधातारूप पिता सबल आधार पिता सरीखा प्यार पितादिवस पर विशेष पितृ दिवस पितृ विसर्जिनी अमावस्या पितृ-दिवस पितृदिवस पितृदिवस पर विशेष पितृपक्ष में कीजिए पियो घोटकर नीम पीड़ा के पाँच दोहे पीताम्बर परिधान पीपल पीपल राजा देवों से बतियाता है पीपल वृक्ष सुहाता है पीपल ही उद्गाता है पीला पत्ता पीले गजरे झूमर से लहराते हैं पीले झूमर पीले फूलों के गजरे पुकार पुच्छल दोहे पुतला पुत्र-पुत्री पुनः नया अध्याय पुनर्जन्म की प्रक्रिया पुरखों की जागीर पुराना गाँव पुराना पेड़ पुराना लगता है पुरानी कविता पुरानी डायरी से पुरानी रचना पुरानी सीपिकाएँ पुष्प पुस्तक दिन पुस्तक दिवस पुस्तक समीक्षा पुस्तक से सम्वाद पुस्तक-दिन पुस्तक-दिन हो सार्थक पूजन-वन्दन करने वालों पूज्य पिता जी आपका पूज्य पिता जी आपको शत्-शत् नमन... पूज्य पिता जी आपको श्रद्धापूर्वक नमन पूज्य पिता जी को श्रद्धञ्जलि दिनाक 01-08-2014 को पूज्य पिताश्री को नमन पूज्य पिताश्री! आपके बिना बहुत अधूरा हूँ मैं। पूज्या माता जी आपको शत्-शत् नमन पूरा विवरण पूरी दुनिया में कोरोना पूर्ण करेंगी आस पूर्ण छियालिस वर्ष पूर्णिमा वर्मन पृथ्वी दिवस पृथ्वीदिवस पेड़ कट गये बाग के पेड़ को देते चुनौती आजकल बौने शज़र पेड़ जंगल के सयाने हो गये हैं पेड़ लगाओ-धरा बचाओ पेड़-पौधे पेड़ों पर पकती हैं बेल पेपरवेट पैदा हुआ नरेन्द्र. मोदी का जन्मदिन पैराडाइज पत्रिका में मेरे दोहे पॉडकाट पॉडकास्ट प़ॉडकास्ट पोस्ट को लगाने के बारे में उपयोगी सुझाव पौत्र का जन्मदिन पौत्र प्राँजल का 20वाँ जन्मदिन पौत्र प्राँजल का 22वाँ जन्मदिन पौत्र रत्न के रूप में पौध लगाओ पौधे नये लगाऊँगा पौधे मुरझाये गुलशन में पौधों पर छाया है यौवन प्यार प्यार आज़मायेंगे प्यार और अनुराग प्यार करता है संसार सारा प्यार कहाँ से लाऊँ? प्यार का अन्दाज़ कहना चाहते हैं प्यार का इज़हार करना चाहिए प्यार का ज़ज़्बा प्यार का झरना प्यार का पाठ पढ़ाता क्यों है प्यार का मरहला नहीं होता प्यार का मौसम आया प्यार की गंगा बहाना सीखिए प्यार की जड़ तलाश करते हो प्यार की बातें प्यार के चार पल प्यार के दस दोहे प्यार के परिवेश की सूखी धरा प्यार के बिन अधूरे प्रणयगीत हैं प्यार के सिलसिले नहीं होते प्यार को बदनाम करने को चले हैं प्यार नहीं व्यापार प्यार भरे अशआर प्यार से झेलना वक्त की मार को प्यार से पुकार लो प्यार-प्रीत की राह प्यार-मुहब्बत प्यार-मौहब्बत प्यार-वफा प्यारा दिवस गुलाब प्यारा नैनीताल प्यारी गौरय्या" प्यारी प्राची प्यारे गौतम बुद्ध प्रकाशन प्रकाशित ग़ज़ल प्रकृतिचित्रण प्रगति के खुलते द्वार लिए प्रजातन्त्र की बेल प्रजातन्त्र हुआ बदनाम प्रज्ञा जहाँ है प्रतिज्ञा वहाँ है प्रण कर लेना आज प्रणय दिवस (VALANTINE'S-DAY) प्रणय दिवस के 14 दोहे प्रणय सप्ताह प्रणय सप्ताह का दूसरा दिवस प्रणय-गीत प्रणय-प्रीत सप्ताह प्रतिज्ञा दिवस प्रतिज्ञा-दिवस (PROMISE-DAY) प्रतिज्ञादिवस प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है प्रभा के साथ तम क्यों है प्रभू पंख दे देना सुन्दर प्रलय हुई केदारनाथ में प्रवास-यात्रा प्रश्न जाल प्रश्नजाल प्रस्ताव दिवस प्रस्ताव-दिवस प्रांजल प्रांजल की 17वीं वर्षगाँठ प्राची प्राची का जन्मदिन प्राण-प्रतिष्ठा हो रही प्राणों से प्यारा है अपना वतन प्रातराश प्रारब्ध है सोया हुआ प्रार्थना प्रीत का व्याकरण प्रीत की सौगात लेकर प्रीत के विमान पर सम्पदा सवार है प्रीत पोशाक नयी लायी है प्रीत बढ़ाएँ होली में प्रेम का सचमुच हुआ अभाव प्रेम खेल संगीन प्रेम गीत को विदाई प्रेम दिवस का रंग प्रेम-प्रीत का ढंग. वैलेंटाइन प्रेम-प्रीत का हो संसार प्रेमंदिवस प्रेमचन्द जयन्ती प्रेमदिवस प्रेमदिवस का खेल प्रेमदिवस का रंग प्रेमदिवस नजदीक प्रेमदिवस नज़दीक प्रेमदिवस पर प्रीत प्रेरक नाम कलाम प्रेरक प्रसंग प्रेरक-प्रसंग प्लम फकीर फटी घाघरा-चोली फतह मिलती सिकन्दर को फरमाइश पर नहीं लिखूँगा फल फल वाले बिरुए उपजाओ फलवाले पेड़ लगाना है फलसफा फसल उगी कमजोर फसल करो तैयार फसलें हैं तैयार फस्ट अप्रैल फागुन की फागुनिया फागुन की फागुनिया लेकर आया मधुमास फागुन की रंगोली फागुन की रंगोली का फागुन में ओले-पानी फागों और फुहारों की फासले इतने तो मत पैदा करो फासले इतने न अब पैदा करो फिकरेबाजी आज फिर कनेर मुस्काया है फिर गहराये काले बादल फिर भी हँसते जाते हो फिर से अपने खेत में फिर से आई होली फिर से नूतन रंग फिर से नूतन हर्ष फिर से बगिया है बौराई फिर से बालक मुझे बना दो फिर से लो अवतार फिर से वन्देमातरम नक्शे में हो जाय फिर से वीणा झंकार करो फिर से हरा-भरा हुआ उजड़ा हुआ दयार फिरंगी कुत्ता फिरकापरस्ती फिसल जाते तो अच्छा था फीका पड़ा बसन्त फीका रंग-गुलाल फीके सब त्यौहार फीके हैं त्यौहार फुटकर दोहे फुरसत नहीं मिलती फुर्सत नहीं मिलती फूटनीति का रंग फूल फूल और काँटे फूल कातिल हुए फूल क़ातिल हुए फूल खिलते हैं चमन में फूल खिले हैं पलाश में फूल फिर से बगीचे में खिल जायेंगे फूल बनकर सदा खिलखिलाते रहे फूल बने उपहार फूल बसन्ती आने वाले फूल रही है डाली-डाली फूल हैं पलाश में फूल हो गये अंगारों से फूल-शूल फूली-फूली रोटियाँ फूले नहीं समाते हैं फूलों की बरसात फेसबक और ब्लॉगिं फैला भ्रष्टाचार फैली खर-पतवार फैले जिनके हाथ फैले धवल उजास फैशन फैशन हुआ पुराना फोटो फीचर फोटो-फीचर फोटोफीचर बंजर हुई जमीन बंजर होते खेत बँटवारा बकरीद बकरे-बकरी बकरे-बकरीआये भागे-भागे बकरों का बलिदान चढ़ाकर बगावत भी करे कैसे बगिया में नवल निखार भरो बगीचे में ग़ुलों पर आब है बचपन बचपन के दिन बचपन को लौटा दो बचपन मेरा खो गया बचा लो पर्यावरण बच्चे बचपन याद दिलाते बच्चे होते स्वयं खिलौने बच्चों अब मत समय गँवाओ बच्चों का मन होता सच्चा बच्चों का संसार निराला बच्चों की महिमा है न्यारी बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू को शत्-शत् नमन! बच्चों के मन को भाती हो बछड़े की पुकार बज उठी वीणा मधुर बजट बजट करो स्वीकार बजने लगीं हैं तालियाँ बड़ा घिनौना काम बड़ा वतन होता है बड़ा होने से डरता हूँ बढ़ रही है महँगाई बढ़ता जाता लोभ बढ़ा जगत में ताप बढ़ा धरा का ताप बढ़ी फिर से मँहगाई बढ़े हुए हैं भाव बतलाओ तो जीवन क्या है बताओ कैसे उतरें पार? बताता जमा-खर्च बत्ती नीली-लाल बदन काँपता थर-थर-थर बदन जलाता घाम बदनाम बदनाम करने को चले हैं बदल गया परिवेश बदल गये बदल गये सब चाल-चलन बदल गये हैं अर्थ बदल गये हैं चित्र बदल गये हैं ढंग बदल जाते तो अच्छा था बदल जायेंगे बदल रहा है बदला लो सरकार बदलाव बदले रीति-रिवाज बदलेंगे अब ढंग बदलेगा परिवेश बदलो जीवन-ढंग बधाई गीत बधायी गीत बन जाता संगीत बन जाती शब्दों की माला बन जाते हैं छन्द बन जाते हैं प्यार से बन बैठे अधिराज बनकर कानन का चन्दन बनकर रहो शरीफ बनना पानीदार बना नाक का बाल बना रहे अनुराग बनाओ मन को कोमल बनाता मोम पत्थर को बनाना भी नहीं आता बनारस में गंगा तो उलटी बही है बने हुए हैं बैल बन्द करो मनुहार बन्द कीजिए पाक से कूटनीति की बात बन्दना बन्दरमामा बन्दी का यह दौर बन्दी है आजादी अपनी बन्दी है सोनचिरैया भोली बम भोले के गूँजे नाद बमकांड बरखा-बहार बरगद का पेड़ बरस रही है आग बरसता सावन सुहाना बरसात बरसे सरस फुहार बरसो अब घनश्याम बलशाली-हनुमान बसन्त बसन्त पंचमी बसन्तमंचमी बसन्ती रूप है पहना बस्ती में भूचाल बहता अविरल सोता है बहता तन से बहुत पसीना बहता शीतल नीर बहती जल की धार बहती जल की धार निरन्तर बहना करती है मनुहार बहार बहारों का भरोसा क्या... बहारों के चार पल बहारों के बिना सूना चमन है बहारों में नहीं दम है बहुत अच्छा लगता है बहुत अटपटा मेल बहुत उपकार है उसका बहुत कठिन जीवन की राहें बहुत कठिन है राह बहुत खास त्यौहार बहुत चाव से खाया बहुत छरहरी बहुत जरूरी योग बहुत बड़ा नुकसान बहुत रसीले हैं तरबूजा बाँटती है सुख बाँटो कुछ उपहार बाँटो सबको गन्ध बाँटो सबको प्यार बाइक से सीता का हरण बाकी बच गया अंडा बागों में आ गयी बहार बागों में छाया बहारों का मौसम बाते करें हिन्दी व्याकरण की बातें बातें करें बातें परलोक की बातें बनाना जानते हैं बातें ही बातें बातों का अनुपात बातों में है बात बादल बादल आये हैं बादल करते शोर बादल करते हास बादल ने नभ में ली अँगड़ाई बादल बरसो बादल हुआ शराबी बादलों कीआँख-मिचौली बादलों के ढंग कितने बाधाओं से मत घबड़ाना बापू जी का जन्मदिन बाबा नागार्जुन बाबा नागार्जुन और मेरा परिवार बाबा नागार्जुन और सन्त कबीर का जन्मदिन बाबा नागार्जुन और हरिपाल त्यागी बाबा नागार्जुन का दुर्लभ चित्र बाबा नागार्जुन की कविता बाबा नागार्जुन की पुण्यतिथि पर बाबा नागार्जुन के साथ बागों की सैर बाबा भीम महान बारिश बारिश अब घनघोर बारिश आई अपने द्वारे बारिश डराने आ गयी बारिश मत धोखा दे जाना बाल कविता बाल कविता "आम और लीची" बाल कविता “कंप्यूटर” बाल गीत बाल दिवस बाल साहित्य के पुरोधा डॉ.राष्ट्रबन्धु नहीं रहे बाल- कविता बाल-कविता बाल-गीत बालक बालक कितने प्यारे-प्यारे बालक नन्दलाल बालकविता बालकविता. चाचा नेहरू सबको प्यारे बालकृति ‘खिलता उपवन’ बालकों की पुकार बालगीत बालगीत "रंगों से नहलायेंगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') बालगीत और बालकविता में भेद बालगीत गौमाता बालगीतों की पुस्तक बालदिवस बालप्रहरी कार्यशाला का समापन बालमेला बालवन्दना बालहंस के जनवरी अंक में मेरी बालकविता बालूँगा चन्दा सा चिराग बासन्ती लालित्य बासन्ती शृंगार बाहर पानी बिँदिया चमके भाल बिकता है ज्ञान बिकती नहीं तमीज बिकते आज उसूल बिकने लगी शराब बिखर गया ताना-बाना बिगड़ गया अनुपात बिगड़ गया परिवेश बिगड़ गया भूगोल बिगड़ गया है वेश बिगड़ गये सम्बन्ध बिगड़ गये हालात बिगड़ रहा परिवेश बिगड़ा हुआ घनत्व बिगड़ा हुआ है आदमी बिजली कड़की पानी आया बिटिया दिवस बिटिया से घर में बसन्त है बित्ते भर की जीभ बिन आँखों के जग सूना है बिन डोर खिचें सब आते हैं बिन परखे क्या पता चलेगा बिन सद्गुरु के ज्ञान बिनपानी का घन बिना धूप का सूरज बिरयानी का स्वाद बिल्ली और बिलौटना बिल्ली मौसी बिल्ले खाते हैं हलवा बिस्तर पर आराम बी.एस.एन.एल का इंटरनेट फेल बीत गया है पर्व बीत गया है साल पुराना बीत रहा है साल पुराना बीते लम्हें बुखार ही बुखार है बुझी धरा की प्यास बुड्ढों की औकात बुड्ढों के अनुबन्ध बुड्ढों के हैं ढंग निराले बुढ़ापा बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएँ बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ बुनियाद की ईंटें बुरा न मानो आयी होली बुरे वचन मत बोल बुलडोजर की नीति बुला रहा मधुमास बूटा एक कनेर का बूटा-बूटा लाल बूढ़ा पीपल जिन्दा है बूढ़ा बरगद जिन्दा है बूढ़ों को सलाह बे-नूर हो गये हैं बे-पेंदे के पात्र बे-मौसम चपला नीलगगन में बेच रहा मैं भगवानों को बेचारे मजबूर बेजुबानों में जुबानें आ गयीं बेटा जीवित बाप से बेटियाँ बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह बेटी की महिमा अनन्त है बेटी जैसा प्यार बेटी दिवस बेटी से भी प्यार करो बेटो जैसा प्यार बेटों का त्यौहार बेटों जैसे दीजिए बेटी को अधिकार बेबसी बेमौसम वीरान हो गये बेरहम संसार बेरोजगारी बेल बेल...गर्मी को कर देती फेल बेवकूफ खुश हो रहे बेवफाई बेवफाई का कोई नही तन्त्र है बेशकीमती अंग बेसुरे छन्द बैंगन होते खास बैठ करके धूप में सुस्ताइए बैठकर के धूप में सुस्ताइए बैठे विषधर काले-काले बैर के अंकुर उगाना पेट में निर्मूल हैं बैरियों को कब्र में दफन होना चाहिए बैरी से हो जंग बैशाखी बैशाखी की धूम बैसाखी आने पर खुशियाँ घर-घर में छा जाती हैं बैसाखी आने पर जामुन भी बौराया है बैसाखी आने पर मन में आशाएँ मुस्काती हैं बोते संकर बीज बोलते चित्र बोलो वन्दे मातरम् बौने हुए गिरित्र ब्लॉग दिवस की शुभकामनाएँ ब्लॉगर्स मीट ब्लॉगिंग ब्लॉगिंग एक नशा नहीं आदत है ब्लॉगिंग एक नशा नहीं बल्कि आदत है ब्लॉगिंग और फेसबुक ब्लॉगिंग का संसार ब्लॉगिंग के पश्चात ही फेसबूक को देख भँगड़ा करते लोग भँवरे गुन-गुन गायेंगे भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर भइया दूज भइया दूज की शुभकामनाएँ भइया मुझे झुलाएगा भइया-दूज का तिलक. पावन प्यार-दुलार भइया-दोयज पर्व भइया-दोयज पर्व पर भइयादूज भइयादूज का तिलक भइयादूज. पावन प्यार-दुलार भक्त चले शिवधाम भक्ति गीत भक्तों के अधिकार में भजन भय मानो मीठी मुस्कानों से भय-आतंक मिटाना है भर देना लालित्य भरा हुआ है दोष हमारे ग्वालों में भरोसा कर लिया मेंने भवन को भवसागर को कैसे पार करेगा भवसागर भयभीत हो गया भविष्य को सँवार लो भा गये बादल भा रही दीपावली भाँति-भाँति के आम भाई के ही कन्धों पर होता रक्षा का भार भाई दूज भाई-बहन का प्यार भाईचारा भाईदूज भाईदूज का तिलक भाईदूज के अवसर पर भारत भारत और नेपाल सीमा की सैर भारत की थाती भारत की दुर्दशा भारत की नारी भारत की ललकार भारत की हो विश्व में हिन्दी से पहचान भारत के जननायक भारत के श्रमवीर भारत को करता हूँ शत्-शत् नमन भारत देश महान भारत बहुत महान भारत माँ आजाद हो गयी भारत माँ का कर्ज चुकाना है भारत माँ का कीर्तन-भजन होना चाहिए भारत माँ के लाल भारत माँ को आजाद किया भारत माता के माथे की बिन्दी भारत में अंग्रेजी आयी क्यों? भारत-नेपाल भारतमहान भारतमाता का अभिनन्दन भारतमाता के सुहाग की हिन्दी पावन बिन्दी भारतरत्न मिसाइल मैन को शत-शत नमन भारतवासी ट्रम्प के भारती दास भारतीय नववर्ष भारतीय नववर्ष-2074 का हार्दिक शुभकामनाएँ भारतीय परिधान भाव भावनाओं की सम्वेदना भावनाओं की हैं ये लड़ी राखियाँ भावनाओं से हैं बँधें भावभीनी श्रद्धांजलि भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में भीड़ भीम राव अम्बेदकर भुवन भास्कर हरो कुहासा भू का अभिनव शृंगार लिए भूख भूखी गइया कचरा चरती भूमिका भूल गया है जोड़ भूल चुके हैं सम्बन्धों की परिभाषा भैंस भैंस हमारी बहुत निराली भोले-बाबा अब तो आओ भोले-भण्डारी महादेव भोले-शंकर आओ-आओ भौंहें वक्र-कमान न कर भ्रष्टाचार भ्रातृ दूज का तिलक मंगलमय नववर्ष मंगलमय हो वर्ष मंगलयान मंजर है खौफ का मंजिल को हँसी-खेल समझना न परिन्दों मंजिलें पास खुद मंजु-माला में कंकड़ ही जड़ता रहा मंडराती हैं चील चमन में मंशी प्रेमचन्द जयन्ती मँहगा चाँदी-सोना है मँहगाई मँहगाई के सामने जनता है लाचार मँहगाई को दुनिया में बढ़ाया है मँहगाई पर कोई नहीं लगाम मई-2018 मकर का सूरज मकर संक्रान्ति मकरसंक्रान्ति मक्कारों के वारे-न्यारे! मक़्तल की जरूरत क्या मखमल जैसा टाट बन गया मख़मली परिवेश को क्या हो गया है मगरूर थे कभी जो मजबूर हो गये हैं मचा है चारों ओर धमाल मच्छर मच्छरदानी मच्छरदानी को अपनाओ मच्छरदानी रोज लगाओ मजदूर दिवस मजदूरों की बात मजदूरों के सन्त मजबूरी है मजहब मज़हबों की कैद में मझधार किनारा लगता है मत अभिमान कर मत कर देना भूल मत करना अब माफ मत करना तकरार मत करना विश्वास मत का दान मत कोई उत्पात करो मत घोलो विषघोल मत तराजू में हमें तोला करो मत पंछी पिंजडे में धरना मत परिवार बढ़ाना तुम मत सीख यहाँ पर सिखलाओ मत होना मदहोश मतलब का है प्यार मतलब की मनुहार मतलब की सब दुनियादारी मतलबी संसार की बातें करें मतलबीसंसार मतलवी संसार मतला मदद को पुकारा नही मदन “विरक्त” के सम्मान में कवि गोष्ठी मधुमास मधुमास आ गया है मधुमास सबको भा रहा मधुर मिलन की चाह मधुर वाणी बनाएँ हम मन मन का कोई विमान नहीं मन का बहुत उदार मन की गागर भरते जाओ मन की बात मन की बात नहीं कर पाया मन की बुझती नहीं पिपासा मन के उद्गार मन के जरा विकार हरो मन के मैले पात्र मन को कभी उदास न करना मन को करो पवित्र मन को करो विरक्त मन को न हार देना मन को पाषाण बनाया है मन को बहुत लुभाते आम मन को रखो विशाल मन खुशियों से फूला मन में तरल-तरंग मन में पसरा मैल मन में यही सवाल मन से बैर-भाव को त्यागें मन से रहे सशक्त मन ही नहीं है मन है कितना खिन्न मन है सदा जवान मन हो गया विभोर मन-उपवन मनके मनकों को तुम मनके हुए उदास मनमानी का दौर मनसूबे नापाक मना रहा संसार मना रहा है ईद मना रहे हैं लोग मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र मनीषा शर्मा मनुहार की बातें करें मनोज कामदेव मनोहर सूक्तियाँ मन्द समीर बहाते हैं मन्द-सुगन्ध बयार मन्दिर का उन्माद मन्दिर के निर्माण का ममता की मूरत माता मम्मी जी मम्मी मैं झूलूँगी झूला मयंक मयखाना मयख़ाना मरा नहीं है जोश मरुस्थलों में कलियाँ मरे देश के गांधी मरे हुए को मारना दुनिया का दस्तूर मर्दाना शृंगार दिया है मर्मस्पर्शी रचनाओं का संकलन-कर्मनाशा मलयानिल में अंगार भरो मस्त पवन ने रूप दिखाया मस्त बसन्त बहार में मस्तक का अँधियार हरो मस्तियाँ साथ लायेगा चंचल पवन मस्ती उधार लेना मस्ती का आभास मस्ती लेकर आई होली महँगा आलू-प्याज महँगाई महँगाई उपहार महँगाई की मार महँगाई खाते बेचारे!! महक उठे उद्यान महक से भर गई गलियाँ महकता घर-बार ढूँढता हूँ महकता चमन है महके है मन में फुहार महके-चहके घर परिवार महज नहीं संयोग महफिल में नीलाम हो गये महफिलों में जहर उगलते हैं महफिलों में मुस्कराना चाहिए महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री को नमन महात्मा गांधी जी का जन्मदिन महादेव का है अभिनन्दन महादेव बन जाइए महादेव शिव बन गये महापर्व में कुम्भ के महापुरुष अवतार महाप्रयाण महाराणाप्रताप महारानी लक्ष्मी बाई महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर विशेष महावीर हनुमान महाशिवरात्रि महिला दिवस महिला दिवस-मौखिक जोड़-घटाव महिला-दिवस महिलाएँ आँगन उपवन में झूल रहीं होकर मतवाली महिलाओं का मान महिलादिवस महेन्द्र नगर नेपाल महेन्द्रनगर नेपाल की यात्रा मा. हरीश रावत जी से भेंटवार्ता माँ माँ अमल-धवल कर दो माँ आपसे आराधना माँ का हृदय उदार माँ की ममता माँ की ममता के सिवा माँ की महिमा गायें हम माँ के उर में ममता का व्याकरण समाया है माँ दुर्गा जी की वन्दना माँ देती है प्यार माँ पूर्णागिरि माँ पूर्णागिरि का दरबार माँ पूर्णागिरि का दरबार सजा हुआ है माँ पूर्णागिरि का मेला माँ ममता की मूरत है माँ शब्द सरल भर दो माँ से प्यार अपार माँ-ममता और दुलार माँग छोटे आशियानों की माँग रहा अधिकार माँग रही उपहार माँग रहे क्यों भीख माँग रहे हैं ये वोटों का दान माँग रहे हैं वोट माँग लीजिए ज्ञान माँगता काव्य-छन्दों का वरदान हूँ माँगा किसी से सहारा नहीं माँगे सबकी खैर माँदुर्गा माटी के ये दीप माटी को महकाते बादल माणिक-कंचन देखे हैं मात अपनी हम बचाना जानते हैं माता उज्जवल कर दो माता करती प्यार माता का अवतार माता का आराधन माता का आशीष माता का करता हूँ वन्दन माता का गुण-गान माता का गुणगान माता का दरबार माता का भी मान करो माता का वरदान माता का सम्मान माता का सम्मान करो माता की ममता माता की वन्दना माता के आशीष ने मुझको किया निहाल माता के नवरात्र माता के नवरात्र। माता के नवरूप माता के बिन लग रहे माता जी का द्वार माता जी का श्राद्ध माता जी की वन्दना माता पूर्णागिरि माता सबके साथ माता से अस्तित्व हमारा माता से सम्वाद माता-दिवस पर विशेष माता-पिता की स्मृति माता! वरदान माँगता हूँ माताओं की आस मातृ दिवस मातृ दिवस के अवसर पर... मातृ पितृ पूजन दिवस मातृ-दिवस पर विशेष मातृ-पितृ पूजन दिवस मातृदिवस मातृदिवस की शुभकामनाएँ मातृदिवस पर विशेष मातृभाषा मातृभू को सिर नवायें मातृशक्ति मात्रिक छन्दों के बारे में कुछ जानकारियाँ माथा चकराया है माथापच्ची मान गया संसार मान रहा संसार मान. पुष्कर सिंह धामी का जन्मदिन" मानव अब तो चेत मानव है हैरान मानवता मानवता का बँटवारा मानवता मर गई है मानवता लाचार मानवता से प्यार किया है मानवता है भंग मानवता हैरान मानस के अनुभाव मानस में संवेद नहीं मानसून का मौसम आया मानसून गीत मानसून ने मन भरमाया मानी जो हिदायत होती माफ न करता कभी ज़माना माया की झप्पी मारा-मारी सदन में मार्च-2017 माला बन जाया करती है मालिक के वफादार और सच्चे चौकीदार मास सितम्बर-हिन्दी भाषा की याद मासूम चेहरों से धोखा न खाना मिट गयी सारी तपन। मिटा देंगे पल भर में भूगोल सारा। मिटाता सिर्फ पानी है मिट्टी के ही दिये जलाना मिट्टी के ही दीपक सदा जलाओ तुम मिट्टी से है बनी सुराही मिठाई मित्र शब्द का है नहीं मित्रता दिवस मित्रता-दिवस मित्रतादिवस मिल-जुल कर खेलेंगे होली मिल-जुलकर मनाएँ इस विजय त्यौहार को मिलता मन को चैन मिलन की आस मिलना दिल को खोल मिलने आना तुम बाबा मिला कनिष्ठा अंगुली मिला कनिष्ठा अंगुली होते हैं प्रस्ताव मिला बुद्ध को ज्ञान मिली डाँट-फटकार मिली नहीं खैरात मिष्ठान नही हम खाते हैं मिष्ठानों का स्वाद ले बोलो मीठे बोल मीठे से हम कतराते हैं मीठे-कड़ुए नीम मीत का साथ निभाओ मीत बन जाऊँगा मील का पत्थर मुंशी प्रेमचन्द का जीवनवृत्त मुंशी प्रेमचन्द के जन्म-दिवस पर विशेष मुंशी प्रेमचन्द को शत-शत नमन मुकद्दर आजमाते हैं मुकद्दर आजमाना चाहता है मुकद्दर रूठ जाते हैं मुक्त छंद मुक्त हुआ साहित्य मुक्त-छंद मुक्त-छंद (लोक-तन्त्र) मुक्त-छन्द मुक्तक मुक्तक गीत मुक्तक गीत "सदा गुणगान करते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) मुक्तक-बाल गीत मुक्तकगीत मुक्तछन्द मुख पर राम नाम आता है मुख हैं सबके म्लान मुखड़ा मुखपोथी मुखपोथी पर लोग मुखपोथी बनाम फेसबुक मुखपोथी से प्यार मुखरित अब अधिकार हो गये मुखरित है शृंगार मुखरित हैं अब चोर मुखिया का अधिकार मुखौटे मुखौटे मोम के मुखौटे राम के मुख्य नाम है ओम मुख्यमन्त्री उत्तराखण्ड मुझको पतंग बहुत भाती है मुझको प्राणों से प्यारा है अपना वतन मुझको रोज जगाती हो मुझपे रखना पिया प्यार की भावना मुझमें छन्द विधान नहीं है मुझे फिर याद आता है मुझे मिला उपहार मुझे मिली है सुन्दर काया मुद्दा तीन तलाक का मुन्नी भी बदनाम हो गई मुफ़लिसी के साए में अपना सफ़र चलता रहा मुबारकवाद मुरलिया बना तो मुलाकात मुल्क की जी-जान से मुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो मुल्ला-पण्डित-पादरी के चंगुल में धर्म मुल्लाओं की घात मुश्किल से मिलती है यहाँ दो जून की रोटी मुश्किल हुआ मक्ता लगाना है मुश्किल हुई है रूप की पहचान मुसीबत में गरीबों की मुस्कुरायेंगे गुलशन में सारे सुमन मुहब्बत मुहब्बत कौन करता है मुहर्रम मूँछ मूरख हैं शिरमौर मूरखपन का खेल मूर्ख दिवस मूर्ख दिवस फस्ट अप्रैल मूर्खदिवस मृग नयनी की बात मृत्यु एक मछुआरा-बेंजामिन फ्रैंकलिन मेंढक मेंहदी मेंहदी का अवलेह मेघ को कैसे बुलाऊँ? मेढक मेढक सुनाते सुर-सुरीला मेरा एक पुराना गीत मेरा एक संस्मरण मेरा घर है सबसे प्यारा मेरा जन्मदिन मेरा नमन मेरा नैनीताल मेरा पुनर्जन्म मेरा प्रण मेरा बस्ता मेरा बस्ता कितना भारी मेरा भारत देश मेरा वतन मेरा वन्दन मेरी कविता" मेरी कार का आठवाँ जन्मदिवस मेरी कार का जन्मदिन मेरी गज़ल मेरी ग़ज़ल मेरी गुरुकुल की पहली यात्रा मेरी गैया भोली-भाली मेरी छोटी पुत्रवधु का जन्मदिन मेरी जेन स्टिलो का जन्मदिन मेरी डॉल मेरी तीन पुरानी रचनाएँ मेरी दो कुण्डलियाँ मेरी दो बालकविताएँ मेरी दो रचनाएँ" मेरी पतंग बड़ी मतवाली मेरी पसन्द मेरी पसन्द के पैंतीस दोहे मेरी पहली ग़ज़ल मेरी पुस्तक गजलियाते रूप से एक ग़ज़ल मेरी पोती कितनी प्यारी मेरी पोती प्राची का जन्मदिन मेरी पौत्री प्राची का 16वाँ जन्मदिन मेरी पौत्री प्राची का 17वाँ जन्मदिन मेरी पौत्री प्राची का जन्मदिन मेरी पौत्री प्राची की वर्षगाँठ मेरी प्यारी जूली मेरी प्यारी पोती मेरी बात मेरी बात सुनो इन्सानो मेरी बिल्ली प्यारी-प्यारी मेरी मझली बहन वीरमति अब स्मृतिशेष है मेरी माता मेरी माता जी मेरी मूर्खता मेरी वेदना मेरी श्रीमती अमर भारती का जन्मदिन मेरी श्रीमती का जन्मदिन मेरी श्रीमती जी का जन्मदिन मेरी संगिनी का जन्मदिन मेरी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना-नेताओं का चरित्र मेरी हिन्दी मेरे छोटे पुत्र विनीत का जन्मदिन मेरे ज्येष्ठ पुत्र का जन्मदिन मेरे ज्येष्ठ पुत्र नितिन का जन्मदिन मेरे दो मुक्तक मेरे दोहा संग्रह नागफनी के फूल की भूमिका मेरे दोहे-दोहा दंगल में मेरे पिता जी मेरे पुत्र का जन्मदिन मेरे पूज्य पिता श्री का मेरे पौत्र "प्राञ्जल" के जन्मदिन की 16वीं वर्षगाँठ मेरे पौत्र का 25वाँ जन्मदिन मेरे पौत्र प्रांजल का जन्मदिवस मेरे प्यारे वतन मेरे प्रियतम तुम्ही मेरी आराधना मेरे ब्लॉग उच्चारण का जन्मदिन मेरे भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर मेरे भारत-विशाल की मेरे मंजुल भाव मेरे मन के उदगार मेरे माथे पे बिन्दिया चमकती रहे मेरे हाइगा मेला आज उदास मेला गंगास्नान मेला बहुत विशाल मेला वर्णन मेले से लाता नहीं मेहनत की पतवार मेहमान कुछ दिन का अब साल है मेहमान कुछ दिन का ये साल है मैं 'मयंक' हूँ मैं अंगारों से प्यार करूँ मैं अपनी मम्मी-पापा के मैं गीत बनाना भूल गया मैं घास-पात को चरता हूँ मैं ज्ञान माँगता हूँ मैं तब-तब पागल होता हूँ मैं तिरंगे को झुकने न दूँगा कहीं मैं तुमको समझाऊँ कैसे मैं तुम्हारे लिए गीत बन जाऊँगा मैं देवी का हूँ उद् गाता मैं नारी हूँ...! मैं नौका पार लगाऊँगा मैं प्यार बोना चाहता हूँ मैं भगवा का समर्थक मैं हिमगिरि हूँ मैं हो गया अनाथ मैंने प्यार किया था मैंने सब-कुछ हार दिया है मैदान बदलते देखे हैं मैदानों पर मेह मैना चहक रहीं उपवन में मैना चीख रही उपवन में मैला हुआ है आवरण मोक्ष के लक्ष्य को मापने के लिए मोदी का अवतार मोदी का फरमान मोदी का वार मोदी की सरकार मोर झूमते पंख पसारे मोर नाचते पंख पसारे मोह सभी का भंग मोह हो गया भंग मोहक रूप बसन्ती छाया मौका (गेंदा लाल शर्मा 'निर्जन' मौत मौत का पैगाम लाती है सुरा मौत ज़िन्दगी की रेल में सवार हो गई मौन निमन्त्रण मौमिन के घर ईद मौसम मौसम आया प्यारा है मौसम करे बवाल मौसम का पहला कुहरा मौसम का बदलाव मौसम का ये खेल मौसम की विपरीत चाल है मौसम के फल मौसम के शीतल फल खाओ मौसम के सारे फल खाना मौसम के हैं ढंग निराले मौसम गुलाबी हो गया मौसम ने मधुमास सँवारा मौसम ने मादकता घोली मौसम ने ली है अँगड़ाई मौसम नैनीताल का मौसम बदल रहा है मौसम मेरे देश के मौसम हँसी-ठिठोली का मौसम हमें बुलाए मौसम हुआ खराब मौसम है अनुकूल म्यर इजा यत्र-तत्र दुष्कर्म यदुवंशी तलवार यशपाल भाटिया नहीं रहे यह उपवन आजाद यह धरा देवताओं की जननी रही यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है यह भारत भूखण्ड हमारा यह व्यंग्य नहीं हक़ीक़त है यह समुद्र नहीं यहाँ अरमां निकलते हैं यहाँ दो जून की रोटी यहाँ बनाओ मित्र याचक है मजबूर यात्रा प्रसंग यात्रा वत्तान्त यात्रा संस्मरण यात्रा-चित्र यात्रासंस्मरण याद आती रही याद दिला देंगे खाला याद बहुत आते हैं याद बहुत माँ आती है याददाश्त कमजोर यीशू यीशू धरती पर आया युग बदला यू-ट्यूब ये कैसी आजादी है ये टोपी है बलिदान की ये भी ध्यान धरो ना ये माटी के दीप ये है तेरा ये है मेरा ये हैं चौकीदार हमारे योग दिवस-बहुत जरूरी योग योग भगाए रोग योग हमारी रीत योग हमारी सभ्यता योगिराज का जन्मदिन रंग रंग पल-पल यहाँ बदलते हैं रंग-गुलाल रंग-बिरंगी चिड़िया रानी रंग-बिरंगी तितली आई रंग-बिरंगी दुनिया में रंग-बिरंगे गाल रंग-बिरंगे तार रंग-मंच के क्षेत्र में रंगभरी एकादशी रँगे हुए हैं स्यार रंगों का उपहार रंगों का त्यौहार रंगों का है त्यौहार रंगों की बरसात लिए होली आई है रंगों की बौछार रक्खो व्रत-उपवास रक्षराज ही पाया है रक्षाबन्धन रक्षाबन्धन का त्यौहार रक्षाबन्धन-रंग-बिरंगे तार रखना हरदम मेल रचना ऐसा गीत रचना में दुहराता हूँ रचनाएँ रचवाती हो रचो ललित-साहित्य रजत कणों की तारा सी रण में लड़ना जंग रपट रबड़-छन्द भाया है रबड़छन्द रमजान रवि लगता नाराज रविकर जी को समर्पित रस काव्य की आत्मा रस काव्य की आत्मा है रस्सी-डोरी के झूले अब कहाँ लगायें सावन में रहता है हरदम चौकन्ना रहते तभी समीप रहना भाव-विभोर रहना सदा उदार रहना सदा सतर्क रहने दो सम्बन्ध रहा जगत में काम रहा पाक ललकार रहा हाईकू ध्यान रहे न खाली हाथ रहे बेटियाँ मार रहे सवाल कचोट रहे साथ में शारदे रहो न कभी उदास रहो सदा सानन्द राकेश चक्र राखी का उपहार राखी का त्यौहार राखी का पावन त्यौहार राखी की डोरी राखी के ये तार राखी नेह भरा उपहार राखीगीत राजनीति राजनीति का खेल राजनीति का ताल राजनीति के सन्त राजनीति गन्दी नहीं राजनीतिक घमासान राजनीतिक विश्लेषण राजस्थान से प्रकाशित पत्रिका सेठानी में मेरी कविता राजा हूँ मैं अपने मन का राज्य उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस और उत्तराखण्ड का इतिहास रात का हरता अन्धेरा रात में भी ताँकता रहता राधा तिवारी राधाकृष्णन-कृष्ण का है अद्भुत संयोग राम राम आ रहे याद राम की जय-जयकार राम कृष्ण की तान राम के ही देश में राम बेकरार है राम को मन में बसाकर देखिए राम देश का गर्व राम लला का रूप राम सँवारे बिगड़े काम राम हुए बदनाम राम-नाम ...है रामनाम रामलला-रघुराज रावण रावण अभी भी जिन्दा है रावण को जलाओ रावण को जलाओ तो कोई बात बने रावण ने आतंक मचाया रावण पुष्ट होकर पल रहा रावण या रक्तबीज रावण सारे राम हो गये राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय बालिका दिवस राष्ट्रीय-गीत रासरचैया कहकर मत बदनाम करो रास्ता अपना सरल कैसे करूँ रास्ते मंजिलों से ही मिल जायेंगे रास्तों को नापकर बढ़े चलो-बढ़े चलो राह को बुहार लो राह खुशियों की आसान हो जायेगी राह दिखाये कौन राह नापता रहा राह में चलते-चलते राहगीरों से प्यार मत करना रिमझिम वाले भादो-सावन नहीं रहे रिवाज़-रीत बन गये रिश्ता आज पुनीत हो गया रिश्ते ना बदनाम करें रिश्ते-नाते प्यार के रिश्तेदार रिश्वत के दूत रिश्वत भरा हुआ मन रिश्वत है ईमान रिश्वतखोरी रीतियों के रिवाजों से लड़ता रहा रीतीगागर रूप रूप उनको गुलाम करते हैं रूप कञ्चन कहीं है रूप कञ्चन कहीं है कहीं है हरा रूप की अंजुमन में न शामिल हुए रूप की धूप रूप की धूप ढलती जाती है रूप की बुनियाद रूप के ख़्वाब ढल गये यारों रूप कैसे खिले धूप कैसे मिले रूप को अपने नवल कैसे करूँ रूप तो नाचीज़ है रूप न ऐसा हमको भाता रूप पुतले घड़ी भर में बदलते हैं रूप पुराना लगता है रूप सबको भा रहा रूप है अब कहाँ रूप” से ही प्यार है रूप”हमें दिखलाते हैं रेखा लोढ़ा 'स्मित' रेखा श्रीवास्तव रेत के घरौंदे रेत में घरौंदे रेत में मूरत गढ़ेगी कब तलक रेतपर रेबड़ी बाँट रही सरकार रेलगाड़ी रेलबजट रॉबर्ट लुई स्टीवेंसन रो रहा समृद्धशाली व्याकरण रोज दादा जी जलाते हैं अलाव रोज-रोज ही गीत नया है गाना रोटी का अस्तित्व रोटी का गीत रोटी का भूगोल रोटी पकाना सीखिए अपने तँदूर पे रोटी भरती पेट रोटी है आधार रोटी है तकदीर रोता है माहताब हमारी आँखों में रोला और कुण्डलिया रोशनी का संसार माँगता हूँ रौशन हो परिवेश रौशनी की हम कतारें ला रहे हैं रौशनी के वास्ते लक्ष्यहीन संधान न कर लखनऊ लगता है बसन्त आया है लगा प्रेम का रोग लगी है झड़ी सावन की लगे राम की माला जपने लघु कथा लघु-कथा लघुकथा लड़ा रहे हैं आँख लफ्ज़ तो ज़ुबान की बातचीत बन गये लब्ज़ तब शायरी में ढलते हैं लब्ज़ों का व्यापार लम्हों की कहानी ललकार लहरों में पतवार लहरों से जूझ रहे लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए लाइक एक हजार लाइव का उपहार लाइव काव्यपाठ पर मेरे पाँच दोहे लाऊँ कहाँ से नया तराना लाख टके की घूस लाचार हुआ सारा समाज लाठीचार्ज लाया नये शहर में लाया नूतन पात लाल-हरी रंगोली लालबत्ती लालू प्रसाद लिखता मन की बात लिखना नहीं आया लिखना-पढ़ना नहीं आया लिखने का है रोग लिखूँ कैसे गज़ल को अब लीची लीची के गुच्छे लीची के गुच्छे मन भाए लुट गये हम प्यार में लुटा सभी मकरन्द लुटे-पिटे दरबार लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में लुप्त हुए चाणक्य हैं लू से कैसे बदन बचाएँ लू-गरमी का हुआ सफाया लूट रहे जनता को डाकू ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन ले परिणाम टटोल ले लो पाकिस्तान लेख लेख (सुझाव) लेखक ऐसे उग रहे लेखक धनपत राय लेखक धनपत राय-जयन्ती पर विशेष लैपटाप लोक का नहीं रहा जनतन्त्र लोकगीत लोकतन्त्र का रूप लोकतन्त्र की बात लोकतन्त्र की बेल लोकतन्त्र बीमार लोकतन्त्र में लोग लोकतन्त्र में वोट लोकतन्त्र है मौन लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास लोकपाल लोकाचार लोकार्पण लोग कमल के साथ लोग कर रहे बात लोग करें बकबाद लोग खोजते मंच लोग जब जुट जायेंगे तो काफिला हो जायेगा लोग भूलते जा रहे लोग रहे हैं खीझ लोग रहे हैं झाड़ लोग हुए उन्मुक्त लोग हुए गूँगे-बहरे हैं लोग हुए भयभीत लोग हो रहे मस्त लोगों का आहार लोगों को उपहार लोगों में उल्लास लोहड़ी लोहड़ी पर्व लोहिड़ी लोहियाहेड पावर हाउस लौकी वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे वचनों के कंगाल सुनो वज्र प्रहार वतन में हर जगह बलवा वन को जीवित रखना होगा वनखण्डी का द्वार वनखण्डी महादेव वन्दन शत-शत बार वन्दन शत्-शत् बार वन्दन है अनिवार्य वन्दन-पूजा-जाप वन्दना वन्दना के दोहे वन्दना गुप्ता वन्यप्राणी वरिष्ठ नागरिक दिवस वर्षगाँठ वर्षा वर्षा का आनन्द वर्षाऋतु वसन्त वसुन्धरा ने प्यास बुझाई वहाँ दो जून की रोटी वहाँ बोलते नैन वही बस पावमानी है वही वो हैं वही हम हैं वाकिफ आज जहान वाणी का संधान वाणी में सुर-तान वाणी है अनमोल वातावरण कितना सलोना वानर वार्तालाप वाल कविता वालकविता वालगीत वासन्ती आभास वासन्ती उपहार वासन्ती गीत वासन्ती परिधान वासन्ती परिवेश वासन्ती शृंगार विकराल-समस्या विकास के पूत विघ्न विनाशक-सिद्धि विनायक विजय का पावन त्यौहार विजया दशमी. दोहे विजयादशमी विजयादशमी विजय का विदुरनीति का हुआ सफाया विदेशभक्ति विद्या जीवन का आधार विद्वानों की सीख विद्वानों के वाक्य विनीत शास्त्री विनीत संग पल्लवी विमोचन एवं काव्य गोष्ठी विमोचन के दृश्य विरह और संयोग विरह-गीत विरहगीत विलियम शेक्सपियर विवध दोहावली विविध दोहावली विविध दोहे विविधताओं में एकता विविधदोहे विश्व कविता दिवस विश्व गौरैया दिवस विश्व चिकित्सक दिवस विश्व जल दिवस विश्व तम्बाकू उन्मूलन दिवस विश्व परिवार दिवस विश्व पर्यावरण दिवस विश्व पुस्तक दिवस विश्व पुस्तक-दिन विश्व पुस्तक-दिवस विश्व प्रणय सप्ताह विश्व महिला दिवस विश्व मुस्कान दिवस विश्व रंग मंच दिवस विश्व रंगमंच दिवस विश्व साक्षरता दिवस विश्व हिन्दी दिवस विश्वकप का जश्न विष का करके पान वीणा की झंकार दो वीर छन्द वीर रस वीरंगना लक्ष्मीबाई और श्रीमती इन्दिरा गांधी वीररस वीरांगना लक्ष्मी बाई और प्रियदर्शि्नी इन्दिरा जी को जन्मदिवस पर नमन वीरान गुलशन सजाकर दिखा तो वीराना चमन वीरों का बलिदान वीरों की गाथाओं से वृक्ष लगाओ मित्र वृद्ध पिता मजबूर वृद्धसेना वृद्धावस्था में कभी मत होना मग़रूर वेदों का सन्देश वेबकैम वैज्ञानिक इस देश के धन्यवाद के पात्र वैलेण्टाइन-डे वैवाहिक जीवन की 48वीं वर्षगाँठ वैवाहिक जीवन के 43 वर्ष वैवाहिक जीवन के 49 वर्ष वैवाहिक जीवन के 50 वर्ष वैवाहिक जीवन हुआ वैवाहिक वर्षगाँठ वैसा हिन्दुस्तान नहीं वो निष्ठुर उपवन देखे हैं वो पढ़ नही सकते वो पतला सा शॉल वो पात-पात निकले वो पावन गंगा कहलाती वो फर्स्ट अप्रैल वो बादल कहलाते हैं वो मजे से दूर हैं वो मधुवन होता है वो ही अधिक अमीर वो ही राग-वही है गाना वोट-नोट व्यंग्य व्यंग्य-गीत व्यञ्जनावली व्यर्थ यहाँ बलिदान व्याकरण व्याकरण चाहिए व्याकरण से हो रही खूब छेड़खानी व्यापक दूषित नीर शंकर शमन करेंगे मन को शंकर! मन का मैल मिटाओ शत-शत नमन। शत्-शत् नमन शत्-शत् प्रणाम शनिजयन्ती शब्द धरोहर शब्द बहुत अनमोल शब्द सरिता में मेरी रचना शब्द-चित्र शब्दकोश में शब्दार्थ शब्दों का आमन्त्रण शब्दों की पतवार थाम शब्दों की पतवार थाम लहरों से लड़ता जाऊँगा शब्दों के मौन निमन्त्रण शब्दों से वाचाल थे शमशान शम्मा शम्मा सारी रात जली शरद पूर्णिमा शरद पूर्णिमा पर बादलों में बन्दी मयंक शरदचन्द्र सौगात शरदपूर्णिमा शरदपूर्णिमा धरा पर लाती है उल्लास शरदपूर्णिमा पर्व शरदपूर्णिमा पर्व पावस का त्यौहार शरदपूर्णिमा रात शराब शशि पुरवार का जन्मदिन शह-मात शहतूत शहद बनाना काम तुम्हारा शहर-ए-दिल्ली को बदलने दीजिए शाकाहार शाखाओं पर लदे सुमन हैं शान-दान शाम जैसी ढल रही है जिन्दगी शामियाना चाहिए शामियाना-3 शायद वर्षा जल्दी आये शायरी के अल्फाज शारदा के तट पर शारदा नहर खटीमा शारदा सागर है शारदे के द्वार से ज्ञान का प्रसाद लो शारदे मन के हरो विकार शारदे माँ शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन शारदेमाँ शासन शासन को चलाती है सुरा शासन चलाना जानते हैं शासन मालामाल शासन में इंसाफ शिकवे-गिले मिटायें होली में शिक्षक करें विचार शिक्षक का मान शिक्षक का सम्मान शिक्षक दिवस शिक्षक दिवस. दोहे शिक्षक वन्दना शिक्षक वन्द्ना शिक्षा शिक्षा का उत्थान शिक्षा का परिवेश शिक्षाप्रद कहानी शिन्दे को अब ताज शिव शिव आराधना शिव का डमरू बन जाऊँगा शिव का ध्यान लगाओ शिव की लीला अपरम्पार शिव के द्वारे जाओ शिव वन्दना शिव-शंकर का ध्यान शिव-शंकर को प्यारी बेल शिवजी के उद्घोष शिवमन्दिर श्री वनखण्डी महादेव शिवमहिमा शिवरात्रि शिवरात्रि की रात में सात बार रंग बदलता है पत्थर शिवरात्रि मेला शिववन्दना शिष्याओं से प्रीत शीत का होने लगा अब आगमन शीत बढ़ा शीतल काया शीतल छाया शीतल पवन बड़ी दुखदाई शीतल फल हुए रसीले शीतल ही है भोर शीतल हुई दुपहरी शीतलता का अन्त हुआ शीतलता ने डाला डेरा शीशा-ए-दिल शुक्रिया करना नहीं आया शुद्ध करो परिवेश शुभ हो नया साल शुभ हो नूतन साल शुभकामनाएं शुभकामनाएँ शुभदीपावली शुभनवरात्र शुरू योग अब कीजिए शुरू सभी शुभ काम शुरू हुआ चौमास शूद्रवन्दना शून्य पर ही अन्त है शून्य महिमा शून्य में है जिन्दगी शून्य से जीवन शुरू है शूल मीत बन गये शृंगार शृंगार उतर कर मैदानों में आया शृंगार बदल जाते हैं शेर शेर-दोहरे छन्द शैतानी उन्माद शैल ढके हैं हिम से सारे शैल सूत्र पत्रिका में मेरे दोहे शैल सूत्र में मेरी ग़ज़ल शैल-सूत्र में प्रकाशित रचना शैलसूत्र शोकगीत शोकदिवस ही उचित है हिन्दीदिन नाम श्यामल अब आकाश श्यामलाताल श्रद्धा और श्राद्ध श्रद्धा का आधार श्रद्धा में मत कीजिए श्रद्धा सुमन देता ये कविराय श्रद्धा से अनुरक्त श्रद्धा ही तो श्राद्ध की श्रद्धांजलि श्रद्धाञ्जलि श्रद्धासुमन लिए हुए लोग खड़े हैं आज श्रम की बात श्रम के लिए बना है जीवन श्रम से सभी सफलता पाते श्रमिक-दिवस श्रमिकों के ख्वाब चकनाचूर हैं श्राद्ध श्राद्ध गये तो आ गये श्राप श्रावण शुक्ला पंचमी श्रावण शुक्ला पञ्चमी श्रावण शुक्ला सप्तमी जनमे तुलसीदास श्री गणेश चतुर्थी. विश्व साक्षरता दिवस श्री गणेश वन्दना श्री वनखण्डी महादेव एक प्राचीन शिव मन्दिर श्री वनखण्डी महादेव प्राचीन शिव मन्दिर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी-आठ दोहे श्रीकृष्ण भगवान अब लेंगे फिर अवतार श्रीगणेश वन्दना श्रीगुरूदेव का वन्दन श्रीमती अमर भारती श्रीमती अमरभारती श्रीमती आशा शैली श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान श्लाघा मन-भाया करती है श्वाँसों की सरगम श्वाँसों की सरगम की धारा श्वान खाय मधुपर्क श्वेत कुहासा-बादल काले षष्टी मइया संकट में है हिन्दुस्तान संक्षिप्त इतिहास संग में काफिला नहीं होता संगदिल संगम नगरी धाम संगी-साथी किसे बनाऊँ संधान सफल कर दो संरक्षण देता सदा सँवरना न परिन्दों संशोधित कानून संसद का शैतान संसद के सारे सुमन होवें पानीदार संस्कार संस्मरण संस्मरण और एक अनुवाद संस्मरण शृंखला संस्मरण शृंखला भाग-2 संस्मरण-2 सकारात्मक एवं अर्थपूर्ण सूक्तियाँ सक्षम भारतवर्ष सच के साथ हमेशा जाएँ सच से कभी न आँखें मींचो सच होता बलवान सच्चा-सच्चा प्यार सच्चाई अब डरने लगी सच्चाई का अंश सच्चे कवि कहलाओगे तब सजने लगा बसन्त सजा अयोध्या धाम सजी माँग सिन्दूरी होगी सजी हैं खेतों में रंगोली सजे हुए बाज़ार सजे हुए लीची के ठेले सजें-सवाँरे सावन में सड़कें हैं सुनसान सत्ता के हकदार हो गये सत्ता-शासन भोग सत्य कहने में झमेला हो गया है सत्य-अहिंसा की मैं अलख जगाऊँगा सत्य-अहिंसा की मैं अलख जगाऊँगा सत्य-अहिंसा वाले गुलशन सत्यमेव जयते सत्याग्रह सत्रह दोहे सत्रहशेरी ग़ज़ल सदारत कहाँ गयी सद्-भावना सद्गुरुओं को रंज सन्त और बलवन्त सन्त कबीर जयन्ती सन्त चले हरद्वार सन्त विवेकानन्द सन्त हो गये लुप्त सन्त-महन्त सन्तों की वाणी सन्तों के भेष में छिपे हैवान आज तो सन्देश सन्नाटा पसरा गुलशन में सन्नाटा है आज वतन में सन्यासी बनकर मतवाला सपने सपनों का संसार सपनों की कसक सपनों की मत बात करो सपनों पे गिरी गाज सपनों में आया कौन सपनों में उजियाला है सफर चल रहा है अनजाना सब कुछ वही पुराना सा है सब कुछ है सम्भाव्य सब बच्चों का प्यारा मामा सब से न्यारा वतन सब स्वप्न हो गये अंगारे सबका अटल सुहाग सबका चित्त-चरित्र सबका बापू सबका बापू कहलाया सबका मन है ललचाया" सबका हाड़ कँपाया है सबकी अपनी टेक सबकी कुछ मजबूरी होगी सबके अन्तस मैले हैं सबके पथ का निर्माता सबके मन को भाती हो सबके मन को भाते आम सबके मन को भाते हैं सबके मन को भाया बसन्त सबके साथ मनाओ तुम सबके साथ विकास सबको अच्छे लगते बच्चे सबको को सुख पहुँचाते हैं सबको गर्मी बहुत सताए सबको देते प्रेरणा सबको दो उपहार सबको मुबारक नया वर्ष हो सबको सीधी राह बताओ सबरमती आश्रम सबसे ज्यादा भाते हैं सबसे दुखी किसान सबसे पहले अपना वतन होना चाहिए सबसे मीठी बात सब्जी बिकती धान से सब्र का इम्तिहान बाकी है सभी गणों के ईश सभी तरह का माल सभी तरह के लोग सभ्यता सभ्यता का रूप मैला हो गया है सभ्यता के हिमालय पिघलने लगे सभ्यता पर ज़ुल्म ढाती है सुरा समझ गया जनतन्त्र समझदार के लिए इशारा समझदार हो तो समझना इशारा समझो मत खिलवाड़ समझौता अन्याय से समय समय का चक्र समय का चक्र चलता है समय का फेर समय को हँसकर बिताओ समय पड़े पर गधे को बाप बनाते लोग समय बड़ा विकराल समय हो गया तंग समय-समय का फेर समयचक्र समर सलिल पत्रिका में समाचार समाचार कतरन समाजवाद समास अर्थात शब्द का छोटा रूप समास अर्थात् शब्द का छोटा रूप समास को भी जानिए समीक्षक-डॉ. राकेश सक्सेना समीक्षक-मनोज कामदेव समीक्षा समीक्षा “कदम-कदम पर घास” समीक्षा-छन्दविन्यास (काव्यरूप) समीरलाल समीश्रा सम्बन्ध सम्बन्ध आज सारे व्यापार हो गये हैं सम्बन्धों का चक्रव्यूह सम्बन्धों का योग सम्बन्धों की धार सम्बन्धों की परिभाषा सम्बन्धों के तार सम्बन्धों को जोड़ो सम्मान समारोह सम्वत्सर तो चमन में लाता हर्ष विशेष सरकार सरकारी तकरीर सरकारी फरमान सरदी ने रंग जमाया सरदी से काँप रहा है तन सरदी से जग ठिठुर रहा सरदी से जग ठिठुर रहा है सरपंच मेरे गाँव के सरस रहा मधुमास सरस सुमन भी सूख चले सरसों पर पीताम्बर छाया सरसों हुई उदास सरस्वती माता का कोटि-कोटि अभिनन्दन सरस्वती वन्दना सरस्वती-वन्दना सरस्वतीवन्दना सरहद पर मुस्तैद सरिताएँ सरेआम अब नाक सर्द हवाओं के झोंके सर्द हवाओं ने तेवर सब ढीले कर डाले सर्दियाँ सर्दी सर्दी गयी सिधार सर्दी ने है रंग जमाया सर्दी में कम्पन सर्दी से आराम मिला है सर्प-नेवले मीत सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला सलामत आज होना चाहिए सलामत रहो साजना सलीके को बताता है सलीके को बताता है... सलीबों को जिसने अपनाया सवाल पर सवाल सवाल पर सवाल हैं सवाल पर सवाल हैं कुछ नहीं जवाब है सवाल-ज़वाब ससुराल है बेड़ियों की तरह सहते लू की मार सहते हो सन्ताप गुलमोहर! फिर भी हँसते जाते हो सहमा देश-समाज सहमा सा मजदूर-किसान सहमा हुआ पहाड़ सहमे हुए कपोत सही मक़्ता लगाना भी नहीं आता साँझ का होने लगा आभास अब साँड-तबेला साँस की डोर साँस की सरगम सुनाता जा रहा हूँ साँसों पर विश्वास न करना साइकिल साक्षात्कार साग-सब्जी सागर सागर की गहराई में सागर सा गहरा सागर-गागर साज मौसम ने बजाया साझा ब्लॉग सात बार रंग बदलता है पत्थर सात रंगों से सजने लगी है धरा सात रंगों से सजा है गगन सात साल का लेखा जोखा सातवाँ वार्षिक श्राद्ध साथ चलना सीखिए साथ तुम मझधार में मत छोड़ देना साथ नहीं कुछ जाना साथ नहीं है कुछ भी जाना साथ सूरत के सीरत सलामत रहे साथ होकर भी सब अकेले हैं साथी साथी साथ निभाते रहना साधन जाता हार साधना वैद साधारण जीवन अपनाना साफ करो परिवेश साबुन से धोया हमने गधों को हजार बार सामयिक सामयिक दोहे सामस सामान्य-ज्ञान सारी बहनें आज सारे जग को रौशनी सारे नम्बरदार सारे बिगड़े काम सारे संसार में साल पुराना बीत गया साल पुराना बीत रहा है साल-छब्बीस जनवरी साला-साली शब्द साली रस की खान साली से है प्यार सालों का आकार सावन सावन आया सावन का उपहार सावन की महिमा सावन की हरियाली तीज सावन की है छटा निराली सावन की है तीज सावन में सावन-गीत सावन-भादो मास साहित्य साहित्य की विधा साहित्य की विधा "क्षणिका" साहित्य सुदा में मेरी बाल कविता साहित्य सुधा जून(द्वितीय) साहित्यकार साहित्यकार समागम एवं पुस्तक विमोचन साहित्यकार से पहले अच्छे व्यक्ति बनिए साहित्यसुधा पाक्षिक पत्रिका में मेरा गीत साहूकार ने भिक्षुक बनाया है सिंह बने शृंगाल सिंह माँद में छिप गये सिंहासन पर उल्लू भी बिठाये जाते हैं सिकन्दर राह दे देंगे सिक्के के दो पहलू सिखलाते नवरात्र सिखलाते रमजान सितम बहुत सरदी ने ढाया सितारगंज चुनावप्रचार सितारों का भरोसा क्या सितारों में भरा तम है सिद्धिविनायक आपसे खिली रूप की धूप सिन्दूरी परिवेश सिफत और उसका परिवार सिमट गया संसार सिमट रही खेती सारी सिमटकर जी रही दुनिया सियासत सियासत के भिखारी सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में सियासत में तिज़ारत है सियासत में शरारत है सियासतीफकीर सिर पर खड़ा बसन्त सिर पर बँधता ताज सिर्फ कलेण्डर ही तो बदला सिर्फ खरीदार मिले सिर्फ खार मिले सिलसिला सिलसिला नहीं होता सिसक रहा गणतन्त्र सिसक रहे अमराई में सिसक रहे हैं तार सिहरन बढ़ती जाए सीख काम की हम सिखलाते सीख रहा हूँ दुनियादारी सीख सिखाते ज्येष्ठ सीख हमें सिखलाती हो सीखिए गीत से गीत का व्याकरण सीखिए प्यार से प्यार का व्याकरण सीखो चमन में जाकर सीधी-बात सीधी-सादी मेरी मैया सीना छप्पन इंच का सीपिकाएँ सीमा सीमा का कभी नहीं लाँघू सीमा के योद्धाओं से सीमा पर घुसपैठ को सीमित है संसार में सुख का सूरज सुख का सूरज उगे गगन में सुख का सूरज नहीं गगन में सुख की तमन्ना क्या करें सुख के बादल सुख के सूरज से सजी धरा सुख देती है धूप सुख वैभव माँ तुमसे आता सुख-चैन छीनने को गद्दार आ गये हैं सुख-दुख सुदामा भटक रहा है सुधर गया परिवेश सुधरा है परिवेश सुधरें सबके हाल सुधरेंगे अब हाल सुधरेंगे फिर हाल सुधरेंगे बिगड़े हुए हाल सुधरेंगें बिगड़े हुए हाल सुधरेगा परलोक सुधरेगा परिवेश सुनने को आवाज़ सुनामी सुन्दर खरगोश हमारा है सुन्दर विमल-वितान सुन्दर सा परिवार सुभद्राकुमारी चौहान सुभाषचन्द्र बोस सुमन इकट्ठे रहें सुमन बाँटता गन्ध सुमनो को सब नोच रहे सुरभित सुमन रोया हुआ सुराखानों में दारू के नशीले जाम ढलते हैं सुराही सुर्ख काया जाफरानी हो गयी सुलगाओ फिर से नयी आग सुशान्त का भूत सुहाना प्यार का साया सुहाना लगता है सुहानी न फिर चाँदनी रात होती सूखा सावन सूखा-धूप सूखी मंजुल माला क्यों सूखे मौसम में अब कैसे सूखे हुए छुहारे सूचना सूना संसद नीड़ सूना है घर-बार सूरज अनल बरसा रहा सूरज उगा विश्वास का सूरज और कुहरा सूरज कितना घबराया है सूरज को भी तम ने घेरा सूरज नभ में शर्माया है सूरज ने मुँहकी खाई सूरज शर्माया सूरज शीतलता बरसाता सूरज से आग बरसती है सूरज से हैं धूप सूरज हुआ जवान सूरज-चन्दा-धरती सूरत पर अभिमान न कर सूर्य भी शीत उगलता है सृजन कुंज की भूमिका सेंक रहे हैं धूप सेना का अपमान सेमल ने ऋतुराज सजाया सेमल ने बसन्त चहकाया सेवा का पथ यीशू ने दिखलाया सेवों का मौसम आया है सैनिक-सेनाधीश सैन्य शक्ति का अंग सोच अरे नादान सोच-समझ कर ही सदा सोच-समझकर बटन दबाना सोच-समझकर वोट सोने जैसा रूप सोने में मत समय गँवाओ सोलह दोहे सौंदर्य जॉन मेसफील्ड सौतेला व्यवहार सौन्दर्य सौम्य शीतल व्यक्तित्व के धनी- डा. मयंक स्नान स्मृतिशेष बाबा नागार्जुन स्मृतिशेष शायर गुरुसहाय भटनागर 'बदनाम' स्लेट और तख्ती स्व. गुरु सहाय भटनागर 'बदनाम' स्व. टीकाराम पाण्डेय 'एकाकी' की पाँचवीं पुण्यतिथि स्वच्छ करो परिवेश स्वच्छता ही मन्त्र है स्वतन्तन्त्रा दिवस स्वतन्त्रता स्वतन्त्रता का नारा है बेकार स्वतन्त्रता का मन्त्र स्वतन्त्रता का मन्त्र। स्वतन्त्रता दिवस स्वदेश का परवाना स्वप्न स्वप्न जाते नहीं स्वप्न हुआ साकार स्वर अर्चवा चावजी स्वर श्रीमती अमर भारती स्वर सँवरता नहीं स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन स्वरावलि स्वर्णिम इतिहास स्वागत नवसम्वत्सर स्वागत भारतीय नववर्ष स्वागत में तैयार स्वागत-गीत स्वाति का जन्मदिन स्वाभाविक मुस्कान स्वाभाविक शृंगार स्वामी अग्निवेश जी पर जानलेवा हमला स्वार्थ छलने लगे स्वार्थ में शुमार है स्वीकार हमें है हंस फाँकते धूल हँसता गाता बचपन की भूमिका हँसता हरसिंगार हँसता-गाता बचपन हँसी बहुत आया करती है हँसी-खुशी हक़ीक़त से अपना न दामन बचाना हजार जन्म ले लेते हैं हनुमान जयन्ती हनुमान जयन्ती की सभी भक्तों को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ हबस हम कमल हैं चरण-रज से खिल जायेगें हम तो हिन्दी वाले हैं हम देख-देख ललचाते हैं हम नहीं बिकेंगे हम पंछी हैं रंग-बिरंगे हम पहाड़ी मनीहार हैं हम प्यार पो रहे हैं हम लोग पहाड़ी मनीहार हैं हमको इन्सानियत के न छल का पता हमको थोड़ा प्यार चाहिए हमको दूध-दही अपनाना है हमको वो परिधान चाहिए हमने छन्दों को अपनाया हमने वो सावन देखे हैं हमसफर हमसफर बनाइए हमारा चमन हमारा प्यारा कुत्ता ट़ॉम हमारा राजा हमारा सूरज हमारी 40वीं वैवाहिक वर्षगाँठ हमारी 47वीं प्रणय जयन्ती हमारी नियति हमारी नैनो हमारी वैवाहिकवर्षगाँठ हमारी स्पार्क हमारी हिन्दी खराब क्यों है? हमारे प्रधानमन्त्री नरेन्द्र भाई मोदी का जन्म दिन" हमीं पर वार करते हैं हमें गाना नहीं आता हमें चिढ़ाया सा करती है हमें फुरसत नहीं मिलती हमें शीतल पवन हर इक कदम पर भरे पेंच-औ-खम हैं हर खुशी तेरे नाम करते हैं हर जन्म में आप ही मेरी माता हों हर बहना को गर्व हर बिल्ला नाखून छिपाता हर रोज रंग अपना हर सिक्के के दो पहलू हैं हर-हर बम-बम बोल हरकत हैं नापाक हरण हो रहा चीर हरदेई हरसिंगार के फूल हरा-भरा परिवार चाहिए हरियाली तीज हरियाली ने रूप दिखाया हरी मिर्च हरी मिर्च थाली में पसरी हरी-भरी सब बेल हरी-भरी हैं पर्वतमाला हरीश रावत-इन्सान पहले हरे पेड़ के नीचे हरेला हरेला का त्यौहार हलाहल पिला दिया तुमने हवन हवा चल रही सर-सर-सर हवाईजहाज हसरत रही बकाया हाइकू हाइगा हाड़ कँपाता शीत हाड़ धुन रहे राजदुलारे हाथ बनाते दीप हाथ में नयी लकीर आ गयी हाथ-हाथ को धोता है हाथी हाथों में उसके आज भी झूठा गिलास है हाथों में पिस्तौल हार गये सामन्त हार गये हैं ज्ञानी-ध्यानी हार भी जरूरी है हारा सरल सुभाव हालत हुई खराब हालत है विकराल हालातों से बालक हारे हास्य-गीत हास्यगीत हिंग्लिश रही दबोच हिंसा का परिवेश हिना खोलती राज हिन्दी हिन्दी आती याद हिन्दी करे पुकार हिन्दी का अनुपात हिन्दी का उत्थान हिन्दी का कल्याण हिन्दी का गुणगान हिन्दी का पथ नहीं सरल है हिन्दी का भण्डार हिन्दी का सम्मान हिन्दी की अब तो आशाएँ धूमिल हैं हिन्दी की पहचान हिन्दी की बिन्दी हिन्दी की ही हार हिन्दी की है धूम हिन्दी की है हार हिन्दी को बिसराया है हिन्दी ग़ज़ल हिन्दी ग़ज़लिका हिन्दी चिट्ठाकारी दिवस हिन्दी दिवस हिन्दी दिवस विशेष हिन्दी पखवाड़ा हिन्दी पर आघात हिन्दी ब्ल़गिंग-अपार सम्भावनाएँ हिन्दी ब्लॉगिंग की दुर्दशा हिन्दी भाषा को अपनाएँ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि हिन्दी वर्ण-माला और पञ्चमाक्षर हिन्दी वर्णमाला-ऊष्म और संयुक्ताक्षर हिन्दी वाले हैं हिन्दी व्यञ्जनावली हिन्दी व्यञ्जनावली-अन्तस्थ हिन्दी व्यञ्जनावली-चवर्ग हिन्दी व्यञ्जनावली-टवर्ग हिन्दी व्याकरण हिन्दी व्याकरण भाग-१ और भाग-२ हिन्दी से है प्यार हिन्दी स्वरावलि हिन्दी है कमजोर हिन्दी है परतन्त्र हिन्दी है सबसे सरल हिन्दी-दिवस हिन्दीग़ज़लिका हिन्दीदिवस हिन्दीदिवस पर दो रचनाएँ हिन्दुस्तानियों की हिन्दी खराब क्यों है? हिफ़ाजत कौन करता है हिमाकत में निजामत है हिमायत कौन करता है हिमालय हिल-मिल खेलें होली हीरो वाधवानी हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल हुआ दशानन पुष्ट हुआ निर्मल गगन हुआ बसन्त उदास हुआ बेसुरा आज तराना हुआ शीत का अन्त हुआ समय विकराल हुई घनघोर बारिस जब हुई चलन से दूर हुई पत्र से लुप्त हुई मन्नत सभी पूरी हुई लुप्त सब धूप हुई होलिका खाक हुए आज मजबूर हुए आज विकराल। हुए खुशहाल हम हुए हैं रंग-बिरंगे गाल हुए हौसले पस्त हुनमान जयन्ती हृदय के उद्गार हे निराकार-साकार देव! हे मनमोहन देश में है आराम हराम है कितना मजबूर है किसने दिल को पहचाना है नये साल का अभिनन्दन है पावन त्यौहार है सूरज भयभीत हैं दिखावे के लिए दैरो-हरम हो गद्दारों से गद्दारी हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना हो गया इन्सान बौना हो गया मौसम सुहाना हो गयी पूरी कहानी हो गये हैं लोग कितने बेशरम हो चुकी अब बन्दगी हो जाता मजबूर हो जाते सब मौन हो नही सकता हो नहीं सकता हमारा देश आरत हो रहा आभास है हो रहा विहान है हो विकास भारत के अन्दर हो हर बालक राम हों समता के भाव होंगे नये सुधार होंगे सभी निरोग होगा क्या उद्धार होगा नूतन वर्ष में जीवन में उल्लास होगा बदन निरोग होगी अब तसदीक होगी ईद मुफीद होठों पर हरि नाम होता नवनिर्माण होता नित अवरोध होता पावन पर्व।। होता है अनुमान होता है ये हुश्न छली होती हाड़-कँपाई होती है अब हाड़ कँपाई होती है बुनियाद होते देवउठान से होते पीले-लाल होते हैं प्रस्ताव होते हैं फैसले जहाँ सिक्का उछाल के होना नहीं अधीर होना नहीं निराश होना पड़ता सभी को कभी न कभी अनाथ होना मत मग़रूर होलक का शुभदान होली होली आई है होली आयी है होली का आगाज होली का आनन्द होली का उपहार होली का उपहारर होली का त्यौहार होली का त्यौहार उमंगें- आशाएँ लेकर आता होली का मौसम आया है होली का हुड़दंग होली की सौगात होली की है तैयारी होली के ये रंग होली गयी सिधार होली गीत होली बहुत उदास होली बाल-गीत होली भरती है हुंकार होली में अब फाग होली में हुड़दंग होली लेकर फागुन आया होली-गीत होलीगीत Carl Sandburg Come slowly-Emily Dickinson Farewell Love poem BY-Thomas Wyatt Goodbye! (अलविदा) by Richard Aldington KIN A POEM My Dad Wishes by Samphors Vuth My Dad Wishes by-Samphors Vuth My Dad Wishes-Samphors Vuth Remember a poem : Christina Rossetti U O U “हैलो हल्द्वानी” में मेरा रेडियो कार्यक्रम प्रसारित